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भारत बंद कराने वाले आरोपियों पर केस दर्ज के बावजूद नहीं हो रही कार्यवाही

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May 2, 2018

ग्वालियर एससी एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए संशोधन आदेश के खिलाफ 2 अप्रैल को भारत बंद और हिंसा कराने वाले आरोपियों पर केस दर्ज होने के बाद भी पुलिस उनकी गिरफ्तारी नहीं कर रही है। हिंसा के मास्टरमाइंड के तौर पर सम्यक समाज संघ के लाखन बौद्ध का नाम सामने आया है और सोशल साइट्स व गिरफ्तार लोगों से पूछताछ के अलावा दूसरे सबूतों के आधार पर पुलिस ने लाखन के खिलाफ अब तक 31 एफआईआर दर्ज की हैं।

पुलिस नहीं कर रही आरोपियों पर कार्यवाही
लाखन को पुलिस ने अभी तक गिरफ्तार नहीं किया है, जबकि लाखन सोशल साइट्स पर वीडियो एवं लिखित पोस्ट डालकर साफ चुनौती दे रहा है कि मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इतना ही नहीं, लाखन व उसके साथियों के खिलाफ पुलिस ने धारा 124 A के तहत राष्ट्रद्रोह का केस दर्ज नहीं किया है। हिंसा के बाद से अब तक 100 से ज्यादा एफआईआर हो चुकी हैं और नामजद 205 लोगों में से 155 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। लेकिन मास्टरमाइंड तक पुलिस नहीं पहुंची है। वहीं फोटो-फुटेज से उपद्रवियों की पहचान प्रक्रिया भी शांत होती जा रही है।

कलेक्टर का इस पूरे मामले पर बयान
इस मामले मे कलेक्टर राहुल जैन का कहना है कि सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की भारत बंद में भूमिका की पड़ताल के लिए एसपी से कहा गया है। वहीं लाखन बौद्ध समेत अन्य ऐसे लोग, जिन्होंने भारत बंद-हिंसा के लिए मैसेज फैलाया। उनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह का प्रकरण दर्ज करने के संबंध में पुलिस शासकीय अधिवक्ता से अभिमत ले रही है। उसके बाद आगे कार्रवाई की जाएगी, मामले में कोई भी दोषी व्यक्ति नहीं बचेगा।

एक्सपर्ट और वकीलों का क्या है कहना
इस मामले मे एक्सपर्ट और वकीलो का कहना है कि लाखन बौद्ध व अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ हिंसा फैलाई, यह देश के खिलाफ नफरत फैलाने का काम है। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 124 A तहत राष्ट्रद्रोह का अपराध दर्ज होना था। लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया, वहीं उपद्रवियों के खिलाफ जिन धाराओं में केस दर्ज है, उसमें से 120 बी और 308, आईटी एक्ट के अपराध में पुलिस सीधे गिरफ्तार कर सकती है।

लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी
दरअसल इस साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और अगली साल लोकसभा व नगर निगम चुनाव। सूत्रों का कहना है कि सरकार कड़ी कार्यवाही कर किसी वर्ग को नाराज नहीं करना चाहती। ऑफ द रिकॉर्ड स्थानीय अफसरों को निर्देश हैं कि वे धीरे-धीरे कर मामले को शांत कर दें और जांच के बहाने कार्रवाई को अटकाया जाए। क्योंकि, एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के कारण इस वर्ग के लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी है।