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नर्मदा की दो धाराओं के बीच टापू पर बसे स्वयं भू भगवान जहां हर सावन लगता है भक्तों का तांता

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Aug 20, 2018

त्रिलोक राठौर : राजा धर्मराज युधिष्ठर नगरी धरमपुरी जहाँ मिलती है ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हम बात कर रहे है धार के धरमपुरी की जहां नर्मदा की दो धाराओं के बीच टापू पर स्थित स्वयं भू भगवान श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में शिव भक्तों का तांता लग रहा है। पुण्य सलिल माँ रेवा के जल से चारो ओर से घिरा हुआ यह टापू जिसे महर्षि दधीचि की तपोभूमि भी कहा जाता है जो पौराणिक समय से यहां स्थित है।

यहां माँ रेवा के गर्भ में टापू पर स्थित शिवलिंग मानव स्थापित ना होकर स्वयं भू है।जिनके दर्शन मात्र से ही मांगी गई मन की हर मनोकामना पूर्ण होती है। कहा जाता है की भगवान श्रीराम के पूर्वज महाराजा रंतिदेव ने यहां मनोकामना की प्राप्ति के लिये यज्ञ किया था, राजा रंतिदेव की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं मानव रूप में यज्ञ कुंड से प्रकट हुए ओर यहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। 

यज्ञ में आम्र और बिल्वफल की आहुतियों के कारण ही यह श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुए, इसी स्थान पर महर्षि दधीचि ने भी अपनी हड्डियों का दान किया था,श्रावण मास के हर सोमवार को श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहाँ दर्शन के लिए आते है और नर्मदा में स्नान कर उसके पवित्र जल से भगवान श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव का जल से अभिषेक करते है। यह भी कहा जाता है की यहाँ स्थित कब्जा संगम के जल से भगवान श्री बिल्वामृतेश्वर महादेव का अभिषेक करने से ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिलती है,यह एक भव्य मंदिर होकर यह सदियों पुराना है एवम नर्मदा नदी के मध्य में स्थित है। यहाँ जो भी भक्त सच्चे मन से जो भी कामना करता है। भगवान श्री बिल्वा मृतेश्वर  महादेव उसकी मनोकामना पूरी करते है।