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अन्दुरुहनी इलाकों में दावों की खुली पोल, 21वीं सदी में भी आदिम युग में जीने को मजबूर ग्रामीण

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Jan 22, 2019

सुशील सलाम  - एक ओर जहां केंद्र और राज्य की सरकार विकास के तमाम दावे कर रही हैं वहीं कांकेर जिले के अन्दुरुहनी इलाकों में इन दावों की पोल खुल रही है जिला मुख्यालय से महज 45 किलोमीटर दूर बसे बांसकुंड पंचायत के ऊपर तोकना गांव में योजनाएं दम तोड़ रही हैं यहां के हालात ये हैं कि लोग 21वीं सदी में भी आदिम युग की तरह जीने को मजबूर हैं।

अपने लिए पुल बनाने को मजबूर ग्रामीण

आधुनिक मशीनरी के दौर में यहां के लोगों को हर बरसात में अपने लिए पुल बनाने पड़ते हैं यदि किस्मत ने साथ दिया तो बरसात कट जाती है और साथ न दिया तो ये लोग बारिश में पूरी दुनिया से कट जाते हैं गांव में पहुंचने के लिए लोग आज भी पगडंडी का सहारा लेते हैं सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस गांव तक पहुंचने के लिए दो नदी और एक पहाड़ी नाले को पार करना पड़ता है लेकिन किसी पर भी पुल का निर्माण अभी तक नहीं हो पाया है इसके कारण ग्रामीणों को लकड़ी के पुल का सहारा लेना पड़ता है।

50 परिवार वाला गांव टापू में तब्दील

बारिश के दिनों में लकड़ी का पुल बह जाता है और लगभग 50 परिवार वाला यह गांव टापू में तब्दील हो जाता है ग्रामीण रामसाय पटेल बताते हैं कि नदी नालों पर पुल के लिए कई बार शासन प्रशासन से गुहार लगाई गई जनप्रतिनिधियों को अवगत करवाया गया लेकिन उनकी मांग पूरी करने वाला कोई नहीं है अब तक उनकी मांग नहीं सुनी गई है इस वजह से उन्हें आज भी मुसीबतों से जूझना पड़ रहा है।

किसी भी अधिकारी ने नहीं लिया हालात का जायजा

सरपंच झाड़ूराम मंडावी बताते हैं कि हर साल ऊपर तोनका, नीचे तोनका और हिलेचुर के ग्रामीण नाले में पानी कम होने पर लकड़ी का पुल बनाने में जुट जाते हैं ताकि उन्हें आने-जाने में आसानी हो सके अब तक किसी भी अधिकारी ने यहां हालात का जायजा लेने नहीं पहुंचा है।