Loading...
अभी-अभी:

आम रास्ते पर लगता हैं शासकीय स्कूल 

image

Sep 13, 2017

छतरपुर : किराए के भवन, टपरे और पेड़ के नीचे स्कूल लगना तो आप ने सुना ही होगा, लेकिन छतरपुर  शहर में ही एक ऐसा सरकारी स्कूल हैं,  जो आम रास्ते में लगता हैं। यह चलित स्कूल हो गया हैं।

कभी मंदिर में लग जाता हैं, तो कभी सड़क किनारे बैठकर बच्चे पढ़ते हैं। हल्की सी छांव में बच्चे आम रास्ते में बैठकर पढ़ते हैं। रास्ते पर लगने वाला सरकारी स्कूल शासकीय प्राइमरी स्कूल बगराजन टोरिया हैं, जहां पर 41 बच्चे दर्ज हैं। 

प्रदेश सरकार भले ही शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ों योजनाएं संचालित कर करोड़ों रुपए खर्च कर रही हैं, लेकिन इस स्कूल की हालत देखकर यह सभी योजनाएं विफल साबित हो रही हैं। किराए का भवन भी नहीं हैं। आम रास्ता जहां से लोग निकलते हैं, वहीं बच्चे बैठकर पढ़ रहे हैं।

एक सहायक शिक्षक की पदस्थापना भी इस स्कूल में की गई हैं और एक अतिथि शिक्षक पढ़ा रहा हैं। इस स्कूल में मोहल्ले के 41 बच्चे दर्ज हैं, पहली से लेकर पांचवीं तक पढ़ाने के लिए एक सहायक शिक्षक और एक अतिथि शिक्षक हैं।

सहायक शिक्षक राजेंद्र प्रसाद गोस्वामी ने बताया कि नगर पालिका का यह स्कूल हैं, जिस पर नगर पालिका का कंट्रोल रहता हैं। कई अधिकारियों सहित नपाध्यक्ष से स्कूल भवन के लिए निवेदन कर चुके हैं, लेकिन स्कूल भवन नहीं बनाया जा रहा हैं।

इससे अब आम रास्ते में ही स्कूल लगाया जाता हैं। शुक्रवार को यह स्कूल सिद्ध बाबा जाने वाले मुख्य मार्ग पर नवल कुशवाहा के मकान के बाजू से गए आम रास्ते पर लगा हुआ था। एक ओर जहां पूरे देश में इस समय बच्चों की सुरक्षा को लेकर एक बड़ी बहस चल रही हैं, ऐसे में इन बच्चों के सर पर तो सुरक्षा के नाम पर छत तक नहीं हैं, तो सुरक्षा का कोई सवाल ही नहीं उठता।

वहीं जिला शिक्षा उपसंचालक का कहना हैं स्कूल के निर्माण के लिए लगभग 50 प्रतिशत राशि  6 लाख रूपए भी दे दी थी, लेकिन निर्माण एजेंसी नगरपालिका हैं, इसलिए अभी तक उनके तरफ से कोई जबाब नहीं आ रहा हैं।

वे लोग कई बार पत्राचार भी कर चुके हैं, लेकिन कोई जबाब नहीं मिला। तीन साल पहले खुले शासकीय प्राथमिक स्कूल बगराजन टोरिया का कोई भी सरकारी भवन नहीं हैं। इतना ही नहीं स्कूल के लिए जमीन न होने की बात भी सहायक शिक्षक द्वारा कही गई।

सवाल यह उठता हैं कि जब स्कूल भवन और जमीन नहीं हैं, तो सरकारी स्कूल खोलने की अनुमति कैसे मिल गई। स्कूल अब चलित स्कूल जैसा संचालित हो रहा हैं, जहां छांव आ जाती हैं, वहीं यह स्कूल चलने लगता हैं। दिन में तीन बार स्थान बदला जाता हैं।