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छत्तीसगढ़ की होनहार खिलाड़ी आज खेतों में हल चलाने को मजबूर, पढ़िए पूरी खबर

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Jun 22, 2018

एक होनहार खिलाड़ी जो कल आने वाले वक्त में छतीसगढ़ का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन करने का सपना देखा करती थी। वह आज अपने पिता की हत्या के बाद उन सारे सपनों को ताक पे रखने को मजबूर है। कल तक जो सरिता नेशनल लेबर पर अपना जौहर दिखा रही थी। वह आज पिता की मौत के बाद मां के साथ फावड़ा लेकर खेतो में दो वक्त की रोटी तलाशने को मजबूर है। हालातों ने सरिता की जिंदगी दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया, देश की राजधानी दिल्ली,रायपुर,अम्बिकापुर और सरगुजा जैसी जगहों में अपने खेल की प्रतिभा दिखाने वाली सरिता अपने पिता कुम्मा भास्कर की हत्या के बाद अपने घर का बोझ खेतो में फावड़ा चलाकर उठा रही है।

इधर पुलिस इसे नक्सल हत्या न मानते हुए आपसी रंजिश में हत्या बता रही है। और घटना के दो माह बीत जाने के बाद भी आज तक पुलिस हत्यारो का पता लगाने में नाकाम रही। जबकि सरिता की पिता की हत्या के वक्त नक्सली पर्चे दिखाई दिये थे और हत्या करने वाले हथियार लेकर उस रात मौत की खूनी वारदात को अंजाम देने पहुँचे हुए थे। खैर जो भी हो लेकिन आज सरिता का पूरा भविष्य दाव पर लग गया है।

क्या था पूरा मामला
दन्तेवाड़ा जिले के मोलसनार गांव में 27 अप्रैल 2018 को सरिता भास्कर के पिता कुम्मा भास्कर की हत्या अज्ञात हमलावरों ने घर पर आकर कर दी थी। और हत्या के बाद शव के पास भैरमगढ़ एरिया कमेटी के नक्सली पर्चे भी हमलावर छोड़ गये थे सरिता भास्कर घटना की रात उन हथियार बन्द अज्ञात हमलावरों से घण्टो अपने पिता के लिए लड़ती रही। इस घटना के बाद सरिता के सपनो में काले बादल छा गये। और इस अनहोनी ने एक नेशनल लेवल की खिलाड़ी की जिंदगी ही बदल दी। छोटी बहन देवती और माँ की जिम्मेदारी सरिता के कंधों पर आ गयी। इसलिए मैदान से रिश्ता तोड़ खेतो में फावड़ा चलाने की मजबूरी नाजुक कंधे पर आ गयी है।क्योकि शासन-प्रशासन का कोई भी नुमाईंदा आज तक इस पीड़ित परिवार की सुध लेने की नही सोचा। इसे दन्तेवाड़ा का दुर्भाग्य कहे या सरिता की बदकिस्मती जो नक्सलवाद का ऐसा दंश आज झेलने को मजबूर है और पुलिस भी अब तक सरिता के पिता की कत्ल की गुत्थी भी अब सुलझा नही पाई जबकि लोग इसे नक्सली हत्या मान रहे है।

मामला हुआ पेचीदा
पुलिस की इस अनसुलझी सरिता के पिता की हत्या ने मामले को और पेचीदा बना दिया। पिता की मौत की चश्मदीद सरिता ने उन हमलावरों के हाथों में हथियार देखा था और मौत की सुबह शव के पास नक्सलियों के पर्चे भी दिखे थे शासन नक्सल पीड़ित हिंसा परिवार को मुआवजा देता है। मगर पुलिस की इस जांच ने सरिता भास्कर के परिवार को नक्सल हिंसा पीड़ित नाम के महरम से भी दूर कर दिया। 

पिता का सपना
पिता का सपना था बेटी आगे बढ़े और खेल की दुनिया मे एक बड़ा मुकाम हासिल करें। लेकिन सरिता का यह सपना पिता की मौत के बाद दफन हो गया। दिल्ली, रायपुर और तमाम जगह में अपना जौहर दिखाने वाली सरिता अब खामोश हो गयी। उनका भी सपना था कि बस्तर नाम देश नही विदेश में रौशन करे। पर मजबूरियों के आगे सरिता की प्रतिभा ने घुटने टेक दिये।