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अम्बुजा सीमेंट प्लांट में हादसा, 2 मजदूरों की मौत, 3 गंभीर

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Sep 18, 2017

बलौदाबाजार : जिले के रवान स्थित अम्बुजा सीमेंट प्लांट के रॉ मिल में हादसा होने से दो मजदूरों की जान चली गई। वहीं 3 मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों का रायपुर के अम्बेडकर अस्पताल में इलाज जारी हैं। वहीं जिस तरीके से यह घटना हुई हैं इससे प्लांट प्रबंधन की बड़ी लापरवाही सामने आई हैं।

एक तरफ रविवार को जहां पूरे देश के मजदूर भगवान विश्वकर्मा की जयंती मना रहे थे और मशीनों की पूजा-पाठ कर मजदूर परिवार के साथ उत्सव में डूबे हुए थे, वहीं दूसरी तरफ बलौदाबाजार जिले के रवान स्थित अम्बुजा सीमेंट प्लांट प्रबंधन के तानाशाही रवैये के कारण दो मजदूरों को अपनी बलि चढ़ानी पड़ गई।

उनके परिवारों में उत्सव की जगह मातम पसर गया। प्लांट प्रबंधकों ने अपना समय बचाने और उत्पादन बढ़ाने के लिए मजदूरों को रॉ मिल के अंदर रोलर से कुचलकर दिया।

दरअसल रविवार की दोपहर को विश्वकर्मा जयंती और रविवार की छुट्टी होने के बावजूद नियमों और कानूनों को ताक में रखकर बंद पड़ी रॉ मिल को चालू कराने के लिए मेंटेनेंस अधिकारियों द्वारा मजदूरों को दबावपूर्वक प्लांट बुलाया गया था।

इसी दौरान मशीन के गीयर बॉक्स में आई खराबी को दूर करने जब 5 मजदूर रॉ मिल के भीतर घुसे, तो अचानक किसी ने मशीन चालू कर दी और 2 मजदूर मशीन के अंदर कुचले गए और अन्य 3 मजदूर गंभीर रूप से घायल हो गए, जिन्हें किसी तरह बाहर निकल पाए।

आपको बता दें कि रॉ मिल के अंदर एक बड़ा रोलर सीमेंट बनाने का मुख्य कच्चा माल, चूना, पत्थर को दबाकर चूर-चूर करने का काम करता हैं। इसी रोलर में कुचलकर इन 2 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई और 3 अन्य अभी भी जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।

रवान स्थित इस अम्बुजा सीमेंट प्लांट में ये पहला हादसा नहीं हैं बल्कि पिछले कई वर्षों से यह प्लांट गरीब मजदूरों की कब्रगाह बना हुआ हैं। सन 2013 में भी 4 मजदूरों की मौत और उसके पहले भी कई बार इस प्लांट में कई मजदूरों की जान गई हैं।

2013 के मामले की जांच तो अभी भी जारी हैं और प्लांट प्रबंधन पर किसी तरह की भी जिम्मेदारी अब तक तय नहीं हो पाई हैं। इस बीच दूसरे बड़े हादसे ने प्लांट प्रबंधन की पोल खोल दी हैं। लगातार अम्बुजा प्रबंधन सुरक्षा मानकों और श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाकर मजदूरों की जान के बदले मुनाफा कमाने की होड़ में लगा हैं।

मशीनों, मिस्त्री और मजदूरों की पूजा के दिन मजदूरों से काम लेना यही साबित करता हैं। यदि रॉ मिल के अंदर मजदूरों के घुसने से पहले सुरक्षा मानकों का पालन किया जाता, प्लांट के विद्युत और सुरक्षा विभाग की परमिशन ली जाती, तो इन मजदूरों की जान बच सकती थी, लेकिन प्रबंधन के दबाव के चलते हड़बड़ी में मजदूरों ने और न ही अधिकारियों ने यह प्रक्रिया पूरी नहीं की और 2 मजदूर काल के गाल में समा गए।

प्रबंधन की गलती और दबाव की बात मजदूर व दबी जुबान से प्लांट के कर्मचारी-अधिकारी भी स्वीकार रहे हैं। मजदूरों व कर्मचारियों से 8 घंटे की जगह लगातार 10 से 15 घंटे काम लिया जाता हैं। छुट्टियों में दबावपूर्वक काम कराया जाता हैं और इस ओवरटाइम के एवज में किसी तरह का अतिरिक्त भुगतान भी नहीं किया जाता, बल्कि सवाल करने पर मजदूरों और कर्मचारियों की बेरोजगारी का फायदा उठाकर काम से निकालने की धमकी भी प्रबंधन द्वारा दी जाती हैं।

ऐसे में पूरे अम्बुजा प्रबंधन पर प्रशासन क्यों मेहरबान हैं? आखिर क्यों प्रशासन हादसे के बाद अम्बुजा प्रबंधन द्वारा मौत की जगह छोटी घटना बताकर प्रशासन को गुमराह करने की बात कबूलने के बावजूद 24 घण्टे बाद भी निष्क्रिय हैं? किसी तरह की एफआईआर दर्ज न होना, किसी को भी हिरासत में न लेना इस बात का सबूत हैं। इसके अलावा अंत तक अम्बुजा प्रबंधन ने मीडिया को किसी भी तरह से जानकारी देने से साफ मना कर दिया। 

भले ही लोकतंत्र और मजदूरों के हित की बातें सरकारें करती हो लेकिन हाई प्रोफाइल मामले और बड़े उद्योगों के मामले में क्यों प्रशासन घिसट-घिसट कर चलती हैं यह बड़ा सवाल हैं। आखिर में आपको व्यवस्था की इस हकीकत से भी वाकिफ करा दें कि हादसे के 24 घंटे बाद भी मृतकों के शव को पुलिस ने परिजनों को नहीं सौंपा हैं।

बल्कि स्थानीय जनप्रतिनिधि से लेकर कलेक्टर तक मृतकों के परिजनों को अम्बुजा प्लांट के ही गेस्ट हाउस में बैठाकर मुआवजे की रकम और अन्य लाभ देने की चर्चा करते घंटों बैठे रहे और किसी ने यह सवाल पूछने की जहमत भी नहीं उठाई कि आखिर सरकारी अफसरान अम्बुजा प्लांट के ही गेस्ट हाउस में बैठकर अम्बुजा के ही प्रबंधन के साथ परिजनों को क्या यह संदेश दे रहे थे कि प्रशासन के पास अम्बुजा प्रबंधन को अपनी चौखट तक बुला पाने की ताकत भी नहीं हैं, बल्कि पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था उद्योगों से आर्थिक मुनाफा कमाने के इस गणित में ऐसे उद्योगों के ही गेस्ट हाउस में बंधक हैं।