Jun 1, 2018
सतना जिले में भीषण जलसंकट की आहट के बीच झिरिया गांव की करीब 2 सौ आबादी कई सालों से महज झरने के रिसते पानी में जिन्दा है। यदि इस झरने के स्त्रोत सूख जाएं तो यकीन मानिए गांव का नामोनिशान मिट जाएगा। दरअसल, इस गांव में किए जा रहे बोर बिल्कुल सफल नहीं होते। अभी हाल ही में किया गया साढ़े 7 सौ फीट का बोर भी हवा उगल रहा है। गांव का गांव इसी झरने के पानी पर आश्रित है। गांव की पहचान ही यही झरना है, इसीलिए तो गांव का नाम पड़ा झिरिया।
गांव से डेढ़ किमी दूर झरना शार्टकट रास्ते की बात करें तो जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर झिरिया गांव की असल पहचान परसमनिया पठार से है। कुलगढ़ी जलाशय के बाजू से सटे पहाड़ से होकर झिरिया गांव आसानी से पहुंचा जा सकता है। झिरिया पहुंचते ही आभास होगा कि इस खालिस गांव ने मानो कभी शहर का मुंह ही नहीं देखा होगा। महाराजपुर पंचायत के इस छोटे से गांव से झरना लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर होगा। हर रोज सुबह, शाम या फिर जरूरत के हिसाब से लोग झरने से ही पानी लाते हैं।
झरने के स्त्रोत कई हिस्सों में चट्टानों से होकर नीचे जाता है। पानी बिखरा होता है जिसे बर्तन में भरना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में गांव वाले पेड़ों से पत्ते तोड़कर उसे पानी के स्त्रोत पर लगा देते हैं जिससे पानी की एक धार बनकर बर्तन में गिरने लगती है। महिलाएं अपने घर से गेहूं लाकर भी यहीं धोती हैं तो कपड़े भी यहीं धुले जाते हैं। गांव वालों की यहीं जीवन रेखा है। गांव में कोई आयोजन भी होता है तब भी लोग यहीं से पानी ले जाते हैं। झरने का पानी गांव ले जाने की कोशिश बेकार गांव वालों का कहना है कि ग्राम पंचायत ने झरने का पानी गांव ले जाने की बेहद कोशिश की मगर नाकाम हो गई। एक पाइप लाइन डालकर मोटर लगाई गई और यह कोशिश की गई कि शायद इस जुगत से गांव तक पहुंच जाएगा और गांव वालों को पानी के लिए खतरा मोल नहीं लेना पड़ेगा। मगर कोई बात नहीं बनी। थकहार का पंचायत ने पानी के स्त्रोत तक पहुंचने के लिए पक्की सीढिय़ों का निर्माण करा दिया।