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यहां लगता हैं गधों का मेला, होता हैं करोड़ों का कारोबार

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Oct 21, 2017

लखनऊ/यूपी : आपने मेले तो बहुत देखे होंगे, पर गधों का मेला शायद ही कहीं देखा हो। राजस्थान में ऊंटों का मेला लगता है लेकिन धार्मिक नगरी चित्रकूट में गधों का ​मेला लगता है।
मंदाकिनी के तट पर लगने वाले गधे मेले में विभिन्न प्रदेशों से लगभग 15 हजार गधे, घोड़े और खच्चर आए। गधों की कीमत 5 हजार से 1 लाख तक रही।

3 दिनों के दौरान गधा मेले में करीब 10 करोड़ का करोबार हुआ, किंतु शदियों से चले आ रहे इस मेले की लगातार प्रशासन अनदेखी कर रहा हैं। प्रशासनिक उपेक्षा, ठेकेदारों की मनमानी व नगर पंचायत के अधिकारियों के उपेक्षित रवैये के चलते शदियों से चली आ रही यह परम्परा अब धीरे-धीरे टूटती नजर आ रही है।

हम बात कर रहे है दीपावली के एक दिन बाद लगने वाले गधा बाजर की। जहां पर हजारों की संख्या में गधों और खच्चरों का मेला लगता है। जिसकी बाकायदा नगर पंचायत व्यवस्था करता है। मेले में देश के कोने-कोने से गधा व्यापारी अपने पशुओं के साथ आते है।

चित्रकूट में​ गधों का यह​ ऐतिहासिक ​मेला हैं, जिसमें लाखों का व्यापार होता हैं। इस​ मेले की परम्परा मुगल बादशाह औरंगजेब ने शुरू की थी। मूर्ति भंजक औरंगजेब ने चित्रकूट के इसी मेले से अपनी सेना के बेड़े में गधों और खच्चरों को शामिल किया था। इसलिए इस ​मेले का ऐतिहासिक महत्व है।

धार्मिक नगरी चित्रकूट में ​दीपावली में लगने वाले गधा बाजार में आने वाले व्यापारियों को कभी घाटा, तो कभी मुनाफा लगता है, ये बाजार पर निर्भर होता है। व्यापारियों की माने तो गधों की यहां पर अच्छी खाशी कीमत लगती है ​और चित्रकूट का ​मेला सबसे अच्छा माना जाता है।

यहां काफी दूर-दूर से गधा व्यापारी आते है। कुछ व्यापारी तो 3 पीढ़ियों से आ रहे हैं। व्यापारियों का कहना है कि नगर पंचायत और ठेकेदारों के द्वारा न तो साफ-सफाई की व्यवस्था की जाती और न ही सुरक्षा की।

यहां शराबी और असामाजिक तत्व घूमते रहते हैं। नगर परिषद के सीएमओ का कहना है कि नगर परिषद द्वारा गधा मेले में सभी सुविधाएं दी जा रही हैं। टेंट, पानी, बिजली, साफ-सफाई की पर्याप्त व्यवस्था की जाती हैं।

चित्रकूट नगर पंचायत द्वारा हर साल दीपावली के मौके पर ऐतिहासिक गधा मेले का आयोजन मंदाकिनी के तट पर किया जाता हैं। जिसकी एवज में गधा व्यापारियों से बकायदा ​राजस्व वसूला जाता है।

नगर पंचायत चित्रकूट को गधा मेले से हर वर्ष लाखों का राजस्व मिलता है, पर गधा व्यापारियों को कोई सुविधाएं नहीं दी जाती है। वहीं गधा मेले का ठेका लेने वाले ठेकेदार के लोग व्यापारियों ने अनाधिक्रत रूप से अवैध वसूली करते है। कई पीढ़ियों से व्यापारी चित्रकूट के गधा मेले में व्यापार करने आ रहे।

जहां खूटे का 50 रुपए लगता है, उसका 100 रुपए वसूला जाता है और बिक्री-खरीद का 5 सौ रुपए लिया जाता हैं। मेला क्षेत्र में चारों ओर गंदगी ही गंदगी रहती हैं। व्यापारी अब चित्रकूट के गधा मेले में असुरक्षा भी महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उनका कहना है उनसे अनाप-सनाप पैसा लेने के बाद भी यहां सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की जाती हैं। 

यहां चोरी का हर समय खतरा बना रहता हैं। यहां शराब बिकती हैं, असामाजिक तत्व घूमते हैं, किंतु न तो यहां नगर पंचायत का कोई बन्दा आता और न ही पुलिस रहती। सिर्फ ठेकेदार का राज चलता है।

इसलिए लगाता जाता हैं मेला

इस ऐतिहासिक गधे मेले के बारे में बताया जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब मूर्तिभंजक था। देशभर में जा जाकर मूर्तियों को खंडित करता था, लेकिन चित्रकूट में जब वह मंदाकिनी तट पर स्थित बालाजी मंदिर की मूर्तियां तोड़ने जा रहा था, उसी दौरान वह बेहोश हो गया।

हाथी घोड़े, और सारी सेना मूर्छित हो गयी, तब बालाजी मंदिर के पुजारी ने औरंगजेब और उसकी सारी सेना को मंदिर की पूजा की भभूत खिलाई और औरंगजेब सारी सेना सहित उठकर खड़ा हो गया। तब उसने मांफी के रूप में मंदिर के नाम कई बीघे जमीन दी तथा लगान माफ किया।

इतना ही नहीं उसने आसपास के गांवों से मिलने वाले लगान को मंदिर में देने का फरमान भी जारी किया और अपनी सेना में शामिल करने के लिये गधा मेले की शुरुआत की। तब से यह ऐतिहासिक मेला लगता आ रहा है।

किंतु इस ऐतिहासिक गधा मेले में कम होती गधा व्यापारियों की संख्या से अब इस मेले का अस्तित्व खतरे में दिखाई देता है। वहीं व्यापारियों में सुरक्षा को लेकर चिंता होने लगी है। यदि गधा मेले की अनदेखी इसी तरह से की जाती रही, तो यहा गधा मेला खत्म होने में बहुत देर नहीं लगेगी।