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जनता जागी...खतम कहानी

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Aug 29, 2018

जनता जागी...खतम कहानी

क्या कहा...सरकार को चार साल होने वाले हैं। गर्दनें तैयार रखिये... हम फिर से हलाल होने वाले हैं। विकास के सारे सूरज इसलिए पश्चिममुखी हैं.. क्योंकि हम उनकी हरकतों से नही.. अपनी आदतों से दुखी हैं। वो कड़ी धूप में राष्ट्रहित के नाम पर हमें इधर से उधर घसीटते रहते हैं... और हम हैं कि दोनों हाथ जोड़कर तालियां पीटते रहते हैं। क्योंकि सच यही हैं कि हम ना सरकार बनाने वाले हैं.. ना शासन चलाने वाले हैं। हम तो सिर्फ.. तालियां बजाने वाले हैं।

कड़वा जरूर लगेगा मगर सच को स्वीकारने में काहे की शर्म है। अरे चुनाव के पहले ताली.. चुनाव के बाद माथा... और अगले पांच साल तक छाती पीटना तो हमारा लोकतांत्रिक कर्म है। हम काली अमावस के वो अंधे हैं जो एक ही गड्ढे में बार-बार गिरते हैं। फिर 5 साल तक गले में शिकायतों का बोर्ड टांगकर चिल्लाते फिरते हैं.. कि जनता में रोष है। अब भला  खुद की सुपारी खुद ही दोगे तो इसमें सरकारों का क्या दोष है।

 दरअसल ये विकल्पहीनता उनकी नहीं हमारी मजबूरी है। क्या चोर और लुटेरों में से एक को चुनना जरूरी है। अगर दोनों को नकारना सीख जाते.. तो आज इतने बवाल नहीं होते। आखिर क्यों हमारी आंखों के डोरे कभी लाल नहीं होते। अरे कभी तो उनकी गिरेबान में हाथ डालकर पूछो... कि कल के निठल्ले आज नायक कैसे हो गए। जिन्हें लायक समझकर चुना था... वो नालायक कैसे हो गए। अगर सेवा ही करने आए थे.. तो करोड़ों कैसे कमाएं। पेड़ से तोड़े या बिल गेट्स से छीन के लाएं। हमारे हिस्से का विकास कहा हैं.. हमें हिसाब चाहिए। हमें चिरागों से मत फुसलाओं.. हमे आफ़ताब चाहिए। सत्तर साल इसलिए नही सौंपे थे कि आप लोकतंत्र को कलंकित करें। या इतिहास के पन्नों पर अपने बाप-दादाओं को स्वर्णाक्षरों में अंकित करें। माना कि लोकतंत्र की जड़े सियासत के कीचड़ से सनी हैं। मगर याद रखना.. जनता कुर्सियों के लिए नही.. कुर्सियां जनता के लिए बनी हैं। 

हमारी तकलीफों को मत नजरअंदाज करो। हमने वोट दिया हैं.. कुछ तो लिहाज करो। मत बोलो वही 'घिसे-पिटे झूठ', जितना बोलोगे..उतनी ही रेट पिटेगी., क्योंकि 'अव्यवस्थाओं की ये खुजली'.. 'जालिम-वादों' के लोशन से नहीं मिटेगी। ये जनता 'मुर्ख' नहीं बस 'मौन' है। सब जानती है, इन 'जम्मूरो' के पीछे का 'मदारी' कौन है। इसने 'बड़े-बड़े' युवराजों के चुनावी भूत उतारे हैं। अहंकार से लाल हुए गालों पर जनमत के थप्पड़ खींचकर मारे हैं। अगर भावुक होकर चुन सकती हैं, तो क्रोधित होकर हटा भी सकती हैं। वक्त पड़ने पर.. 'परिवर्तन' का 'च्यवनप्राश' चटा भी सकती हैं। हमारी..और 'फिरकी' मत लो.. वरना पछताओगे। 'घर-घर' बैठने के चक्कर में 'घर' बैठ जाओगे। फिर करते रहना 'हार की समीक्षा' और 'मौके की प्रतीक्षा' और सुनाते रहना चमचों को कहानी... "एक था राजा, एक थी रानी, जनता जागी..खतम कहानी...।

- डॉ आदित्य जैन बालकवि

(लेखक राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित, विश्व रिकॉर्ड्स में दर्ज... हिंदी काव्य-मंचों के लोकप्रिय कवि हैं )