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ग्वालियरः कैंसर पीड़ित महिलाओं के लिए एक अच्छी खबर, अब पत्तियों से हो सकेगा कैंसर का इलाज

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Dec 4, 2019

धर्मेन्द्र शर्मा - कैंसर का नाम सुनते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं लेकिन इसी कैंसर का इलाज जब पत्तियों से होने लगे तो वाकई में यह गर्भाशय कैंसर पीड़ितों को राहत देने वाली खबर है। ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय का फार्मेसी विभाग गर्भाशय कैंसर के इलाज के लिए पत्तियों के सहारे एक दवा बनाने जा रहा है। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसके नाम से ही लोग घबराते हैं। ऐसा हो भी क्यों ना, एक तो इसके इलाज पर लाखों रुपए खर्च होते हैं, बावजूद इसके बड़ी संख्या में कैंसर पीड़ितों की मौत भी हो जाती है। अब ग्वालियर का जीवाजी विश्वविद्यालय गर्भाशय कैंसर पीड़ित महिलाओं के लिए एक अच्छी खबर लेकर आया है। विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग में काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि दुही की पत्तियों के अर्क से गर्भाशय के कैंसर का इलाज अब संभव हो सकेगा।

दुही यानी असित कुटुज के पेड़ से तैयार अर्क, जो 10 दिन में कैंसर सेल्स को 70% से ज्यादा करता है नष्ट

शिक्षक और छात्रों ने दुही यानी असित कुटुज के पेड़ से ऐसा अर्क तैयार किया है जो 10 दिन में कैंसर सेल्स को 70% से ज्यादा नष्ट कर देगा। यह अर्क पेड़ की पत्तियों से तैयार किया गया है। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रयोग के लिए संरक्षित रखी गई कैंसर कोशिकाओं का उपयोग किया गया था। इनका ट्रीटमेंट अर्क से किया गया तो 4 दिन में असर दिखाई देना शुरू हुआ। 7 दिन में ही 70 प्रतिशत कोशिकाएं नष्ट हो गईं। अब जेयू इस अर्क का प्रयोग जानवरों पर करेगा और उसके बाद इसे कैंसर पीड़ित मरीज पर किया जाएगा। विश्वविद्यालय की फार्मेसी डिपार्टमेंट के छात्र आशीष दीक्षित और प्रोफेसर मुकुल तेलंग इसकी अपार संभावनाएं तलाश रहे हैं। इस अध्ययन से ही पता चला था कि राइटिया टिंकटोरिया यानी दुही के पेड़ में कैंसर विरोधी तत्व होते हैं। पेड़ के अलग-अलग हिस्सों के कैंसर रोधी तत्वों को तलाश किया गया तो पता चला कि पेड़ की पत्ती में कैंसर रोधी बीटा आमायारिन और फ्लेकोनाइट्स सहित अन्य तत्व भी मौजूद होते हैं। इस आधार पर दुही के पेड़ की पत्ती का अर्क तैयार किया गया तथा संरक्षित करके रखी गईं इम्मोर्टल कैंसर कोशिकाओं को मंगवाया गया।

गर्भाशय कैंसर से हर साल लगभग होती हैं 75000 मौत

इम्मोर्टल कैंसर कोशिकाओं का दुही के अर्क से ट्रीटमेंट शुरू किया गया। शुरुआती 3 दिन तक ज्यादा असर दिखाई नहीं दिया, लेकिन चौथे दिन से असर दिखाई देना शुरू हो गया। प्रोफेसर मुकुल तेलंग का कहना है कि गर्भाशय कैंसर से हर साल लगभग 75000 मौत होती हैं।  फार्मेसी अध्ययनशाला के छात्रों ने शोध के दौरान यह जानकारी जुटाई देश में प्रतिवर्ष 1.13 लाख महिलाओं में गर्भाशय कैंसर के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। इनमें से 75 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। गर्भाशय कैंसर का शिकार हर उम्र की महिलाएं होती हैं। यानी गर्भाशय कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो बड़ी संख्या में महिलाओं को अपनी चपेट में ले रही है। ऐसे में जीवाजी विश्वविद्यालय की दुही की पत्तियों के अर्क से बनी दवा के दूसरे प्रयोग सफल रहे तो यह मरीजों को बड़ी राहत देने वाली साबित हो सकती है।