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होलीः रंगों का पर्व, हर्ष और उल्लास से भरपूर, जिसमें होती है परंपरागत ठिठोली  

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Mar 20, 2019

वीरेन्द्र तिवारी- हमारा देश सदियों से भारतीय रीति रिवाजों परम्पराओं का देश रहा है। त्यौहार पर्व उत्सव परम्परागत मनाने की प्रथा अनवरत जारी है। हर त्यौहार पर्व किसी न किसी पौराणिक, आध्यात्मिक, धार्मिककथा प्रसंगों को अंगीकार करते हुए इन धर्म प्रमुख व्यक्तियों प्रमुखों की प्रेरणा, संस्मरण, प्रसंग सदैव ही समूची मानव जाति के लिए प्रेरणादायी रहा है। होली पर्व पर भक्त प्रहलाद की सच्ची भक्ति ईश्वर आराधना समर्पित त्याग निष्ठा का प्रतीक है। होली की तो अपनी ही खुशी और उमंग होती है। रंगों का पर्व होली हमारे देश का प्रमुख पर्व है। यह भारत के विभिन्न प्रान्तों में ही नहीं वरन विश्व के अनेकों देशों में भी मनाया जाता है। वस इसके रूप अलग-अलग होते हैं।

विदेशों में भी मनाई जाती है अलग-अलग रूप में होली

इसमें कुछ देशों के पर्व तो भारत देश की होली जैसे ही होते है कुछ के समतुल्य होते है विदेशों में होली अलग-अलग रूप में मनाई जाती है अमेरिेका, इंग्लेंड, चीन, रूस, स्पेन, यूनान, इटली, आस्टैलिया, जापान, थाईलेंड, वर्मा, रोंम, मिश्र आदि में होली से मिलता जुलता पर्व मनाया जाता है। होली हमारे भारत देश का प्रमुख पर्व है। फागुन माह की पूर्णिमा पर भक्त प्रहलाद की सच्ची भक्ति ईश्वर के प्रति समर्पित त्याग निष्ठा का प्रतीक है। किवदंती है कि हिरण्य कश्यप की बहन को वरदान था कि होलिका तुम नहीं जल सकती, तुम्हें तो भगवान शिव का वरदान प्राप्त है। होलिका अपनी गोद में भक्त प्रहलाद को लेकर लकड़ी की जलती अग्रि में बैठ गई। परन्तु आग में होलिका तो जल गई प्रहलाद बच गए।

होली में होती है परंपरागत तरीके से ठिठौली

यह अच्छाई की जीत और बुराई की हार का प्रतीक है, इसलिए होली पर्व पर रंग गुलाल लगाकर आपसी सदभाव, परस्पर, सौहर्द्रता का वाताबरण बनाकर एक दूसरे के से गले मिलकर भाईचारा कायम करना है। होली पर्व पर रंग भरे मौसम में मस्ती में झूमते गाते नाचते गुलाबी, लाल, पीले, हरे, नीले, इंद्रधनुषी रंगों में रंगे लोगों का उत्साह देखते ही बनता है। मानों वह कह रहे हों होली के दिन दिल खिल जाते है, रंगों में रंग मिल जाते है। इसी होली को कहते है कि किसी से किसी का कोई बैर न हो और न हो मलाल, तभी तो लगाई जाती है रंग और गुलाल। सौ बोली की एक बोली, होली की ठिठौली, परम्परागत लोग मनाते हैं। जहां शहरों में दीपावली पर्व उल्लास का होता है तो वहीं ग्रामों, आदिवासी अंचलों में फाग का महत्व ही अलग ढंग से होता है। आदिवासी अॅचलों में होली पर झंडा तोड़ना, बीर घुमाना, निशान चडाने की परम्परा रंगपर्व पर मेला लगना, रंग गुलाल की होली का ग्रामों में भ्रमण कर होली गीत गाकर जश्र मनाया जाता है।

आदिवासी अॅचलों में झंडा तोड़ना, बीर घुमाना, निशान चढ़ाने की परम्परा 

मध्यप्रदेश के होशंगावाद जिले की सिवनी मालवा तहसील के आदिवासी अॅचलों, ग्रामों में सांभरधा, ढेकना, लोखरतलाई, नंदरवाडा, लही, भैरोंपुर, बिसौनी, बराखड, भरलाय आदि अनेक ग्रामों में झंडा तोड़ना, बीर घुमाना, निशान चढ़ाने की परम्परा के क्रम से एक दिन एक तिथि निश्चित होती है। चाहे वह दिन पूर्णिमा हो या पड़बा, द्वितिया, रंगपंचमी या रामनवमीं यह क्रम पड़वा से गुडी पड़बा तक चलता रहता है।

दवा के रूप में करते हैं प्रसाद का प्रयोग 

भारतीय किसान संघ प्रदेशाध्यक्ष एवं ग्राम के वरिष्ठ किसान रामभरोस बसोतिया बतलाते है कि आज भी सती सिलोचना जीवित है। बर्षों पूर्व गांव में होली पर्व पर प्रतियोगिता आयोजित होती थी, जिसमें लगी, तुर्रा, लाबनी, सिंगारी, होली गीत आदि गाए जाते थे। जिसमें से जो जवाब नहीं दे सका, उसे प्रतियोगिता से बाहर कर धेरा झंडी छीन ली जाती थी। तभी से यह परंम्परा आज भी जारी है। उन्होंने बताया कि गांव में पडिहाड आदिवासी खांण्डेराव पर चढ़कर वहां भूरा काटकर नीचे डालता है जिसे गांव वाले हाथों में लेते हैं। वह प्रसाद दवा के रूप में उपयोग करते है। यह परंम्परा इस गांव में करीब दो सौ वर्षों से निरन्तर चली आ रही है।