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बस्तर दशहरे की विश्व प्रसिद्ध रस्म रथ परिक्रमा का हुआ शुभारंभ

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Oct 12, 2018

आशुतोष तिवारी : बस्तर दशहरे की विश्व प्रसिद्ध रस्म रथ परिक्रमा का शुभारंभ हो चुका है। इस रस्म में बस्तर के आदिवासियों द्वारा हाथो से ही पारंपरिक औजारों द्वारा बनाये गये विशालकाय रथ की शहर परिक्रमा कराई जाती है। करीब 40 फीट उंचे व कईं टन वजनी इस रथ को परिक्रमा हेतु खींचने सैकड़ों आदिवासी स्वेच्छा से पहुंचते हैं। परिक्रमा के दौरान रथ पर माईं दंतेश्वरी के छत्र  को विराजमान कराया जाता है। बस्तर दशहरे कि इस अद्भुत रस्म कि शुरुवात 1410 ईसवीं में तात्कालिक महाराजा पुरषोत्तम देव के द्वारा कि गई थी। महाराजा पुरषोत्तम ने जगन्नाथ पूरी जाकर रथ पति कि उपाधि प्राप्त की थी। जिसके बाद से अब तक यह परम्परा अनवरत इसी तरह चले आ रही है, दशहरे के दौरान देश में इकलौती इस तरह की परंपरा को देखने हर वर्ष हजारों की संख्या मे लोग बस्तर पहुंचते हैं।

1400 ईसवीं में राजा पुरषोत्तम देव द्वारा आरंभ की गई रथ परिक्रमा की इस रस्म को 700 सालों बाद आज भी बस्तरवासी उसी उत्साह के साथ निभाते आ रहे हैं।  नवरात्रि के प्रथम दिन से सप्तमी तक मांई जी की सवारी को परिक्रमा लगवाने  वाले इस रथ को फुल रथ के नाम से जाना जाता है। मांई दंतेश्वरी के मंदिर से मांईजी के मुकुट को डोली में रथ तक लाया जाता है। इसके बाद सलामी देकर इस रथ कि परिक्रमा का आगाज किया जाता है।

बस्तर में दशहरा पर्व की यह पंरपरा सदियो से चली आ रही है। हर वर्ष इस  पर्व को लेकर लोगो मे भी काफी उत्साह देखा जाता है, बस्तरवासियो के साथ साथ देश के कोने कोने से लोग इस दशहरे पर्व खासकर रथ परिक्रमा का लुत्फ उठाने बस्तर पंहुचते है।
लगभग 40 टन वजनी इस रथ को सैकड़ों आदिवासी मिलकर खींचते हैं। इसे मांई दंतेश्वरी के प्रति आदिसावियो की आस्था ही कहेंगे कि लगभग 700 साल पुरानी इस परम्परा में इस आधुनिकरण के दौर में भी कोई बदलाव नहीं आया है।