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मौन क्यों हैं मोदी ?

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Sep 28, 2018

पिछले पखवारे रफाल सौदे को लेकर राहुल गांधी जिस तरह से हमलावर हुए हैं वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा प्रखर एवं आक्रामक वक्ता इस मुद्दे पर मौन साधे हुए हैं, इस पर सवालिया निशान मोदी सरकार पर है। दरअसल बात यह है कि राहुल गांधी ने जिस प्रकार से रफाल के बहाने मोदी को घेरने की तैयारी की है इससे स्पष्ट है कि वे शुरू से अडानी अंबानी को टारगेट करते आ रहे हैं और रफाल में अब अनिल अंबानी की कंपनी का नाम आने के बाद उन्हें पूरा मौका मिल गया है। यह संभावित घोटाला जैसा अभीतक साबित नहीं किया जा सका है। यदि भारत फ्रांस से लड़ाकू विमान खरीदे और फायदा अनिल अंबानी को मिले इससे शक की सुई प्रधानमंत्री पर जाती है, पर ऐसी कंपनी जिसे विमान बनाने का अनुभव नहीं है और आनन फानन में इस सौदे में शामिल होती है तो साफ जाहिर है कि दाल में कुछ काला है।

पूर्व में जब यूपीए सरकार से सौदा हुआ था तो रक्षा के क्षेत्र में अनुभव प्राप्त सरकारी क्षेत्र की कंपनी हिंदुस्तान ऐरोनोटिक्स लिमिटेड को शामिल करने की बात सामने आई थी । अब मोदी सरकार का अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाने का फैसला क्रोनी केपिरेलिज्म (दोस्तों को फायदा पहुंचाने वाले पूंजीवाद) को बढ़ावा देने जैसा है। वह भी ऐसी स्थिति में जब अनिल अंबानी की कंपनियों का दिवाला निकल चुका है। बैंको में डूबी कर्ज की कंपनियों को उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ने खरीदने का काम किया है।

यहां पर देखने वाली बात है कि इस सौदे में चार प्रमुख पार्टनरों की भूमिका है। फ्रांस सरकार, भारत सरकार, फ्रांस की निजी कंपनी दासों और भारत की निजी कंपनी रिलायंस। सौदे के समय फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ये दोनों कंपनियां सामने थी। बखेड़ा तब और बढ़ गया जब ओलांद ने फ्रांस के न्यूज पोर्टल के माध्यम से बयान दिया कि भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित एक कंपनी रिलायंस के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था इसीलिए सौदे में रिलायंस को भागीदार बनाना पड़ा।

संसद में राहुल गांधी के द्वारा उठाए गए रफाल सौदे पर मोदी सरकार आक्रामक हो गई थी क्योंकि उस समय फ्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति के हवाले से बयान आया था कि दो राष्ट्रों की सुरक्षा की दृष्टि से यह समझौता अहम है, इसका खुलासा नहीं किया जा सकता है। एनडीए के मंत्री रविशंकर प्रसाद से लेकर रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण तक सभी ने राहुल गांधी को घेरने का पूरा प्रयास किया, यहां तक कि उन्हें राष्ट्रविरोधी बता डाला।

सवाल यह उठता है कि रफाल सौदे में कीमतों को लेकर विपक्ष ने जो सवाल खड़ा किया है इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर क्या असर पड़ता है ? दूसरी बात यह है कि अनुभव विहीन कंपनी रिलायंस को शामिल करने के पीछे मोदी सरकार की क्या मंशा रही होगी  जबकि पूर्व में यूपीए सरकार ने सरकारी कंपनी एच.ए.एल को प्रस्तावित किया था ? तीसरी बात यह है कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बयान आने के बाद सरकारें खुलकर सामने क्यों नहीं आईं ?

इन सवालों के जवाब स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना होगा। इसके पूर्व राजीव गांधी सरकार बोफोर्स घोटाले को लेकर घिर चुकी थी और उसे सत्ता से बाहर का रास्ता देखना पड़ा था तब विपक्ष में रही भाजपा ने वी.पी. सिंह के साथ मिलकर बोफोर्स के मुद्दे पर मिस्टर क्लीन को दागी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राहुल ने रफाल के मुद्दे पर जिस प्रकार मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है, पीएम मोदी इन सवालों से बच नहीं सकते हैं।  उन्हें अपना मौन तोड़ना होगा और देश की जनता को हकीकत से अवगत कराना होगा। अन्यथा भाजपा को इसकी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है साथ ही रक्षा के क्षेत्र में हमारी कमजोरी का प्रभाव देश की सशक्त सेना पर भी पड़ सकता है। सिर्फ चंद हितों के चलते सरकार में रहने वाला दल अपने प्रिय पूंजीपतियों के हितों को ध्यान में रखकर यदि रक्षा जैसा महत्वपूर्ण निर्णय लेते है तो इसके दूरगामी परिणाम सामने आएंगे और सत्ताधारी पार्टी से भरोसा भी उठेगा।