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क्या है पत्थलगढ़ी, क्यों कर रहे है यहाँ के आदिवासी आंदोलन ? जानिए पूरी खबर 

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Apr 22, 2018

गृह मंत्रालय ने नक्सल प्रभावित जिलों की सूची से जशपुर जिले का नाम जैसे ही हटाया यहाँ आदिवासियों के हक की आवाज बुलंद हो गई है और पत्थलगढ़ी की प्रथा शुरू की जा रही है पत्थलगढ़ी में लिखे शब्दों से सरकार के कान खड़े हो गए हैं और इसे यह कह सकते हैं नक्सल विचारधारा में हड़कंप मच गया है। जिसे रोकने की सरकारी कोशिशें तेज हो गई हैं।

बताया जा रहा है की 22 अप्रैल को बगीचा विकासखण्ड के बछरांव बाजारडाँड़ में तीन गांव के हजारों आदिवासी सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले पत्थलगढ़ी को लेकर बड़ी सभा करने जा रहे हैं। सिहारडांड, बुटँगा, बछरांव इन तीन गांवों में संविधान की बातों को लिखते हुए जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के पूर्ण अधिकार नहीं मिलने की बात ग्रामीण आदिवासी कह रहे हैं। इनका कहना है कि हमें पांचवी अनुसूची का लाभ नहीं दिया जा रहा है और पथलगढ़ी लगाने से जबरन रोका जा रहा है। सरकार के लोग नोटिस थमाकर डरा रहे हैं।

इन गांवों में आदिवासी समाज पत्थरगढ़ी तैयार करने में जुट गया है। बछरांव में तो बकायदा प्रशासन के मना करने के बावजूद युवकों ने पत्थलगढ़ी तैयार कर दिया है। इन आदिवासियों की माने तो ये बाबा अम्बेडकर के दिये संवैधानिक अधिकारों की बात लिखकर गैर आदिवासियों को बताना चाहते हैं कि यह इलाका आदिवासियों का है और रूढ़ि प्रथा के अनुसार ग्राम पंचायत के अलावा आदिवासियों की ग्रामसभा से ही सारा शासन किया जाएगा। 

अब यह तो हुई पत्थलगढ़ी को लेकर जशपुर में शुरू हुई हलचल की बात। अब यह भी जान लेना जरूरी है कि ये पत्थलगढ़ी है क्या? 
आदिवासियों की पुरानी परंपरा है पत्थलगड़ी। पहले आदिवासी इसका उपयोग अवांछित लोगों को गांव के अंदर घुसने से रोकने के लिए किया करते थे, लेकिन बीते कुछ सालों से इसमें काफी तेजी आई है बताया जाता है कि खूंटी और बंदगांव क्षेत्र में जो पत्थलगड़ी हो रही है, वह सरना समाज की पत्थरगढ़ी से अलग है दरअसल पत्थरगढ़ी करने वाले नहीं चाहते कि उनके गांव में बाहरी लोग आएं वैसे पत्थरगढ़ी आदिवासी समाज की परंपरा है इसके तहत से गांव का सीमांकन किया जाता है लेकिन अब इसी की आड़ में इनदिनों गांव के बाहर अवैध ढंग से पत्थरगढ़ी की जा रही है पत्थर पर ग्राम सभा का अधिकार दिलाने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेदों की गलत व्याख्या करते हुए ग्रामीणों को आंदोलन के लिए उकसाया जा रहा है।

खासकर झारखंड में पत्थरगढ़ी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा है कि पत्थरगढ़ी की आड़ में अफीम की अवैध खेती की जा रही है इन सबको राष्ट्र-विरोधी ताकतें संरक्षण दे रही हैं बता दें कि झारखंड में खूंटी और गुमला जिले के आदिवासी बहुल गावों में इन दिनों पत्थलगड़ी का कार्यक्रम काफी तेज गति से हो रहा है इसमें पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों का गांव में ग्राम सभा की बिना अनुमति के प्रवेश निषेध है।

छत्तीसगढ़ की बात करें तो बस्तर के बाद सरगुजा सम्भाग में अब ये पत्थलगढ़ी तैयार करने की हलचल शुरू हुई है। सूरजपुर जिले के ओड़गी गांव के बाहर लगे शिलापट्ट पर साफ तौर पर चेतावनी लिखी है कि गांव में बिना ग्राम सभा की अनुमति के किसी भी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश मना है। हालांकि अभी जशपुर जिले के इन गांवों में ऐसे कठोर चेतावनी भरे शब्दो के साथ पत्थलगढ़ी नहीं बनाए हैं। इसके पीछे प्रशासन की सक्रियता एक कारण हो सकता है जिसके चलते आदिवासी हक की बात करने वाले नेताओं ने अपनी रणनीति में हल्का बदलाव कर पत्थलगढ़ी तैयार करने के लिए अन्य आदिवासियों को भी इस आंदोलन में शामिल करना चाह रहे हों। पत्थलगढ़ी लगानेवाले लोग ज्यादातर ईसाई समुदाय के उराँव जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। वही सरपंच बसंती टोप्पो का कहना है की एसडीएम साहब बुलाये थे उन्होंने इन लोगो को समझाने की बात कह रहे है मै कोशिस कर रहा हूँ लेकिन गाँव के कोई सुन नहीं रहा है।

झारखण्ड और बस्तर की तर्ज पर पत्थलगढ़ी की आड़ में कहीं नक्सलवाद न पनप जाए अलगाववादी ताकतें सिर न उठाएं इस बात की आशंका से सरकार परेशान है और अलर्ट भी हो गई है। जिसके चलते इंटेलिजेंस के साथ ही पुलिस भी पूरी तरह सक्रिय हो गई है। प्रशासन इस गतिविधि को साफ तौर पर असंवैधानिक बताकर बकायदा कुछ चिन्हित लोगों को नोटिस थमा दी है। वहीं इन आदिवासियों के द्वारा पत्थलगढ़ी में संवैधानिक अधिकारों को लिखने के लिए इनकी ग्रामसभा की ओर से प्रशासन को जिसमें कलेक्टर, एसपी, एसडीएम, थाना प्रभारी तहसीलदार को भी नोटिस भेजकर 22 अप्रैल की सर्व आदिवासी सभा मे उपस्थित होने कहा गया है। अब ये देखनेवाली बात होगी कि पत्थलगढ़ी को लेकर सरकार आदिवासियों के साथ कैसे तालमेल बिठा पाती है या फिर पथलगढ़ी को लेकर शुरू हुए इस आंदोलन को कैसे कुचल पाती है।