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महाशिवरात्रि के अवसर पर गुरूधाम दिघौरी में लगा भक्तों का तांता

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Mar 4, 2019

राजेन्द्र तरवरे- आज के दिन जहां पूरे देश में महाशिवरात्रि का पर्व बड़े ही भक्तिभाव से मनाया जा रहा है, वहीं सिवनी में महाशिवरात्रि पर मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। शिव की नगरी सिवनी में महाशिवरात्रि पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व के लिए जिले भर के शिवालय सजे हुए हैं। जगह-जगह आज के दिन भजन-पूजन और रुद्राभिषेक के साथ जागरण के कार्यक्रम के साथ हर-हर महादेव के जयकारे सुनाई दे रहे हैं। जिले के सभी छोटे बड़े शिवालयों में ब्रह्ममुहूर्त से ही श्रद्घालुओं का तांता लगा हुआ है। महाशिवरात्रि पर्व पर गुरुधाम दिघौरी में स्थापित विश्व की सबसे बड़े स्फटिक शिवलिंग में अभिषेक और पूजनपाठ करने दूर-दूर से श्रद्घालु पहुंच रहे हैं। इसी तरह नगर के सिद्घपीठ मठ मंदिर और शंकर मढ़िया सहित अन्य शिव मंदिरों में भक्त बड़ी संख्या में भोलेनाथ के जयकारे लगा रहे हैं।

दिघौरी में स्थापित है विश्व का अनूठा स्पटिक शिवलिंग

वैसे तो इस बार महाशिवरात्रि पर शिवायोग के साथ सात ग्रहों की राशि पुनरावृत्ति का संयोग बनने की बात ज्योतिष कर रहे हैं। धर्म और आध्यात्म के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। यह संयोग धर्म और आध्यात्म में वृद्धि का संकेत देता है। खास बात यह है कि 131 साल बाद यह संयोग बन रहा है। सिवनी जिले में स्थित विश्व का अनूठा स्फटिक का शिवलिंग गुरूधाम दिघौरी में स्थापित है। जहां आज शिवरात्रि के इस अवसर पर दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े हैं। इस शिवलिंग की स्थापना द्वारका पीठ के शंकाराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती ने किया था। जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर गुरुधाम दिघोरी स्थित है। श्री गुरूरत्नेश्वर धाम दिघोरी में ही इस अनूठे शिवलिंग की स्थापना की गई है।

जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी की है जन्म स्थली 

सिवनी निवासी शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज ने 15 फरवरी से 22 फरवरी 2002 के बीच आयोजित धार्मिक मेले में स्फटिक के इस अनूठे शिवलिंग की स्थापना की थी। शिवलिंग स्थापना के दौरान देश की समस्त पीठों के शंकराचार्यों के अलावा देश में प्रचलित सभी धर्मों के महान धमार्चार्य भी सिवनी आए थे। बर्फ की चट्टानों के बीच कई वर्षो तक पत्थर में दबे रहने से ऐसे स्फटिक के शिवलिंग का निर्माण होता है। यह शिवलिंग कश्मीर से लाया गया था। इसके पूजन का भारतीय धर्म ग्रन्थों में बहुत महत्व बताया गया है। बर्फ की चट्टानों के बीच कई वर्षो तक पत्थर में दबे रहने से ऐसे स्फटिक के शिवलिंग का निर्माण होता है। सिनवी के ग्राम दिघोरी में जिस स्थान पर शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज का जन्म हुआ था, उसी स्थान पर इस शिवलिंग की वैदिक मंत्रोच्चार के साथ स्थापना की गई थी। मंदिर के गेट पर भगवान श्री शिवजी का परिवार विराजित है। दिघोरी में श्री गुरू रत्नेश्वर धाम का विशाल मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बनाया गया है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में स्फटिक के शिवलिंग का दर्शन और पूजन से समस्त पापों का नाश होता है। मंदिर के पास से पवित्र वैनगंगा नदी भी बहती है।