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महिला हित में आयी अच्छी खबर

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Mar 22, 2019

- रमेश सर्राफ धमोरा

लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा के साथ ही देश की महिलाओ के हित में कुछ अच्छी खबरें आ रही हैं। राजनीति में घटी दो तीन घटनाओं से लगने लगा है कि आने वाला समय महिलाओ की प्रगति का होगा। चुनावों की घोषणा के साथ ही ओडीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि उनकी पार्टी बीजू जनता दल आगामी लोकसभा चुनाव में 33 प्रतिशत महिला उम्मीदवारो को टिकट देगी। ओडीसा में कुल 21 लोकसभा सीट है जिनमें से बीजू जनतादल सात महिलाओं को प्रत्याशी बनायेगा। वर्तमान में बीजू जनतादल के पास लोकसभा की 20 सीट है जिनमें से मात्र दो पर ही महिला सांसद हैं।

नवीन पटनायक का बयान ओडीसा की महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने की एक अच्छी शुरूआत माना जा सकती है। आदिवासी बहुल ओडीसा की गिनती देश के पिछड़े प्रदेशो में की जाती है जहां फिलहाल राजनीति में महिलाओं की संख्या ज्यादा नहीं हैं। वहां की विधानसभा के 147 सदस्यों में से मात्र दस महिला विधायक भी नहीं हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिये। आखिर उन्होने महिलाओं को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी तो दिखायी।

नवीन पटनायक के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी महिलाओं को लेकर एक बड़ी घोषणा कर दी। उन्होने लोकसभा चुनाव में 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने की घोषणा ही नहीं की बल्कि टिकट दे भी दिया। पश्चिम बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटो पर ममता दीदी ने प्रत्याशियों के नामो की घोषणा कर दी जिसमें से उन्होने 17 सीटो पर महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। अभी उनकी पार्टी की लोकसभा में 12 महिला सांसद है। ममता बनर्जी नि:संदेह ही महिलाओं को आगे बढ़ाने में सैदव अग्रसर रहती है।

चुनावी माहौल में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी चेन्नई में पत्रकारो से बात करते हुये कहा कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो वो संसद में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवाने वाला कानून पास करवायेगें। साथ ही उन्होने कहा कि ना केवल संसद व विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया जायेगा बल्कि सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलवायेगें। हालांकि राहुल गांधी आगामी चुनावो के कारण ये सब घोषणायें करते घूम रहे हैं। जब उनकी पार्टी सरकार में होती है तब उनको महिलाओं को आरक्षण दिलवाने की बात याद नहीं रहती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 44 सीटे जीती थी जिनमें से महज चार पर ही महिलायें जीत पायी थी।

यदि राहुल गांधी वास्तव में महिलाओं को लेकर संवेदनशील है तो उनको भी नवीन पटनायक, ममता बनर्जी की तरह लोकसभा चुनाव में कम से कम 33 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देनी चाहिये। कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिये 36 प्रत्याशियों की दो सूची जारी की है जिनमें महिलाओं के मात्र 8 ही नाम शामिल किये गये हैं।

देश की आबादी में आधी संख्या महिलाओं की है इसके उपरान्त भी उनको संसद व विधानसभाओं में बराबरी का दर्जा क्यों नहीं मिल पाता है यह देश के सामने एक मुख्य सवाल है। महिलाओं के वोट लेने में सभी राजनीतिक दल आगे रहते हैं मगर उनको बराबरी का दर्जा कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं देना चाहती हैं। राजनीतिक दल महिलाओं को एक मतदाता से अधिक कुछ भी मानने को तैयार ही नहीं होते हैं। आज हमारे देश की लोकसभा में 543 सदस्यो में से मात्र 61 ही महिला सदस्य है जो यह दर्शाता है कि हम महिलाओं की तरक्की को लेकर कितने गम्भीर हैं।

वर्तमान में देश के 20 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों से ही महिलायें जीत कर आयी है बाकी प्रदेशों में एक भी महिला सांसद नही हैं। 2014 में पश्चिम बंगाल से सर्वाधिक 13 महिला तो उत्तर प्रदेश से 11 महिला सांसद चुन कर आयी थी। भाजपा की 24 महिला सांसद बनी तो कांग्रेस से मात्र 4 ही महिला सांसद बन पायी। सोनिया गांधी लम्बे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष रही। उनके कांग्रेस अध्यक्ष रहने के दौरान दस वर्षो तक केन्द्र में उनकी पार्टी की सरकार थी मगर महिला आरक्षण को लेकर उन्होने भी कुछ नहीं किया। यहां तक की उनके समय में पार्टी पदाधिकारियों में 33 प्रतिशत महिलाओं को नियुक्त किया जायेगा की घोषणा भी महज कागजी साबित हो कर रह गयी।

देश में प्रथम आम चुनाव से लेकर अब तक के आंकड़ो पर गौर करे तो स्थिति ज्यादा उत्सावर्धक नहीं रही है। 1952 के पहले आम चुनाव में 24 महिला सांसद चुन कर आयी थी। तो 1957 में 22, 1962 में     31, 1967 में 29, 1972 में 21, 1977 में मात्र 19 महिला ही चुनाव जीत पायी। 1980 में 28, 1984 में 42, 1989 में 29, 1991 में 37, 1996 में 40, 1998 में 43, 1999 में 49, 2004 में 45, 2009 में 59 महिला सांसद बनी थी। जबकि 2014 में 16वीं लोकसभा में 61 महिला उम्मीदवार जीत कर पहुंची हैं। यह अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है।

चुनाव आयोग के 2014 के आंकड़ों के अनुसार देश में लोकसभा की 543 सीटों में 73 सीटें ऐसी हैं, जहां 2014 में महिला वोटरों की संख्या पुरुष वोटरों से ज्यादा थी। इसके अलावा इन सीटों पर महिला वोटरों का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा था। 2014 के आंकड़ों के अनुसार इन 73 सीटों पर वोटरों की कुल संख्या 9 करोड़ 59 लाख थी, जिनमें से 6 करोड़ 87 लाख वोटरों ने वोट डाले थे। इनमें से 3 करोड़ 36 लाख पुरुष वोटर और 3 करोड़ 50 लाख महिला वोटर थीं।

राज्यवार महिला वोटरो की अधिक संख्या वाली सीटो में आंध्र प्रदेश में सर्वाधिक 19, अरुणाचल प्रदेश में 2, बिहार में 10, गोवा में 2, हिमाचल प्रदेश में 1, जम्मू-कश्मीर में 1, कर्नाटक में 1, केरल में 10, महाराष्ट्र में 1, मणिपुर में 1, ओडिशा में 2,  राजस्थान में 1, तमिलनाडू में  16, त्रिपुरा में में 1, पश्चिम बंगाल में 1, उत्तराखंड में 2, दमन और दीव की 1 सीट शामिल है।

आज देश में छ: महिला सांसद केन्द्र सरकार में मंत्री पद के दायित्व का कुशलता से निर्वहन कर रही हैं। देश में रक्षा व विदेश जैसे महत्वपूर्ण विभागो की कमान महिला मंत्रियों के हाथों में हैं। लोकसभा की अध्यक्ष महिला है। इसके उपरान्त भी महिलाओं को अपने अधिकारो को लेकर संघर्ष करना पड़ता है। देश के राजनीतिक दलो को महिलाओं को लेकर अपने नजरिये में बदलाव करना होगा। आगामी आम चुनाव में सभी दलों को अधिक से अधिक संख्या में महिलाओं को टिकट देना चाहिये। इतना भी ना कर पाये तो जहां से महिला प्रत्याशी चुनाव लड़ रहीं हैं उनके सामने महिला को ही टिकट देनी चाहिये ताकि जिस दल की भी जीते वो महिला ही जीते। इस तरह से धीरे- धीरे महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी होने लगेगी।

महिलाओं ने भारत में आजादी की लड़ाई में और उसके बाद राजनीति में बड़ी भूमिका निभायी है। जब भी उन्हें अवसर मिला है महिलाओं ने खुद को बेहतर साबित किया है। 1952 के पहले आम चुनाव के बाद पण्डित नेहरू की अगुवाई में पहले मंत्रीमंडल का गठन किया गया तो उसमें राजकुमारी अमृत कौर को स्वास्थ्य विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। राज्यों में भी कई बार महिलाओं ने कुशलता के साथ नेतृत्व किया है। 1963 में उत्तर प्रदेश में सुचेता कृपालानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। उसके बाद तो महिलाओं के लिये आगे बढऩे का रास्ता खुल गया। नंदिनी सतपथी, शशिकला काकोडकर, सईदा अनवारा तैमूर, जानकी रामचंद्रन, जयललिता, मायावती, राजिंदर कौर भट्टल, राबड़ी देवी,सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, वसुंधरा राजे, ममता बनर्जी, आनन्दीबेन पटेल, महबूबा मुफ्ती समय- समय पर उसी परंपरा को आगे बढ़ाती रहीं हैं।

आज देश के हर क्षेत्र में महिला अपनी हिम्मत, क्षमता व स्वावलम्बन से अपनी विशिष्ठ पहचान बना रही है। हर कार्य को पुरूषों के साथ कंधा से कंघा मिलाकर कर रही है। ऐसे में उनको राजनीति के क्षेत्र में पीछे रखना उनके नेतृत्व क्षमता को कमजोर करना ही है। पुरूषो के वर्चस्व वाले राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं को उचित भागीदारी मिलने पर देश, समाज और अधिक तेजी से तरक्की कर पायेगा।

आलेख:-

रमेश सर्राफ धमोरा

स्वतंत्र पत्रकार झुंझुनू (राजस्थान)