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पचास साल का प्रपंच

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Sep 15, 2018

भाजपा की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक में अमित शाह ने अपने भाषण के दौरान एक ऐलान कर दिया। भाजपा अध्यक्ष ने कहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी चुनाव जीतेगी और आने वाले 50 साल तक सत्ता में बनी रहेगी, शाह के इस बयान से सियासी हल्के में हड़कंच मच गया। भाजपा के सहयोगी दलों के साथ विपक्ष दलों ने इस पर तंज कसते हुए कहा है कि शाह का बयान अहंकार भरा है। लोकतंत्र में इस तरह की बयानबाजी के कई तरह के मायने निकाले जाने लगे, क्या नरेंद्र मोदी 50 साल त​क सत्ता में बने रहेंगें। पिछले 4 सालों में उनकी सरकार द्वारा लिए फैसलों का दूरगामी असर को देखते हुए शिगूफा तो नहीं है क्या भारत की जनता के मूड को उन्होंने पहले से ही भांप लिया है 


इस दौरान मोदी सरकार ने दो महत्वपूर्ण फैसले लिए एक नोटबंदी दूसरा जीएसटी। ऐसा बताया जा रहा ​है कि दोनो फैसले देश के आर्थिक सुधार के लिए बड़ा कदम है लेकिन अबतक सरकार को आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिल पाई है। नोटबंदी को लेकर सरकार द्वारा किए गए बड़े बड़े दांवो की पोल खुल चुकी है। मसलन कालाधन की वापसी, आतंकवादियों की फंडिग से लेकर आर्थिक सुधार जैसी घोषणाएं बेअसर साबित होती नजर आ रही है।
भारतीय रिर्जव बैंक की रिपोर्ट के अनुसार देशभर में चलन में रहने वाली 99 फीसदी राशि बैंको में वापिस आ गई वहीं एक फीसदी राशि अन्य देशों में अभी भी चलन में हैं। जमा राशि में कालाधन कितना है इसपर सरकार अभी शोध ​कर रही है आतंकी गतिविधियों पर भी अंकुश लगा पाने में सरकार विफल रही है। इन घटनाओं में इजाफा ही हुआ है। नोटबंदी के दौरान करोड़ो जनता प्रभावित हुई। लाइन में लगे लाखों लोगों में सौ से अधिक लोगों की जान गई। देश की जनता ने प्रधानमंत्री के इस फैसले पर भरोसा जताया फिर भी एक साल पूरे होने के बाद भी अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ पाई। कई क्षेत्रोें में व्यवसाय चौपट हो गया, रोजगार में वृद्धि तो हुई नहीं इसके विपरीत कई संस्थानों में कर्मचारियों की छटनी की वजह से लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी। 

अब सरकार का दूसरा बड़ा फैसला जीएसटी अर्थात वन नेशन वन टैक्स जिसकी वजह से छोटे और मझले व्यवसाय प्रभावित हुए असका सीधा असर जनता पर पड़ा।  सरकार का जीएसटी को लेकर अभी भी स्पष्ट रूख सामने नहीं है रैवेन्यू बढ़ाने वाले डीजल, पेट्रोल, शराब जैसी चीजें जीएसटी के दायरे से बाहर है। पेट्रोल डीजल की कीमतों में बेतहासा वृद्धि इसका प्रमाण है। जीएसटी की विसंगतियों की वजह से अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ा है। मोदी सरकार ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं शुरू की है। स्वच्छ भारत मिशन, उज्ज्वला योजना, सबको मकान देने, मुद्राकोष, जनधन में खाते खुलवाने जैसी दर्जनों योजनाएं सरकार की उप​लब्धियों के रूप में गिनाई जा सकती है। इन योजनाओं का असर जमीनी स्तर पर देखने को मिल रहा है। इनका प्रचार प्रसार भी सरकार जोर शोर से कर रही हैै।  लेकिन सरकार के सामने युवा बेरोजगारी, किसान, रूपए में भारी गिरावट जैसी कई चुनौतियां है। 

ऐसी परिस्थितियों में अमित शाह के अगले 50 साल तक सत्ता में बने रहने के वक्तव्य के क्या मायने हो सकते है। क्या अमित शाह 2019 में भी हिंदुत्व के एजेंडे को हवा देकर एक बार फिर से चुनावी बैतरणी पार करने का सपना देख रहे हैं। क्या हिंदुस्तान की अवाम बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, किसानों की बदहाली, छोटे और मझौले व्यवसाय को चौपट होने जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ते हुए उनके हिंदुत्व राम मंदिर निर्माणधारा 370 हटाने, एनआरसी जैसे मुद्दों पर विश्वास करते हुए उन्हें सत्त सौंपेगी। ऐसे में सरकार का मिशन 2022 अगले लोकसभा चुनाव के लिए लिटमस टेस्ट साबित हो सकता है हालाकि आज भी नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सामने विपक्ष का कोई नेता नहीं टिक पा रहा है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की लोकप्रियता की रफ्तार काफी धीमी है। क्षेत्रीय दलों के किसी भी  क्षत्रप की मोदी के सामने राष्ट्रीय पहचान नहीं है। फिर भी विपक्ष महागठबंधन के सहारे मोदी को चुनौति देने में जुट गया है। यदि आगामी लोकसभा में भाजपा मोदी के सहारे अपने दम पर सरकार नहीं बना पाती है और पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाता है तो उसे एनडीए के घटक दलों के दबाव में रहना पड़ेगा। अमित शा​ह शायद इस मुगालते में हो सकते है कि देश की जनता उनके इशारों पर चलती रहेगी लेकिन उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि देश का लोकतंत्र काफी मजबूत है किसी अहंकारी सत्ता को उखाड़ फेंकने में समय नहीं लगाता है।  आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी का हश्र क्या हुआ यह हम सभी जानते हैं। शाह ​को 50 साल तक सत्त में बने रहने का भ्रम है तो उन्हें देश की अवाम का मिजाज भी समझना होगा साथ ही उन्हें पूर्व में किए गए चुनावी वायदे पर भी ध्यान देना होगा जिसे लागू कर पाने में वह असफल रहे हैं। नए वादे नई जुमलेबाजी ​करके जनता को बेवकूफ बना पाना असाना नहीं है।

शाह ने 50 साल का प्रपेच बयान क्यों दिया है इसके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के लिए मंथन करने का विषय है। इस बयान से पार्टी के कार्यकर्ताओं को भ्रमित किया जा स​कता है लेकिन देश की जनता को भ्रमित कर पाना आसान नहीं है। अगले पचास सालों में देश के सामने किस तरह की चुनौतियां होंगी इसका आंकलन अभी से कर पाना मुश्किल है। आखिर में यह शाह का सपना है या सिर्फ ख्याली पुलाव पकाने जैसा प्रपंच।