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उमरेठ में पंचदिवसीय मेघनाद मेला,26 मार्च को होगी रंग गुलाल के साथ धुरेंडी

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Mar 21, 2019

तरेंद्र सोनी : तहसील मुख्यालय उमरेठ के नेहरू चौक में मां निकुम्बला देवी और खंडेरा बाबा आमने सामने स्थित है, जहां मेघनाद मेला जारी है। होली के दिन खंडेरा बाबा के गल घूमने के साथ ही मेले की शुरुआत हुई। यह मेला छिंदवाड़ा जिला का पुरातन काल अंग्रेजों के जमाने से लगने वाला ऐतिहासिक मेला है। इस मेले का वर्णन प्राचीन काल के भूगोल में मिलता है। इस मेले में मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र के भी लोग आते हैं। कहा जाता है कि रावण पुत्र मेघनाद की आराध्य देवी मां निकुम्बला आदिवासियों की भी आराध्य देवी है। पुरातन काल से ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित खंडेरा बाबा जिसमे स्वयं रावण पुत्र इंद्रजीत मेघनाद का वास होता है। यहां सच्चे मन से जो मन्नतें मांगी जाती है वह अवश्य पूरी होती है।

मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु करते हैं ऐसा काम
वर्ष भर जो लोग अपनी अपनी समस्याओं और मांगों को लेकर इस स्थान पर पूजन अर्चन कर अपनी मन्नतें मांगते हैं वे साथ में यहां यह भी कहकर जाते है कि मन्नत पूरी होने पर वे खंडेरा बाबा की पांच खुटी चढ़ेंगे या फिर वीर बनकर गल पर घूमेंगे। मेला के शुरू होते ही उनके शरीर मे भार आने लगता है वे आंठ दस आदमी के संभाले भी नही सम्भलते उन्हें घर से ही स्नान कराकर नये कपड़े पहनाकर कमर में रस्सी बांधकर तथा दोनों हाथ रस्सी से बांधकर गाजे बाजे के साथ यहां लाया जाता है। जैसे ही वीर को भार चढ़ता है वे घर से ही खंडेरा की तरफ दौड़ते हुये भागने लगते हैं जिसे कमर में बंधी रस्सी को खींचकर नियंत्रित किया जाता है। वीर के पीछे चलने वाली व्यक्तियों की भीड़ मुंह पर हाथ रखकर जोर जोर से चिल्लाती है। वीर को खंडेरा तक ले जाने में जो बाजे बजाये जाते है उसकी अपनी एक धुन है जो सिर्फ मेघनाद मेले में ही सुनने को मिलती है। वीर को खंडेरा बाबा के पास लाकर पूजन अर्चन के बाद खंडेरा पर चढ़ाकर गल पर औंधा कमर से बांधकर हवा में एक से पांच बार जब तक उसका भार शरीर से उत्तर ना जाये तब तक घुमाया जाता है।

मुर्गे और बकरे की चढ़ती है बली

यहां आज भी इस मेले में बली प्रथा बेरोकटोक खुलेआम जारी है। मन्नत मांगने वाले जब वीर लेकर उमरेठ आते हैं तो वे साथ मे बकरा और मुर्गा भी लाते हैं। उमरेठ आते ही नगर के बाहर पेड़ो के नीचे टेंट लगाकर वे रुकने का अस्थाई स्थान बनाते है फिर पूरी तैयारी कर खंडेरा बाबा तक चल पड़ते है। खंडेरा बाबा को पूजन अर्चन के बाद मुर्गा और बकरा की बली देते है जहां मुर्गे और बकरे का सिर खंडेरा के पास बने भैरव देव के स्थान पर चढ़ा दिया जाता है शेष बचे मुर्गे और बकरे के शरीर को नगर से बाहर ठहरे हुये स्थान पर ले जाकर पकाकर भोजन प्रसाद के रूप में खाया जाता है जिसका एक कण भी घर नही ले जाया जाता।

मेले के दौरान नगरवासियों के प्रत्येक घरों में लगा रहता है मेहमानों का तांता

मेले के दौरान खंडेरा बाबा का पूजन अर्चन एवं मेले का आनंद लेने आये मेहमानों तथा रिस्तेदारों का उमरेठ निवासियों के घरों में तांता लगा रहता है। इस त्योहार में नगरवासी द्वारा रिस्तेदारों के अलावा अपनी अपनी बेटी-जमाई को विशेष तौर पर घर बुलाने की परम्परा है। इन पांच दिनों नगर में उत्सव जैसा माहौल बना रहता है।


होलिका दहन के छठवें दिन होती है धुरेंडी

जहां देश भर में होलिका दहन के बाद धुरेंडी खेली जाती है वहीं उमरेठ नगर में रंग पंचमी तक धुरेंडी तथा रंग गुलाल नही खेल जाता। होलिका दहन के छठवें दिन मेले के समाप्त हो जाने के बाद रंग गुलाल और धुरेंडी खेली जाती है।

अतिक्रमण, बसूली एवं अव्यवस्थाओं के चलते टूट रहा है मेला

खंडेरा के रखरखाव के लिये खंडेरा पर बढ़ई तथा लोहार समाज के कुछ लोगों का प्रभुत्व है जो मेले के दौरान वीर खुटी चढ़ने वालों से 200 रुपये की रशीद काटकर खंडेरा पर पूजन अर्चन कर मन्नत उतारने की अनुमती प्रदान करते है।

प्रतिवर्ष मेले में दुकानें हो रही कम 

खंडेरा तथा मेले की भूमि एक पटेल द्वारा दान की गई भूमि है जिसका राजस्व अभिलेखों में उल्लेख है इस भूमि पर लगभग पूर्णतः अतिक्रमण हो गया है। जिसके चलते मेले में आयी दुकानों को जगह नही मिल पाती है। मजबूरन उन्हें अन्यत्र मार्ग पर दुकानें लगानी पड़ती है। शासकीय मार्ग पर जिन घरों के सामने दुकानें लगती है वे भी दुकानदारों से राशि वसूल कर लेते हैं। पूर्व में ग्रामपंचायत द्वारा मेले का ठेका दिया जाकर प्रत्येक दुकानदारों से बसूली कराई जाती थी जो कुछ वर्षों से बंद कर दी गयी है। जबकि इसके एवज में दुकानदारों को कोई व्यवस्था खंडेरा समिति एवं ग्रामपंचायत द्वारा नही दी जाती जिससे प्रतिवर्ष मेले में दुकानें कम होती जा रही है एवं मेला टूट रहा है। वो दिन दूर नही जब यह मेला सिर्फ इतिहास के पन्नो में दर्ज होकर रह जायेगा।