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दशहरा की अनोखी परंपरा, नहीं होता हैं इस गांव में रावण दहन  

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Sep 30, 2017

मुंगेली : मेला लगेगा..... राजा आएंगे...... पर रावण नहीं मरेगा। मुंगेली जिले के कन्तेली गांव में 16 वीं सदी से अनोखी परंपरा चली आ रही हैं। राजा की सवारी निकलेगी, पर रावण दहन नहीं होगा। राजा के दर्शन के लिए 44 गांव से ग्रामीण आते हैं। परम्परा बरसो पुरानी हैं, पर आज भी गांव के लोग मानते हैं।

जिस प्रकार केरल में मान्यता हैं कि दशहरे के दिन राजा बली अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए पाताल लोक से बाहर आते हैं और प्रजा उन्हें सोन पत्ती देकर उनका आशीर्वाद लेती हैं। कुछ ऐसे ही परंपरा मुंगेली जिले के कन्तेली गांव में दशकों से चली आ रही हैं।

यह छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा गांव हैं जहां दशहरा का मेला तो लगता हैं, लेकिन रावण दहन नहीं होता। यह आज की नहीं बल्कि 16 वीं सदी से चली आ रही प्रथा हैं। दशहरे के दिन लगने वाले इस मेले में आस-पास के करीब 44 गांव के लोग शामिल होते हैं और यहां के राजा यशवंत सिंह के महल से एक राजा की सवारी निकलती हैं।

जिसमें लोग शामिल होकर नाचते गाते कुल देवी के मंदिर पहुंचते हैं। जहां पर राजा यशवंत सिंह के सुपुत्र राजा गुनेंद्र सिंह के द्वारा कुल देवी मां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पूजा करके पूरे क्षेत्र के खुशहाली की कामना की जाती हैं। इसके बाद राजमहल में एक सभा का आयोजन किया जाता हैं।

जहां ग्रामीणों के द्वारा राजा को सोन पत्ती भेंट कर उनका आशीर्वाद लिया जाता हैं। वहीं इस परंपरा के बारे में राज परिवार के द्वारा बताया गया कि उनके पूर्वजों ने यह अनोखी परम्परा शुरू की थी। इस दिन रावण दहन नहीं करने के पीछे उनकी ऐसी मान्यता हैं कि रावण जो बहुत बड़ा राजा था। 

जो तीनों लोक में राज करता था और वे भी राजा हैं। इसलिए एक राजा के द्वारा दूसरे राजा का वध न करके उनका सम्मान करने के मकसद से इस गांव में रावण का वध नहीं किया जाता। वहीं ग्रामीणों को भी आज के दिन मनाये जाने वाले इस आयोजन का बेशब्री से इन्तेजार रहता हैं।

वहीं कुल देवी के ऊपर इनकी गहरी आस्था जुड़ी हुई हैं और आज भी यह लोग राज परिवार का उतना ही सम्मान करते हैं, जितना इनके पूर्वज किया करते थे। इनके इन्ही श्रद्धा के चलते 16 वीं सदी की यह परम्परा आज भी इस गांव में देखा जा सकता हैं।

बहरहाल इस दशहरे की परंपरा के पीछे लोग यह मानते हैं कि आज के दिन गांव के सभी देवी-देवता मौजूद रहते हैं। ऐसे में किसी के निधन का सन्देश क्यों दे। ग्रामीण मानते हैं के रावण दहन का आशय उसकी मृत्यु से हैं। ऐसे में दशहरा मानना हैं तो देवी-देवताओं के बीच खुशहाली के साथ मनाये।