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इछावरः खुले में शौच से मुक्त की जमीनी हकीकत कुछ और करती है बयां

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Apr 11, 2019

संतोष बौद्ध- सरकार चाहे  लाख विकास के दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत तो शून्य ही नजर आता है। ऐसा एक मामला इछावर जनपद के ग्राम पंचायत जामली में देखने को मिल रहा। जबकि सिहोर जिला लगभग 3 वर्ष पहले ही खुले से शौच मुक्त हो चुका है। इछावर जनपद और ग्राम पंचायत जामली भी खुले से शौच मुक्त हो चुका। लेकिन  बड़ी बात ये है कि जब जिला खुले में शौच से मुक्त हो चुका, जनपद भी खुले में शौच से मुक्त हो चुका है और जामली पंचायत भी खुले में शौच से मुक्त हो चुका, फिर भी गांवों में आदिवासी आज भी खुले में शौच करने को मजबूर हैं।

कहीं टूटे तो कहीं आधे-अधूरे बने हैं शौचालय

आदिवासियों के शौचालय पूरी तरह से टूट गए और कहीं तो आधे-अधूरे शौचालय ही छोड़ दिये गए हैं। किसी में सीट भी नहीं लगाई गई और किसी शौचालय का गड्डा भी नहीं खुदा है, फिर  भी खुले में शौच से मुक्त कर चुके हैं  पंचायत को। बड़ी बात ये है कि शौचालय की राशि भी पूरी निकाल ली गई है, जो आज तक हितग्राही को नहीं मिल पाई। इससे साफ नजर आता है कि जनपद CEO ओर  सरपंच सचिव की मिली भगत से सिर्फ कागजों पर ही जिले और पंचायतों को ODF घोषित कर दिया।

आदिवासी मूलभूत सुविधा से वंचित, खबर लेने वाला कोई नहीं

आज भी आदिवासी परिवार मूलभूत सुविधा से वंचित है, जिनकी खबर लेने वाला कोई भी नेता या प्रशासन के नुमाइंदे  नहीं है। जबकि चुनाव के समय में ही वोट मांगने चले जाते लेकिन बड़ी बात तो ये है कि आदर्श ग्राम जामली के ये हाल हैं तो अन्य गांवों के क्या हाल हैं। इस विषय में जनपद CEO से बात करना चाही तो साहब के पास जनता की समस्या को हल करने के लिए समय ही नहीं है। जब मीडिया ने दूरभाष पर बात करना चाही तो CEO फोन ही नहीं उठा रहे थे और ऑफिस से  भी गायब रहते हैं। जब खुद जिम्मेदार अधिकारी का इस तरह का रवैया है तो पंचायत के सरपंच ओर सचिव का जनता के लिए किस तरह का व्यवहार होगा। जनपद CEO के द्वारा सचिव को मिडिया के बारे में यह कहा जाता है कि जो लगे वो छापे, छापने दो, मीडिया क्या कर लेगा। इससे साफ दिखाई दे रहा है कि अधिकारी खुद भारी भष्ट्राचार में लिप्त है, तभी तो सरपंच सचिव की वकालत कर रहे हैं। जिसका खामियाजा ग्रामीण आदिवासियों को भुगतना पड़ रहा है।