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नवरा​त्र के चौथे दिन जाने मां कुष्माण्डा की अद्भुत शक्ति

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Mar 21, 2018

नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। अपनी मंद मुस्कान से अण्ड को उत्पन्न करने के कारण इनकी प्रसिद्धि कूष्माण्डा के नाम से हुई है। मां का यह रूप बहुत ही सरस है। जो हर किसी की पुकार सुनती हैं। मां मन की चंचलता को शांत करती हैं और व्यक्ति को गति प्रदान करती हैं। मां के इस रूप के बारे में पुराणों में जिक्र है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है।

मां कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल की वृद्धि होती है। मां कूष्माण्डा अल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है।

इस दिन मां का नाम लेकर ध्यान करना चाहिए। मां के इस रूप को पूजने वाले व्यक्ति के पौरूष में कभी कमी नहीं होती है, वो दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है। वो जब तक धरती पर रहेगें, तब तक उसका कुल आबाद रहता है।

मां कूष्माण्डा का शरीर सूर्य की कांति के समान है। इनकी आठ भुजाएं हैं इसलिए ये अष्टभुजा भी कहलाती हैं। इनके दाहिनी ओर के चार हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण और कमल सुशोभित हैं तथा बाई ओर के हाथों में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र हैं। इनके कानों में सोने के आभूषण और सिर पर सोने का मुकुट है। ये सिंह पर विराजमान हैं।