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आखिर देश के मजदूर क्यों मनाये मई दिवस ?

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May 1, 2019

-रमेश सर्राफ धमोरा

पूरी दुनिया में मई माह की पहली तारीख यानि एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है। दुनिया के साथ भारत में भी जगह-जगह एक मई को मजदूर दिवस मनाने का सिलसिला वर्षो से चला आ रहा है। बड़े-बड़े कल कारखानो में कार्यरत मजदूर यूनियनो में तो इस बात की आपस में होड़ रहती है कि

किसकी सभा में मजदूर ज्यादा आये। सरकार द्वारा भी मई दिवस के अवसर पर सवेतनिक अवकाश रखा जाता है। मई दिवस मनाने की शुरूआत करने वाले लोगों मकसद मजदूर वर्ग का भला करने का रहा होगा मगर वर्तमान परिपेक्ष में मई दिवस मनाने में कोई सार्थकता नजर नहीं आती है। आज मई दिवस मनाना मात्र एक रस्म बन कर रह गया है विशेषकर भारत के संदर्भ में।

गत कई वर्षों में हर साल एक मई को मजदूर दिवस आता है व चला जाता है। मगर देश के मजदूरो का इससे कोई भला आज तक नहीं हुआ। हमारे देश में मजदूरों की स्थिति सबसे भयावह होती जा रही है। देश का मजदूर दिन प्रतिदिन और अधिक गरीब होता जा रहा है। मई दिवस मनाने के नाम पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में बड़े-बड़े नेता शिरकत करते हैं, मजदूरो की भलाई की बड़ी-बड़ी बाते करते हैं फिर साल भर के लिये भूल जाते हैं। उनको इतनी फुर्सत ही नहीं रहती की मई दिवस के कार्यक्रमों में भाषण देते हुये उसने सार्वजनिक मंच पर मजदूरों के भले के लिये जो बाते बोली थी उन पर अमल कैसे होगा। मजदूरो की भलाई के लिये कौन से काम किये जा सकते हैं।

मजदूर दिवस को मजदूरों का दिन सुनने में तो अच्छा लगता है। लेकिन इस शब्द  के मायने, शायद उन मजदूरों के लिए कुछ भी नही जिनके नाम पर इसे दुनिया में मनाया जा रहा है। वो बेचारे तो इस दिन भी अपनी रोजी रोजी के लिए कमर तोड़ पसीना बहा रहे होते हैं। यदि नहीं बहाएंगे तो उनका परिवार भूखा ही सोयेगा। फिर कैसा मजदूर दिवस, किसका मजदूर दिवस? दिन रात रोजी-रोटी के जुगाड़ में जद्दोजहद करने वाले मजदूर को तो दो जून की रोटी मिल जाए तो मानों सब कुछ मिल गया। आजादी के इतने सालो में भले ही देश में सब कुछ बदल गया हो, लेकिन मजदूरों के हालात बिलकुल भी नहीं बदले तो फिर श्रमिक वर्ग क्यों मनाये मजदूर दिवस?

हमारे देश में आज सबसे ज्यादा काई प्रताडि़त व उपेक्षित है तो वो मजदूर वर्ग है। मजदूरो की सुनने वाला देश में कोई नहीं हैं। कारखानो में काम करने वाले मजदूरो पर हर वक्त इस बात की तलवार लटकती रहती है कि ना जाने कब मील मालिक उनकी छटनी कर काम से हटा दे। कारखानो में कार्यरत मजदूरों से निर्धारित समय से अधिक काम लिया जाता है विरोध करने पर काम से हटाने की धमकी दी जाती है। मजबूरी में मजदूर कारखाने के मालिक की शर्तों पर काम करने को मजबूर होता है। कारखानो में श्रम विभाग के मापदण्डो के अनुसार किसी भी तरह की कोई सुविधायें नहीं दी जाती है।

कई कारखानों में तो मजदूरों से खतरनाक काम करवाया जाता है जिस कारण उनको कई प्रकार की बिमारियां लग जाती है। कारखानों में मजदूरो को पर्याप्त चिकित्सा सुविधा, पीने का साफ पानी, विश्राम की सुविधा तक उपलब्ध नहीं करवायी जाती है। मालिको द्वारा निरंतर मजदूरों का शोषण किया जाता है मगर मजदूरों के हितों की रक्षा के लिये बनी मजदूर यूनियनो को मजदूरो की बजाय मालिको की ज्यादा चिंता रहती है। हालांकि कुछ मजदूर यूनियने अपना फर्ज भी निभाती है मगर उनकी संख्या कम है।

महिला व बाल मजदूरों की स्थिति तो और भी भयावह है। महिला मजदूरों से भी पुरूषों के समान ही कार्य करवाया जाता है। मगर महिलाओं को पुरूषों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती हैं। इतना ही नहीं महिलाओं से भी पुरूष मजदूरों की तरह कठोर कार्य भी करवाया जाता है। हमें जगह-जगह छोटे- छोटे बच्चे मजदूरी करते दिखते हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण पढऩे की उम्र में बच्चों को मजदूरी करने जाना पड़ता है। अधिकतर होटलों में बच्चों को काम करते देखा जा सकता है जिन से सुबह से लेकर देर रात तक काम करवाया जाता है। बाल श्रम से बच्चों को मुक्त करवाने के नाम पर देश में कई गैर सरकारी संगठन कार्यरत हैं मगर उनका उद्वेश्य सरकार के कृपा पात्र बनने का ज्यादा रहता है ताकि उन्हे सरकार से सहायता मिलती रहे। बच्चों को तो वेतन भी नाम मात्र का मिलता है। गरीबी के चलते कई लोग अपने बच्चों को खाने- कपड़ो के बदले होटलों पर काम करने को भेज देते हैं।

मई दिवस के बारे में पूछे जाने पर कई मजदूरों को तो इस बात का भी पता नहीं रहता है कि इसको मनाने का उद्वेश्य क्या हैं। मजदूरों को मई दिवस से ज्यादा चिंता उस दिन काम करने के बदले मिलने वाली दिहाड़ी की  रहती है। मजदूर का कहना है कि यदि हम काम नहीं करेगें तो उस दिन हमारे घर का चूल्हा कैसे जलेगा घरवाले खाना कहां से खायेंगें। मजदूर रात को जब काम से थक हार कर घर लौटता है तब उसे इस बात की ही चिन्ता लगी रहती है कि उसका अगला दिन सही सलामत गुजरे। उसे समय पर काम मिलता रहे।

कहने को तो सरकार का श्रम विभाग कार्यरत है जिसका काम ही श्रमिक वर्ग के हितो का ख्याल रखना है। मगर श्रम विभाग के अधिकारी कर्मचारी ऐसा करते नहीं हैं। उनकी मजदूरो की बजाय मालिको से मिलीभगत रहती है तथा वो श्रमिको की बजाय मालिको का हित ज्यादा सोचते हैं। आज गांवों में काम करने वाले श्रमिको के श्रमिक कार्ड नहीं बन पाते हैं क्योंकि श्रम विभाग के कर्मचारियों के पास ऐसा करने की फुर्सत नहीं हैं। जबकि सरकार बार-बार घोषण करती है कि हर श्रमिक के पास श्रमिक कार्ड होना चाहिये ताकि उसको सरकार से मिलने वाली कई प्रकार की सुविधायें मिल सकें। मगर जिला मुख्यालयों पर कार्यरत श्रम विभाग के कार्यालय भ्रष्टाचार के अड्डे बने हुये हैं। वहां बिना दलाल की सहायता के श्रमिक का कोई भी कार्य करवाना मुश्किल है।

किसी भी राष्ट्र की प्रगति एवं राष्ट्रीय हितों को पूरा करने का प्रमुख्ख भार मजदूर वर्ग के कंधों पर ही होता है। मजदूर वर्ग की कड़ी मेहनत के बल पर ही राष्ट्र तरक्की करता है, लेकिन श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है। मजदूरों का शोषण आज भी जारी है। समय बीतने के साथ मजदूर दिवस को लेकर श्रमिक तबके में अब कोई खास उत्साह नहीं रह गया है। बढ़ती महंगाई और पारिवारिक जिम्मेदारियों ने भी मजदूरों के उत्साह का कम कर दिया है। अब मजदूर दिवस इनके लिए सिर्फ कागजी बनकर रह गया है।

मजदूर दिवस के अवसर पर सरकारे समाचार पत्रो में मजदूरो के हित की योजनाओं के बड़े-बड़े विज्ञापन जारी करती है। देशभर में बड़ी-बड़ी सभाएं, सेमीनार आयोजित किए जाते हैं, जिनमें मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं और ढ़ेर सारे लुभावने वायदे किए जाते हैं। किन्तु अगले ही दिन मजदूरों को पुन: उसी पुराने माहौल का सामना करना पड़ता है। मजदूरो को फिर वही शोषण, अपमान व जिल्लत भरा गुलामो जैसा जीवन जीने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है।

देश में सभी राजनीतिक दलों ने अपने यहां मजदूर संगठन बना रखा। सभी दल दावा करते हैं कि उनका दल मजदूरो के भले के लिये काम करता है। मगर ये सिर्फ कहने सुनने में अच्छा लगता है हकीकत इससे कहीं उलट हैं। देश में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। सभी राजनीतिक दलों ने अपने लम्बे-चौड़े घोषणा पत्र जारी किये हैं जिनमें बड़े-बड़े लुभावने वादे किये गये हैं। मगर श्रमिक वर्ग पर शायद ही किसी पार्टी का ध्यान गया हो। श्रमिकों के वोटो को पाने के लिये तो हर दल पूरा जोर लगायेगा मगर उनके भले के लिये उन दलों के पास क्या योजनाये हैं इस बात का खुलाशा कोई की पार्टी अपने चुनावी घोषणा पत्र में नहीं करना चाहती है।

आलेख:-

रमेश सर्राफ धमोरा

स्वतंत्र पत्रकार