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'हैप्पी बर्थडे टू यू मनाने' कोटा आए किशन कन्हैया

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Sep 5, 2018

- डॉ आदित्य जैन 'बालकवि'

'हैप्पी बर्थडे टू यू मनाने' कोटा आए किशन कन्हैया। शहर का हाल देखकर मुंह से निकला... अरी मोरी मैया ! थोड़ा चौंके.. थोड़ा घबरायें, बोले.. नारद जी, आप हमें ये कहां उठा लायें। नारद बोले.. क्षमा करें प्रभु.. मैंने तो चित्रगुप्त के लैपटॉप पर स्मार्ट सिटी लिखकर ही सर्च किया था। आपके लिए पूरा एक दिन का नेट पैक खर्च किया था। अब मुझे क्या पता था.. कि खयाली दावों की ये विरासत सिर्फ कागजों में ही खड़ी मिलेगी। राजा चौपट, प्रशासन नाकारा और व्यवस्था निठ्ठली पड़ी मिलेगी। बलिहारी तो उन लोगों पर हूँ प्रभु.. जो ऐसे हालात में भी शहर को नंबर वन बताते हैं। समझ नही आता... इतनी बढ़िया क्वालिटी की चरस कहाँ से लाते हैं।
         

अरे... प्रभु आप तो अभी से घबरा गए.. ये तो सिर्फ नमूना हैं। यहां विकास की गंगा नही.. नौटँकी की यमुना हैं। इसलिए बेचारे उद्धव और माधव यहां 'योग' नही 'रोग' का मुख चूमते हैं। कालिया नाग नदियों में नहीं...कुर्ते पहनकर ए.सी. गाड़ियों में घूमते हैं। पर्यटन के नाम पर भी बस गंदगी के ढेर हैं। बेईमानी सेर.. तो दलाली सवासेर हैं। आश्चर्य तो इस बात का हैं कि फिर भी ना जाने क्यों.. स्वच्छता से लेकर शौचमुक्त सर्वे तक.. सबमें कोटा के परचम छाए रहते हैं। शायद इसी अतरंगी तकनीक को इंसानों की भाषा में 'सेटिंग' कहते हैं।
           

कन्हैया मुस्कुराते हुए बोले.. अच्छा देवर्षि ! इतना ही हैं.. या और भी कोई बीमारी हैं ? नारद बोले...क्या बताएं प्रभु, बेचारे नगरवासियों की बेहाल ट्रैफिक, बढ़ते अपराध और आवारा मवेशियों के साथ हर रोज़ जंग जारी हैं। सच कहूं तो ये 'मवेशी' नहीं.. निगम द्वारा मनोनीत 'जनसम्पर्क अधिकारी' हैं.. जिनके सम्पर्क का टीका नेह पर नही देह पर रचता हैं। जो एक बार सम्पर्क में आ जाये.. वो सम्पर्क करने लायक नही बचता हैं। साथ ही तबेलों के रूप में जगह-जगह 'बीमारी बुलाओ परियोजना केंद्र' भी खोले गए हैं...ताकि उपाय के नाम पर पेट पलता रहे। हवा भी चलती रहे.. और दिया भी जलता रहे।
           

 तभी कान्हा का रथ गड्ढों में छुपी सड़क से पास हुआ। रथ इतना डोला.. कि उन्हें 'डोल-ग्यारस' का अहसास हुआ। तिलमिलाते हुए बोले... अब ये क्या गड़बड़झाला हैं ? नारद बोले.. प्रभु जब से कजरारे नैनों वाली निगम ने लापरवाही का श्याम रंग डाला हैं। हर तरफ बस काला ही काला हैं। अब तो न्यास भी इस रंग में रंग गया हैं.. और 'तंत्र' की सूली पर फिर 'लोक' टँग गया हैं। कृष्ण बोले..देवर्षि! आपने तो कहा था कि यहां विमान सेवा भी चालू हैं। नारद बोले...प्रभु विमान का तो पता नहीं.. मगर 'सेवा' और 'सेवक' दोनों बहुत 'चालु' हैं। क्योंकि कोई नही जानता...कि ये फ्लाईट कब आती है.. और कब जाती हैं। ये तो सिर्फ मूर्खों को महामूर्ख बनाने की विद्या हैं.. जो 'राजनीति' कहलाती हैं। इस विद्या के धुरंधरों की 'शाही कोठियां' हर रोज़ जनता के पसीने को गाली देती हैं.. और बेचारी जनता इतनी नादान हैं.. कि इन गलियों पर भी ताली देती हैं। कृष्ण मंद-मंद मुस्काये.. बोले देवर्षि! ये समय का पहिया हैं.. ऐसा पलटेगा कि सारे बादल छंट जायेंगे। बस.. गालियाँ पूरी होने तक करो इंतजार.. फिर लोकतंत्र का 'सुदर्शन' चलेगा.. और शिशुपाल कट जायेंगे।