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महाबलीपुरम से मोदी ने साधे समीकरण

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Oct 15, 2019

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तमिलनाडु के महाबलीपुरम में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ दो दिवसीय अनौपचारिक शिखर सम्मेलन का सफल आयोजन कर पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया है। इस शिखर सम्मेलन की सबसे बड़ी बात यह थी कि इसमें कोई पूर्व निर्धारित एजेंडा नहीं था। दोनों देशों के बीच किसी तरह के कोई समझौता नहीं होने थे। दोनो देशों के राष्ट्राध्यक्षों के बीच एक दूसरे को समझने, एक दूसरे के विचारों को जानने को लेकर महाबलीपुरम में आयोजित इस दूसरे शिखर सम्मेलन में दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्ष करीब 6 घंटे तक एक साथ रहे। दोनो ने एक दूसरे से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। इस दौरान दोनो ने एक साथ महाबलीपुरम के रथ स्मारक जाकर वहां के धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया व समुद्र तट के प्राकृतिक नजारों का आनंद लिया। रात्रि में सातवीं सदी में समुद्र किनारे निर्मित शोर मंदिर प्रांगण में सांस्कृतिक कार्यक्रमो का आनंद लिया। महाबलीपुरम में भारत और चीन के राष्ट्राध्यक्षों के मध्य शिखर सम्मेलन का महत्व इसलिए और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि भारत के जम्मू कश्मीर और लद्दाख में धारा 370 व 35ए को हटाने के बाद से ही पाकिस्तान इस मुद्दे को लेकर पूरी दुनिया में भारत का विरोध कर रहा है। चीन दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जो हर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता है। इसके बावजूद चीन के शक्तिशाली राष्ट्रपति भारत आकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से साथ दो दिवसीय शिखर वार्ता करना अपने आप में ऐतिहासिक भी है और दूरगामी परिणाम देने वाला भी है।

इस शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दर्जनों बार गर्मजोशी से हाथ मिलाया। दोनों राष्ट्राध्यक्षो ने हंसते हुए कई बार एक साथ फोटोशूट करवाए और एक साथ कच्चे नारियल के डाब का पानी पीकर एक नई पहल करने का संकेत दिया। दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्राध्यक्ष बहुत प्रसन्न मुद्रा में दिखे। महाबलीपुरम के धर्मिक स्थलों का भ्रमण करते समय उन्होंने उत्सुकता के साथ उनके बारे में प्रधानमंत्री मोदी से जानकारी लेते हुये प्रकृति का लुफ्त उठाया। दो दिन के कार्यक्रम में मोदी और जिनपिंग करीबन 6 घंटे तक एक साथ रहे। इस दौरान उन्होंने दुभाषिये का बहुत कम उपयोग किया। अधिकतर समय आपस में ही बाते करते रहे। चीन के राष्ट्रपति का तमिलनाडु के महाबलिपुरम का दौरा करवाना प्रधानमंत्री मोदी का भारत- चीन के पुराने संबंधों को पुनर्जीवित करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। आज से करीब 1400 से 1500 वर्ष पूर्व महाबलीपुरम के बंदरगाह से समुद्र के रास्ते ही भारत का चीन से व्यापार होता था। समुद्र के रास्ते पानी के जहाजों द्वारा भारत और चीन एक दूसरे को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति किया करते थे। इसी कारण महाबलीपुरम का चीन से पुराना रिश्ता था। उसी को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति का कार्यक्रम महाबलीपुरम में करवाया।

चीन के राष्ट्रपति को महाबलीपुरम लाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां चीन को साधने का कूटनीतिक प्रयास किया है वहीं महाबलीपुरम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण भारत की राजनीति को भी साधने का प्रयास किया है। चेन्नई से 55 किलोमीटर दूर स्थित महाबलीपुरम में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वागत किया इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां का पारंपरिक परिधान करायी वेस्ट पहनकर तमिलनाडु के लोगों का दिल जीत लिया। हरे रंग के किनारे वाली धोती आधी बाजू की लंबी सफेद शर्ट व अंग वस्त्र धारण किए प्रधानमंत्री दक्षिण भारतीय मेजबान की भूमिका में थे। उन्होने चीन के राष्ट्रपति को अर्जुन की तपस्या स्थली, शक्ति स्थल व अन्य धार्मिक पर्यटन स्थलों का भ्रमण कराया। प्रधानमंत्री मोदी ने उनको घुमाते समय उन स्थानों  की विस्तृत जानकारी भी प्रदान की। रात्रि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति के सम्मान में महाबलीपुरम में ही रात्रि भोज का आयोजन किया। जिसमें विभिन्न प्रकार के दक्षिण भारतीय भोजन शामिल थे। दक्षिण भारत में पाए जाने वाले आने वाले स्थानों से गए इसे लेकर चीन के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति शी जिनपिंग बहुत खुश नजर आए। कश्मीर में 370 हटाने की घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलने के दौरान चीन के राष्ट्रपति ने जम्मू कश्मीर को लेकर कोई बात नहीं। चीन जम्मू कश्मीर को भारत का आंतरिक मामला मांगता है। चीन उसमें किसी तरह की टिप्पणी नहीं करना चाहता। चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा से 2 दिन पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान चीन जाकर राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिलकर आए थे तथा उन्होंने इस बात पर पूरा जोर दिया था कि भारत चीन शिखर सम्मेलन के दौरान जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर भी चर्चा की जाए। लेकिन शी जिनपिंग ने जम्मू-कश्मीर पर कोई चर्चा नहीं कर पाकिस्तान को एक तरह से नजरअंदाज किया है जो मोदी की प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति की बहुत बड़ी जीत मानी जा सकती है।

चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा से जहां भारत चीन के संबंधो में सुधार आने की सम्भावना बढ़ी है वहीं मोदी ने चीन के राष्ट्रपति को साध कर पाकिस्तान को रणनीतिक रूप से कमजोर करने का भी काम किया है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण भारत की राजनीति को भी साधा है। चीन के राष्ट्रपति से शिखर वार्ता करने के लिये तमिलनाडु के महाबलीपुरम का चयन करना। शी जिनपिंग के स्वागत के समय  प्रधानमंत्री मोदी का तमिलनाडु का पारंपरिक पहनावा स्टिक पहनना, राष्ट्रपति के सम्मान में आयोजित भोज में दक्षिण भारतीय खाना खिलाना, सांस्कृतिक कार्यक्रम में तमिलनाडु के पारम्परिक नृत्य को शामिल करना, चीन के राष्ट्रपति का तमिल में स्वागत करना व चीन के राष्ट्रपति को यह बताना है कि तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी और सम्पन्न भाषाओं में से एक भाषा है।इससे तमिलनाडु की जनता में एक संदेश गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता पर हिंदी भाषा नहीं थोपना चाहते हैं। उनकी नजर में सभी भाषाओं का स्थान बराबर है। गत दिनों गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हिंदी पर दिए गए बयान को लेकर तमिलनाडु के नेताओं द्वारा विरोध करने के बाद इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का डैमेज कंट्रोल करने के रूप में देखा जा रहा है। इससे पूर्व संयुक्त राष्ट्रसंघ की सभा में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान तमिल कवि की कविता के कुछ अंश पढक़र दुनिया में तमिल भाषा का महत्व बढ़ाया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि दक्षिण भारत में भी भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव बढ़े। दक्षिण भारत के कर्नाटक व थोड़ा-बहुत तेलंगाना के अलावा भारतीय जनता पार्टी का कहीं कोई प्रभाव नहीं है। विशेषकर केरल और तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी की उपस्थिति नगण्य है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि दक्षिण भारत के इन दो प्रमुख राज्यों में भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव बढ़े। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मिशन दक्षिण भारतीय अभियान के अंतर्गत चीन के राष्ट्रपति को महाबलीपुरम का दौरा करवाया।इससे पूर्व दूसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दक्षिण की द्वारका माने जाने वाले केरल में त्रिशूर के गुरूवायूर मंदिर में सबसे पहले पूजा करने गये थे। मोदी ने वहां पर तुलाभारम (तुलादान) कि रस्म भी निभाई थी। उसके बाद उन्होंने तिरुपति जाकर भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन किए थे। त्रिशूर और तिरुपति में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां की पारंपरिक वेशभूषा में नजर आये थे। अब तमिलनाडु में महाभारत कालीन धार्मिक स्थलों पर शिखर वार्ता का आयोजन करवा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जता दिया है कि दक्षिण भारत में भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव बढ़ाना उनके मुख्य एजेंडे पर है। मोदी चाहते हैं कि आगामी चुनावों में भाजपा हर हाल में दक्षिण भारत में भी अपना परचम लहराये। इसीलिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मिशन दक्षिण भारत जारी है।

आलेख:-

रमेश सर्राफ धमोरा

स्वतंत्र पत्रकार