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ऐसी परंपरा, सुहागिनों को है श्रृंगार करने की मनाही

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Nov 1, 2017

धमतरी : आज जमाना चांद सितारे पर चला गया, लेकिन दुनिया में कई ऐसी रूढ़िवादी परंपरा चली आ रही है, जिसे लोग खौफ के साये या मजबूरी के चलते मानते आ रहे है। कुछ ऐसा ही धमतरी में देखने को मिला है।

जहां एक गांव ऐसा भी है, जहां की औरत न तो श्रृंगार करती है और न ही खाट पर सोती है। यहां तक कि महिलाएं लकड़ी की बनी हुई कोई भी वस्तु पर नहीं बैठती है। बारह महीने यहां की औरतें जमीन पर ही सोती है और तो और गांव की महिलाएं अपनी मांग पर सिंदूर तक भी नहीं भरती।

ये परंपरा गांव में सदियों पहले एक देवी के प्रकोप के चलती बनाई गई थी, अगर कोई भी गांव में इसे तोड़ने की जुर्रत करती है तो गांव में आफत आ जाती है। जिसके चलते ये परंपरा आज तक बदस्तूर जारी है। हम बात कर रहे है नगरी इलाके की सदबाहरा गांव की जहां ये अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है।

धमतरी जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर नगरी इलाके में सदबाहरा गांव है। जहां की एक अजब परंपरा की पूरे इलाके में चर्चा होती है। गांव में तकरीबन 40 परिवार रहते हैं। यह गांव अपनी एक परंपरा के चलते जाना जाता है।

यहां महिलाओं को खाट, पलंग, कुर्सी इत्यादि पर बैठने की इजाजत नहीं है और इसी तरह महिलाओं को श्रृंगार करने की मनाही है। ऐसी मान्यता है कि अगर महिलाएं ऐसा करेंगी, तो ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहेंगी या फिर उसे कोई न कोई बीमारी जरूर हो जाएगी।

इसके पीछे एक कहानी छुपी है। गांव के बडे बुर्जुग बताते है कि गांव की देवी ऐसा करने से नाराज हो जाती हैं और गांव पर संकट आ जाता है। गांव में ही एक पहाड़ी है, जहां कारीपठ देवी रहती हैं। गांव प्रमुख की माने तो 1960 में एक बार गांव के लोगों ने इस परंपरा को तोड़ा था।

जिसके बाद गांव की महिलाओं को कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया और मौतें भी होने लगी। यहां तक जानवर मरने लगे और बच्चे बीमार होने लगे। सब को यही लगा कि ये देवी का प्रकोप है और परंपरा टूटने के कारण ऐसा हुआ। बस इसके बाद किसी ने भी इस परंपरा को तोड़ने की हिम्माकत नहीं की।

गांव में कोई भी खुशी का पल हो दिवाली, दशहरा कोई भी तीज-त्योहार हो या फिर शादी ब्याह, लेकिन महिलाएं श्रृंगार नहीं करता। बिंदिया, पायल, लिपस्टिक तो दूर की बात है। यहां की महिलाएं मांग में सिंदूर तक नहीं लगाती।

इसके पीछे सिर्फ एक डर है, जिसे गांव की कोई भी महिला आज तक तोड़ने की जुर्रत नहीं की है। यहां तक ये परंपरा इस गांव में आने वाले दूसरे गांवों के लोगों पर भी लागू होता है। गांव में महिलाओं के बैठने के लिए ईंट-सीमेंट के ओट व टीले का निर्माण किया गया है।

घर के अंदर भी महिलाएं फर्श पर ही सोती हैं। किसी भी तरह के बेड या चारपाई पर इन्हें सोने व बैठने की मनाही है। गांव में सभी लोग आज भी अंजाने खौफ के साये में अपना जीवन बिता रहे है। हमेशा गांव वालों को डर बना रहता है कि ये परंपरा तोड़ने से गांव में कोई भी अनहोनी हो सकती है।

वहीं इसके लिये कई समाजिक कार्यकर्ता ने यहां के लोगों को जाकर समझाया कि ये सब अंधविश्वास की बाते है, लेकिन गांव वालों ने किसी की एक ना सुनी और इस परंपरा को सदियों से निभाते आ रहे है।

बहरहाल सदबाहरा गांव अपने इस अजब परंपरा के चलते पूरे इलाके में मशहूर है और चर्चा का विषय भी बना हुआ है। अब ये देखने वाली बात होगी कि आने वाली पीढी इस परंपरा को संजोये रखती है या फिर इसे एक अंधविश्वास मान कर तोड़ देगी।