May 30, 2018
देश की आवाम बुनियादी सुविधाओं के लिए आज भी मोहताज हैं जनता को सरकारों से उम्मीद हैं लेकिन मध्यप्रदेश के सागर में एक गांव में सरपंच ने कुछ ऐसा किया की फिर जनता को न तो सरकार से मतलब रहा और न उनकी योजनाओं से, वो तो अपने सरपंच में ही सरकार देखती हैं। यहां के लोग कहते है कि सरकार से बड़ा हमारा सरपंच हैं
सागर जिले की जैसीनगर जनपद पंचायत का यह गांव खेजरा माफी हैं। 3 हज़ार की आबादी के इस गांव में पांच साल पहले सड़क पानी विजली की समस्या के चलते गांव तरक्की से कोसों दूर था। पिछड़ेपन का दंश झेलते इस गांव को ऐसा सरपंच मिला की गांव की तकदीर ही बदल गई। सरपंच कृष्णकुमार मिश्रा को उनके उस भाई मुन्नालाल मिश्रा का समाज सेवा में सहयोग मिला जो बीएसएफ के निरीक्षक पद से रिटायर्ड होकर गांव के विकास में जुट गए।
दो भाईयों ने मिलकर बदल दी गांव की सूरत
सबसे पहले इन दोनों भाइयों ने नल जल योजना पर काम किया और अपने निजी ट्यूब वेल से दस मीटर ऊंची तीन हज़ार मीटर पाइप लाइन गांव में बिछा दी । इतना ही नही इन्होंने दो फोरव्हीलर गाड़ियां तैयार की जो गर्भवती महिलाओं और बीमार व्यक्ति को शहर तक नि:शुल्क ले जाती हैं और इलाज कराने के बाद वापिस लाती हैं। गरीब लोगों के इलाज कराने के लिए सरपंच खुद पैसे देते हैं। इतना ही नही इनके द्वारा दो ट्रेक्टर किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं जो अपनी बोबनी ओर खेतो को जोत के लिए निशुल्क दिए जाते है।
गरीब किसानों को बीज भी फ्री में दिया जाता है
गरीब किसानों को बीज भी फ्री दिया जाता हैं। समाजसेवा की इस गजब पहल में सरपंच कृष्णकुमार और उनके बड़े भाई मुन्ना लाल ने अपने गांव की जनता के लिए एक आटा चक्की भी खुलवा दी क्योंकि ग्रामीणों को गांव से बाहर आटा पिसवाने जाना पड़ता था। सरकार की भांति सरपंच से तीर्थ के लिए एक बस और लोकल क्षेत्रो के आसपास कथा सुनने या मंदिरों को जाने के लिए अपनी गांव की जनता को ट्रेक्टर भी लगा दिए। जरूरतमन्दो को सरपंच के बड़े भाई मुन्ना लाल पैसा भी देते हैं। गरीब कन्याओं का विवाह भी कराते हैं। मुन्नालाल जी धार्मिक है और अक्सर वो अपने गांवो के बुजुर्गों के साथ अपने खर्चे पर तीर्थो पर रहते हैं।
सरपंच के भाई अपनी कमाई का आधा हिस्सा देते हैं गांव के लिए
आप जानकर हैरान होंगे सरपंच कृष्णकुमार को उनके भाई ने अपनी नौकरी की सारी कमाई दे दी की वो खेजरा गांव का विकास करे। इस परिवार में छह भाई है जिसमे चार नौकरी करते हैं । सभी भाई अपनी कमाई का आधा पैसा अपने सरपंच भाई को देते है ताकि उनका गांव खुशहाल रहे। सरपंच कृष्ण कुमार की माने तो उन्होंने किताबो में से गांधी जी की समाजसेवा देख ऐसा करने का मन बनाया था गांव के लोग अपने सरपंच की बात करते हुए कहते हैं की मुझे सरकार से कुछ लेना देना नही मेरे लिए तो मेरे सरपंच ही सरकार हैं। आप यह सुनकर दंग रह जाएंगे की सरपंच का आदेश है की गांव में न तो कोई शराब पियेगा और न ही कोई जुआ खेलेगा समाज और गांव को नशामुक्त बनाने का इस गांव का यह संकल्प रंग लाया हैं यहां कोई शराब और जुआ गांव में नही खेलता। सरकार को लजाती इस गांव की तस्वीर अपने सरपंच की न सिर्फ बात मानती हैं बल्कि उनके कहने पर हर बुरा काम छोड़ने के लिए तैयार भी हैं।