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ग्रामीण अंचलों में आज भी ऐसी परम्परायें जिनका कई दशकों से हो रहा आयोजन

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Mar 23, 2019

अजय गुप्ता : होली पर जहां शहरी क्षेत्रों में आमजन अपने मनोरंजन और उत्साह के लिये कई प्रकार के आयोजन करते है जिनमें भारी भरकम राशि खर्च होती है। वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अंचलों में आज भी ऐसी परम्परायें हैं जिनके माध्यम से ग्रामीण अपना मनोरंजन करते हैं। ऐसे आयोजनों में न बड़ा तामझाम होता है और न ज्यादा खर्च होता है अगर कुछ होता है तो लोगों का उत्साह, उमंग और मस्ती का वह मंजर जिसमें ग्रामीण अपनी सुध-बुध भूलकर उत्साह में सराबोर दिखाई देते हैं। 

गांव में होता है आयोजन 
कोरिया जिला मुख्यालय से लगभग 80 किमी दूर स्थित ग्राम बैरागी की पहचान होली के दो दिन बाद होने वाले एक विशेष आयोजन को लेकर पूरे प्रदेश में बनी हुई है। यह अनूठी प्रतियोगिता न केवल छत्तीसगढ़ वरन् पूरे भारतवर्ष में अपनी तरह की एकमात्र ऐसी प्रतियोगिता है जिसमें पानी के अंदर जहां केकड़ा दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है वहीं खुले में जंगली मुर्गा, गिलहरी की रोमांचक दौड़ होती है जिसे देखने आसपास के कई गांवों के लोग काफी संख्या में एकत्रित होते हैं। प्रतियोगिता में दर्शकों के लिये न तो कोई शुल्क होती है और न तो किसी प्रकार का सहयोग भी उनसे लिया जाता है। 

कुछ इस तर​ह से होती है प्रतियोगिता
अभी तक आपने कई प्रकार की दौड़ व कई प्रकार की प्रतियोगिताओं के बारे में सुना होगा लेकिन आपने कभी यह सुना है कि नदी में रहने वाला केकड़ा, जंगल में रहने वाली गिलहरी और जंगली मुर्गा की भी दौड़ होती हो। जी हां यह अजीबोगरीब प्रतियोगिता कोरिया जिले के सुदूर वनांचल क्षेत्र स्थित ग्राम बैरागी में बीते कई दशकों से होती है जहां ग्रामीण उत्साह से इस प्रतियोगिता में भाग लेते हैं। खुले आसमान में होने वाली इस प्रतियोगिता में रोमांच इस कदर हावी रहता है कि जो भी एक बार इस प्रतियोगिता में शामिल हुआ वह अगले वर्ष जरूर इस प्रतियोगिता को देखने आता है। 

कई दशकों से आयोजित हो रही प्रतियोगिता
बीते कई दशकों से होने वाली इस अनूठी प्रतियोगिता को देखने लोगों के उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि होली के बाद इस प्रतियोगिता की तैयारी में पूरे गांव के लोग दो समूहों में बंटकर जंगल और नदी की ओर चल देते हैं। इनमें से एक समूह पुरूषों का होता है जिसमें बच्चें भी शामिल होते हैं।वहीं दूसरे समूह में महिलाएं और युवतियॉ शामिल होती हैं। पुरूष जंगल में जाकर जंगली मुर्गा, गिलहरी ढूढ़ते हैं और महिलाएं नदियों में जाकर केकड़ा और मछली पकड़ती हैं और फिर दूसरे दिन मुकाबले की तैयारी शुरू होती है। 

खेल के पीछे की क्या है मान्यता?
प्रतियोगिता की शुरूआत में ग्रामीण तयशुदा स्थान पर एक बड़ा घेरा बनाते हैं। इस घेरे में गांव के पुरूष और खिलाड़ी महिलाएं शामिल होती हैं। सीटी बजने के साथ ही गांव के पुरूष वर्ग के लोग हाथ में पकड़कर रखे खरगोश और गिलहरी को एक साथ छोड़ते हैं। इन्हें पकड़ने के लिये महिलाओं का समूह इनके पीछे जंगल की ओर भागता है। इस खेल के पीछे मान्यता है कि अगर महिलाएं पुरूषों द्वारा छोड़े गये मुर्गा और गिलहरी को पकड़ लेती हैं तो गांव में वर्ष भर अकाल नही पड़ेगा। वहीं अगर महिलाएं पकड़ने में सफल नही हुई तो उन्हें अर्थदंड भी लगाया जाता है जिससे मिलने वाले राशि का सामूहिक भोज में उपयोग किया जाता है। 

प्रतियोगिता में महिलाओं व पुरूषों के साथ बच्चे भी लेते हैं भाग
महिलाओं के बाद पुरूषों और बच्चों के लिये प्रतियोगिता शुरू होती है जिसमें गांव के लोगों द्वारा पॉलीथीन लगाकर एक छोटा तालाब बनाया जाता है जिसमें गांव की महिलाएं जो नदियों से मछली और केकड़ा पकड़कर लाती हैं उसे छोड़ा जाता है। इस प्रतियोगिता में निर्णायक द्वारा सीटी बजाने के साथ ही पुरूषों को इस तालाब से मछलियॉ और  केकड़ा पकड़ना होता है। जो पुरूष सबसे अधिक केकड़ा और मछली पकड़ता है उसे विजयी घोषित किया जाता है। इसी कड़ी में ग्रामीणों के बीच रोमांचकारी केकड़ा दौड़ प्रतियोगिता काआयोजित की जाती है। महिलाओं द्वारा पकड़े गये केकड़ों को खुले मैदान में छोड़ा जाता है। सबसे तेज दौड़ने वाले केकड़ें को विजेता के खिताब से सम्मानित किया जाता है। 

सामूहिक भोज का होता है आयोजन 
इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले समस्त खिलाड़ियों और ग्रामीणों के लिये बैरागी गांव के लोगों द्वारा रात में सामूहिक भोज का आयोजन किया गया। जिसमें सभी तबके के लोग उत्साहपूर्ण वातावरण में शामिल हुये। इस परंपरा को लेकर ग्रामीणों का कहना है कि बीते कई दशकों से गांव में यह अनूठी प्रतियोगिता आयोजित होती है। इसमेंउनका एक रूपये भी खर्च नही होता। गांव के लोग अपनी तरफ से पूरी व्यवस्था करते हैं।