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जोगी बिठाई को सिरहासार भवन में पूर्ण विधी विधान के साथ किया गया संपन्न

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Oct 11, 2018

आशुतोष तिवारी : अपनी अनोखी परंपराओं के लिये विश्वचर्चित बस्तर दशहरा की एक और अनुठी व महत्वपूर्ण रस्म जोगी बिठाई को आज देर शाम सिरहासार भवन में पूर्ण विधी विधान के साथ संपन्न किया गया। परंपरानुसार एक विशेष जाति का युवक प्रति वर्ष 9 दिनों तक निर्जल उपवास रख सिरहासार भवन स्थित एक निश्चित स्थान पर तपस्या हेतु बैठता है। इस तपस्या का मुख्य उद्देश्य दशहरा पर्व को शांतिपूर्वक व निर्बाध रूप से संपन्न् कराना होता है। 

जोगी बिठाई रस्म में जोगी से तात्पर्य योगी से है, इस रस्म से एक किवदंती जुड़ी हुई है मान्यताओं के अनुसार वर्षों पूर्व दशहरे के दौरान हल्बा जाति का एक युवक जगदलपुर स्थित महल के नजदीक तप की मुद्रा में निर्जल उपवास पर बैठ गया था। दशहरे के दौरान 9 दिनों तक बिना कुछ खाये पिये, मौन अवस्था में युवक के बैठे होने की जानकारी जब तत्कालीन महाराजा प्रवीरचंद  भंजदेव को मिली तो वह स्वयं युवक से मिलने योगी के पास पहुंचे, व उससे तप पर बैठने का कारण पूछा। तब योगी ने बताया कि उसने दशहरा पर्व को निर्विघ्न व शांति पूर्वक रूप से संपन्न कराने के लिये यह तप किया है। जिसके बाद राजा ने योगी के लिये महल से कुछ दूरी पर सिरहासार भवन का निर्माण करवाकर इस परंपरा को आगे बढ़ाये रखने में सहायता की। तब से हर वर्ष अनवरत इस रस्म में जोगी बनकर हल्बा जाति का युवक 9 दिनों की तपस्या में बैठता है। इस वर्ष भी बडे आमाबाल गांव निवासी भगतराम नाग  ने जोगी बन करीब 700 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के तहत् स्थानीय सिरहासार भवन में दंतेश्वरी माई व अन्य देवी देवताओं का आशीर्वाद लेकर निर्जल तपस्या शूरु की है। इस रस्म में शामिल होने बस्तर राजपरिवार के  साथ बड़ी संख्या में आम नागरिक सिरहासार भवन में मौजूद थे।

स्वरस एक्सप्रेस से बात करते हुए जोगी ने बताया कि यह जोगी बिठाई की परमपरा 1414 से चली आ रही है । 9 दिन तक बिना अन्न , जल ग्रहण किये बस्तर दसहरा को अन्नबीघन सम्पन करने के लिए आराध्य देवी माता दंतेष्वरी की जाप की जाती है । इसमें खास बात यह है कि जो जोगी बैठता है वह विश्व प्रसिद्ध बस्तर दसहरा का लुफ्त नही उठा पता है।