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दंतेवाड़ाः नवरात्रों के शुरू होते ही दंतेश्वरी मंदिर में श्रद्धालु की उमड़ी भीड़

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Apr 6, 2019

पंकज सिंह भदौरिया- नवरात्रों के शुरू होते ही देश भर के सभी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगती है। ऐसे ही बावन (52) शक्ति पीठों में से एक दंतेवाड़ा की दंतेश्वरी मंदिर है। जहां भक्तों की अपार भीड़ उमड़ जाती है। दंतेश्वरी मंदिर में श्रद्धालु पूजा अर्चना करते हैं  और सबकी खुशहाली की कामना करते है। मान्यताओं के अनुसार माँ सती के शरीर के छिन्न भिन्न होने के बाद उनका दांत यहां गिर गया था। जिसके बाद से ही माता का नाम दंतेश्वरी पड़ा। देश के 52 शक्ति पीठों में से एक माता दंतेश्वरी की मान्यता बहुत अधिक है। इस मंदिर में विराजमान साक्षात माँ अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करती हैं। माँ के दर्शनों के लिए यहाँ भक्त दूर दूर से आते हैं। यहां नवरात्र को पवित्र मानते हुए न केवल स्थानीय लोग यहाँ पहुँचते हैं बल्कि दूर विदेश से भी पर्यटक इस मंदिर में अपनी मनोकामना लेकर पहुँचते हैं। नौ दिनों तक शहर भक्ति में डूबा रहता है। मान्याता है कि माईजी भक्तों की हर मुराद पूरी करती है। साल दर साल यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है।

नौ दिनों तक मंदिर में लगी रहती है भक्ति गीत, चारों और माता के जयकारा की गूंज

दंतेवाडा में मां दंतेश्वंरी का मंदिर दशकों से आस्था का केंद्र रहा है। इस मंदिर के स्थापित होने की अलग अलग किवदंतियां हैं। बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के इस मंदिर में यूं तो रोजाना ही लोग मत्था टेकने पहुंचते हैं लेकिन बात अगर नवरात्र की हो तो भक्तों की अपार भीड यहां पहुंचती है। पहले दिन से ही यहां का माहौल भक्तिमय हो जाता है। शहर में बजने वाले भक्ति गीत, चारों ओर माता का जयकारा ये नजारा नौ दिनों तक देखा जा सकता है। आम दिनों की तुलना में नवरात्र के मौके पर बडी संख्या‍ में श्रद्दालु मांईजी के दरबार में पहुंचते और मनोकामना मांगते हैं। भक्तों का मानना है कि  माताजी के दरबार में अर्जी देने से हर मुराद पूरी होती है यही वजह है कि हर साल मांईजी के मंदिर में आने वाले श्रद्दालुओं की संख्याी बढती ही जा रही है। नवरात्र के मौके पर न केवल बस्तर से बल्कि दीगर राज्यों व् विदेशों से भी भक्त माताजी के दर्शन को पहुंचते हैं।

इस मंदिर से संबंधित कई किवदंतियां हैं प्रचलित

प्रचलित किवदंतियों के अनुसार मां दंतेश्वरी यहां वारंगल के राजा अन्नमदेव के साथ यहां आयी थी। माताजी ने राजा से कहा था कि जहां तक तुम चलोगे वहां तक तुम्हारा राज्य होगा, लेकिन पीछे पलट कर मत देखना। अगर पलट कर देखोगे तो मैं वहीं स्थापित हो जाउंगी। इसके बाद माताजी ने राजा को चलने को कहा और माताजी राजा के पीछे चलने लगी। लेकिन शंखिनी और डंकिनी के संगम पर माता के पैरों के पायलों की आवाज आनी बंद हो गयी। राजा को शंका हुई कि माताजी उनके साथ नहीं आ रही। लिहाजा उन्होंने पीछे पलट कर देखा इसके बाद माताजी यहीं स्थापित हो गयी। एक अन्य किवदंती के अनुसार माता सती का दंत यहां गिरा था जिसकी वजह से इस जगह का नाम दंतेवाडा पडा।

बताया जाता है कि यहां आने वाले श्रद्दालु को माईजी कभी निराश नहीं करती। यही वजह है कि मांईजी के प्रति लोगों की आस्था‍ बढती ही जा रही है। माना जाता है कि सच्चे दिल से मुराद मांगकर माईजी के दरबार में ज्योत जलाने से हर मनोकामना पूरी होती है। यही वजह है कि ज्योतों की संख्या हर साल बढ़ती ही जा रही है।