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कांग्रेस ने भाजपा का गढ़ बन चुकी सतना सीट पर किया कब्जा

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Dec 12, 2018

वरूण शर्मा : मध्यप्रदेश में सतना जिले की रामपुरबघेलान और अजा के लिए रिजर्व रैगांव विधानसभा सीट में कांग्रेस को 38 वर्ष बाद भी कामयाबी नहीं मिल पाई है। दोनों विधानसभा में सन 1980 से कांग्रेस ने जीत का स्वाद नहीं चखा है। कांग्रेस चित्रकूट सीट तो बचाने में कामयाब रही है, लेकिन गढ़ बन चुकी अमरपाटन सीट पर भाजपा एक मर्तबा फिर से सेंध मारने में कामयाब हो गई है। बदले में कांग्रेस ने भाजपा का गढ़ बन चुकी सतना सीट छीन ली है। कांग्रेस को सतना की शहर सीट पर 20 वर्ष बाद सफलता मिली है। बीजेपी को अमरपाटन , नागौद और रैगांव सीटों का जहां फायदा हुआ है,वहीं बसपा की इकलौती रैगांव सीट उसके हाथ से निकल गई है।  

सबसे कम उम्र के विधायक बने डब्बू, नागौद के नागेन्द्र सबसे बुजुर्ग

सतना शहर सीट से कांग्रेस के विधायक चुने गए सिद्धार्थ सिंह डब्बू जिले के सबसे कम उम्र यानि महज 33 वर्ष के विधायक हैं। कामयाब युवाओं में चित्रकूट से एक बार फिर कांग्रेस के विधायक बने नीलांशु चतुर्वेदी की उम्र 36 वर्ष है तो रामपुर बघेलान से पहली बार भाजपा के विधायक निर्वाचित विक्रम सिंह विक्की 39 वर्ष के हैं। जबकि रैगांव से निर्वाचित 78 वर्षीय भाजपा के विधायक जुगलकिशोर बागरी सबसे बुजुर्ग हैं। नागौद सीट के लिए विधायक चुने गए नागेंद्र सिंह 75 वर्ष के हैं।  

अप्रत्याशित परिणाम : 5 दिग्गज भी परास्त

अमरपाटन में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर और सतना में शंकरलाल हैट्रिक के बाद हारे...   

 मध्यप्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष डा.राजेन्द्र कुमार सिंह कांग्रेस की टिकट पर अमरपाटन सीट से चुनाव हार गए हैं। अमरपाटन से 4 बार विधायक रह चुके राजेन्द्र सिंह को भाजपा के पूर्व विधायक रामखेलावन पटेल ने 3 हजार 746 मतों के  अंतर से पराजित कर दिया है। रामखेलावन को सर्वाधिक 59 हजार 836 और राजेन्द्र सिंह को 56 हजार 89 मत मिले। बता दें कि वर्ष 2013  के आम चुनाव में कांग्रेस के इन्हीं राजेन्द्र सिंह ने भाजपा के रामखेलावन पटेल को 11 हजार 739 मतों के अंतर से हरा दिया था। इससे पहले रामखेलावन वर्ष 2008 में पहली बार भाजपा के विधायक चुने गए थे। तब उन्होंने कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह को 4 हजार 701 मतों के अंतर से हराया था। 

3 मौजूदा और 2 पूर्व विधायकों को भी शिकस्त 

सतना सीट से भाजपा के लगातार तीसरी बार विधायक रहे शंकर लाल तिवारी भी चुनाव हार गए हैं। कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व सांसद सुखलाल कुशवाहा के बेटे सिद्धार्थ कुुशवाहा डब्बू ने उन्हें 12 हजार 558  मतों के अंतर से हरा दिया है। सिद्धार्थ को सर्वाधिक 60 हजार 105 और शंकरलाल को 47 हजार 547 मत मिले। भाजपा का गढ़ बन चुकी सतना सीट पर पूरे 20 वर्ष बाद कांग्रेस की वापसी हुई है। वर्ष 1998 में इस सीट पर कांग्रेस के सईद अहमद चुनाव जीते थे। 

इसी तरह रैगांव से बसपा की मौजूदा विधायक ऊषा चौधरी भी चुनाव हार गई हैं। उन्हें महज 16 हजार 677 मत मिले। इस सीट पर भाजपा का मुकाबला कांग्रेस से रहा। पूर्व मंत्री और भाजपा  प्रत्याशी जुगुल किशोर बागरी ने कांग्रेस की कल्पना वर्मा को 17 हजार 421 मतों से शिकस्त दी। जुगुल को सर्वाधिक 65 हजार 910 मत और कल्पना को 48 हजार 489 वोट मिले। जुगुल बागरी इस सीट से इससे पहले 4 बार विधायक रह चुके हैं। 

विधानसभा के आम चुनाव में चित्रकूट सीट से भाजपा के पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह गहरवार और रामपुर बघेलान सीट से बसपा के पूर्व विधायक रामलखन पटेल भी चुनाव हार गए हैं। भाजपा के पूर्व विधायक सुरेन्द्र सिंह गहरवार को कांग्रेस के मौजूदा विधायक नीलांशु चतुर्वेदी ने 10 हजार 198 मतों के अंतर से शिकस्त दी। नीलांशु को सर्वाधिक 58 हजार 465 मत और भाजपा के सुरेन्द्र को 48 हजार 267 वोट मिले। इसी बीच , रामपुरबघेलान से बसपा प्रत्याशी और पूर्व विधायक रामलखन पटेल को राज्य मंत्री हर्ष सिंह के बेटे और भाजपा प्रत्याशी विक्रम सिंह विक्की ने 15 हजार 687 मतों के अंतर से परास्त कर दिया है। विक्रम को सर्वाधिक 68 हजार 816 और रामलखन को 53 हजार 129 वोट मिले। रामलखन इससे पहले वर्ष 1993 और वर्ष 2008 में इसी सीट से बसपा के विधायक रह चुके हैं।  उधर, नागौद सीट से कांग्रेस के मौजूदा विधायक यादवेन्द्र सिंह को भाजपा प्रत्याशी और खजुराहो से पार्टी के सांसद नागेन्द्र सिंह ने 1234 मतों के अंतर से हरा दिया है। नागेन्द्र सिंह को सर्वाधिक 54 हजार 637 और यादवेन्द्र सिंह को 53 हजार 402 वोट मिले।  पूर्व मंत्री नागेन्द्र सिंह इस सीट से इससे पहले 4 बार विधायक रह चुके हैं। इससे पहले वर्ष 2003 के चुनाव में  कांग्रेस के यादवेन्द्र को भाजपा के नागेन्द्र  ने 12 हजार 727 मतों के अंतर से पराजित किया था। 

वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा के नागेन्द्र सिंह से कांग्रेस के यादवेन्द्र सिंह का एक और मुकाबला हुआ। इस मुकाबले में भी नागेन्द्र ने यादवेन्द्र को 6 हजार 980 मतों के अंतर से शिकस्त दी थी।  लगातार दो शिकस्त के बाद भी यादवेन्द्र हार नहीं माने और वर्ष 2013 के चुनाव में उन्हें पहली बार कामयाबी मिली थी।