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सरकारी अस्पतालों में लोग सुविधाओं से वंचित, स्वीपर और वार्ड बॉय के भरोसे चल रहा अस्पताल

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Mar 5, 2019

संदीप सिंह ठाकुर : जिले में स्वास्थ्य महकमे का बहुत ही बुरा हाल है सरकारी अस्पतालों में लोगों को स्वास्थ्य के नाम पर कोई भी ऐसी सुविधा उपलब्ध नही जिससे उनके स्वास्थ्य में किसी तरह का बेहतर सुधार हो सके सरकार अगर व्यवस्था करती भी है तो सरकारी नुमाइंदे ही इसमें पलीता लगाने को आमादा है। सरकार चाहे लाख दावे कर ले लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। आपको बताना यहां जरूरी होगा की सरकार लोगो को बेहतर इलाज देने के लिए गांव गांव में उपस्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना की है जिससे गांवो में ही लोगो को बेहतर इलाज मिल सके। लेकिन क्या सिर्फ बिल्डिंग बना देने मात्र से ही लोगो के स्वास्थ्य मे सुधार आ जायेगा। उनको बेहतर इलाज मिल जाएगा। जी नही ऐसा बिल्कुल भी नही है। जिले में अधिकतर स्वास्थ्य केंद्रों में ताला लटकता रहता है वजह ये नही की स्टाफ नही है स्टाफ तो हर प्रथमिक स्वास्थ्य केंद्र में दस से बारह लोग पदस्त है लेकिन अस्पताल में तैनात कोई नही रहता अधिकतर अस्पताल तो ऐसे है जो स्वीपर या वार्ड ब्याय के ही भरोसे चल रहा है।

मामला मुंगेली के खपरीकला का
ताजा मामला मुंगेली जिले के खपरीकला है जहां आसपास के 20 गांव में एक सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है जहाँ देखने से तो अस्पताल चकाचक दिखाई दे रहा है और यहां सुविधाएं भी 10 स्टाफ का है लेकिन दुख इस बात का है की बस यंहा लोगो को बेहतर इलाज नही मिल पाता। क्योकि यहां कोई स्टाफ अपनी ड्यूटी पर पूरे समय तैनात रहता ही नही है। डॉक्टर अपने प्राइवेट क्लीनिक में व्यस्त रहते है स्टाफ नर्स भी अपनी मर्जी से आते जाते है। यहां 4 बजे के बाद इलाज नही किया जाता 4 बजे के बाद अगर कोई मरीज आता है तो फिर उसका भगवान ही मालिक है। ऐसा ही एक मामला पास के ही गांव का है जो अस्पताल से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर है जहाँ पर एक 70 वर्षीय महिला ने खाना बनाते समय आटे में कीटनाशक पाउडर मिलाकर रोटी बनाने का सामने आया है जिसे खाकर परिवार के 5 लोग गंभीर रूप से बीमार हो गए है जिसमे एक दो वर्षीय बच्ची की मौत हो गई है।

अस्पताल पर जड़े ताले
दरअसल रोटी बनाते समय आटा गीला हो गया तभी उस वृद्ध महिला ने पास ही थैले में रखे कीटनाशक पाउडर को धोखे से आटे में मिलाकर उसकी रोटी बना दी जिसे घर के सदस्यों ने खाया और उस महिला ने भी खाया विषाक्त रोटी खाने के कुछ ही देर बाद उनकी तबियत बिगड़ने लगी। सबसे पहले बच्चों की तबियत बिगड़ी जिसे आनन फानन में पास ही खपरी कला गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शाम 5 बजे लेजाया गया। जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ताला लटका हुआ था। काफी देर जहां इंतजार के बाद भी कोई नही आया। अस्पताल के साथ स्टाफ क्वारट्ररों में भी ताला लगा हुआ था। जब आधा घण्टे इंतजार के बाद जब कोई नही आया तो परिजन बच्ची को लेकर पंडरिया चले गए जो उनके गांव से 20 किलोमीटर दूर है। जहां बच्ची की हालत नाजुक देख कवर्धा रेफर किया गया जहां दूसरे दिन बच्ची की मौत हो गई और बाकी 4 लोगो की हालत नाजुक बनी हुई है। सवाल ये है की फिर गांव में उस अस्पताल के होने का क्या मतलब अगर समय पर अस्पताल में डॉक्टर होते तो उस बच्ची को इलाज मिल गया होता तो शायद उस नन्ही सी बच्ची की जान बचाई जा सकती थी। ग्रामीण और परिजनों का आरोप है की अस्पताल में हमेसा ताला लगा रहता है और डॉक्टर भी उपलब्ध नही होने की वजह से गांव वालों को सही इलाज नही मिल पाता।

अस्पताल के संस्था प्रमुख ने मामले को सिरे से नकारा
जब इस मामले में खपरीकला अस्पताल के संस्था प्रमुख एएमओ डॉक्टर संजय चन्द्राकर से बात की गई तो उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज किया और कहा की अस्पताल में ताला नही लगाया गया था अगर लगा होगा तो बाजू वाला आपातकाल के एक दरवाजे को खुला रखा जाता है। उन्होंने ये भी कहा की उस वक्त हमारा स्टाफ अपने कमरे में ही था।