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किसान की बेटी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी मांउन्ट ऐवरेस्ट के करीब

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May 17, 2018

ज़िद जज्बे और जुनून की यह कहानी है मेघा परमार की 24 साल की यह युवती सीहोर जिले के एक ऐसे गांव से आती है जिसकी आबादी ही महज 100 घरों में 1500 लोगों के बीच सिमट जाती है बहुत ही साधारण से किसान परिवार में जन्मी मेघा ने सपना भी देखा तो माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराने का। 

मेघा ने जब अपने इस फैसले में पिता दामोदर परमार को शामिल किया तो वे चौंक गए क्योंकि उनकी बेटी का यह सपना उनकी हैसियत से कहीं बड़ा था दामोदर कहते हैं कि मेघा ने एवरेस्ट छूने की अनुमति मुझसे दो साल पहले मांगी थी उसकी एवरेस्ट का शिखर छूने की ललक दिन व दिन बढ़ती गई अंतत: बेटी की बात मानकर उसे माउंट एवरेस्ट पर जाने की अनुमति दी।

एवरेस्ट पर जाने के लिए 23 लाख की जरुरत होती है जिसके लिए मेघा पूरे एक साल तक अलग-अलग सरकारी दफ्तरों में भटकती रही लेकिन उसे एक रुपए की भी मदद नहीं मिली ऐसे में प्राइवेट कंपनियों और बैंकों ने आगे आकर मेघा के सपने को पंख दिए इसी दौरान एवरेस्ट छू चुके रत्नेश पांडे से मेघा की मुलाकात हुई और उन्होंने मेघा को शारीरिक मानसिक रूप से माउंट एवरेस्ट के सफर के लिए तैयार किया।

कोलांस  नदी के किनारे बसे भोज नगर गांव के दामोदर परमार ने बेटी मेघा को काबिल बनाने के लिए रिश्तेदारों से उसकी लोकेशन तक छुपाई कोई पूंछता तो कभी भोपाल, कभी सीहोर तो कभी दिल्ली में होने की जानकारी देते रहे वे बताते हैं कि मेरी बेटी जल्द ही कामयाब होकर इतिहास लिखेगी।

सामाजिक गतिविधियों में सक्रियता

मेघा सोशल एक्टिविटी शुरू से ही सक्रिय रही है नेहरू युवा केन्द्र, सीहोर के माध्यम से सामाजिक जागरूकता के कई कार्यक्रमों में भाग लिया एवं रचनात्मक कार्यों में हिस्सेदारी भी की मेघा दिल्ली एयरपोर्ट से माउंट एवरेस्ट बेस कैंप के लिए 22 मार्च को रवाना हुई थी। 

मेघा की माँ मंजू देवी कहती हैं कि हमें तो ऊंचाई देखकर ही डर लगता है वह तो बर्फीली पहाड़ी पर चढ़कर सागरमाथा को छूएगी शुरुआत में मैंने बेटी से कहा हम गांव के साधारण लोग हैं ये काम अपना नही मगर मेघा नही मानी तो मैंने भी इजाजत दे दी अब बस वह सागरमाथा छूकर वापस आ जाए।