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जिनके वोट से बने विधायक-मंत्री, वही बिजली, सडक, पानी के लिए मोहताज

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May 18, 2018

आज हम बात कर रहे है पवई विधानसभा की जहां पवई मुख्यालय से लगे हड़ा पंचायत के कुटरहिया तालगांव एवं रमपुरा के लोग आजादी के 70 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं के आभाव में अपना जीवन जीने को मजबूर है।

यहां न तो सड़क है न बिजली एवं न ही पानी यहां के लोगों की माने तो चुनाव के समय तो यहां दरवाजे-दरवाजे नेताओं की गाड़ियां खड़ी रहती है एवं वोट के नाम पर बिजली, सडक, पानी के साथ-साथ तरह-तरह के प्रलोभन देते हुये भोली-भाली जनता से वादे करते है परन्तु इसी जनता के वोट से विधानसभा एवं मंत्रीमंडल पहुंचनें के बाद दुबारा पांच साल तक जंगल के बीच बसे इन गांव की सुध ली जाती है न ही इनकी समस्याओं की बात की जाती है।

इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस और भाजपा दोनो ही दल के दो कद्दावर नेता मुकेश नायक एवं बृजेन्द्र प्रताप सिंह है जिनका म0प्र0 की राजनीति में बड़ा नाम है साथ ही दोनो ही विधायक अपनें-अपनें समय में इस विधानसभा क्षेत्र से दो-दो वार मंत्री रह चुके है इसके बाबजूद इस विधानसभा मुख्यालय से लगी ग्राम पंचायत हड़ा के कुटरहिया, तालगांव एवं रमपुरा गांव के लोग बुनियादी सुविधाओं के आभाव में अपना जीवन काट रहे है। 

यदि हम सबसे पहले बात करें हड़ा के कुटरहिया गांव की तो यहां लगभग 500 लोग निवास करते है जहां एक हेन्डपम्प से पूरे गांव के लोगों की अपनी प्यास बुझानी पड़ती है यदि इस हेन्डपम्प नें भी पानी देना बंद कर दिया तो गांव के लोगों को तालाब का मवेशियों द्वारा गंदे पानी के आलाव ऐंसा कोई जल स्रोत नहीं है जिससे इस गांव के लोग अपनी प्यास बुझा सकें।

साथ इस गांव के लोगों को चलनें के लिए न तो रास्ता है और न ही बिजली पक्की सड़क से लगभग 6 कि0मी0 अंदर बीच जंगल में बसे लोगों के चलनें के लिए आज तक यहां न तो पंचायत के सरपंच/सचिव एवं न ही जनप्रतिनिधियों नें सड़क बनानें की सुध ली रास्ता न होने के कारण आवागमन ठप्प है जिस कारण यहां कोई-अधिकारी एवं कर्मचारी नहीं जाते है ऐसे में यदि परिवार का कोई व्यक्ति बीमार होता है तो लोगों को पालकी में लेकर 25-26 कि0मी0 पैदल चल कर पवई जाना पडता है।

यहां के बुजुर्गो का कहना है कि उनकी पूरी उम्र व्यतीत होने को है परन्तु उन्होंने आज तक अपने गांव बिजली नहीं देखी इसी तरह लगभग तीन पीड़ियों के लोग बगैर बिजली के अंधकार में जीवन जीनें को मजबूर है।

शैक्षणिक व्यवस्थाएं भी पूरी तरह से ठप्प पड़ी है दूसरे गांव तालगांव की हम बात करें तो वहां भी बिजली, सड़क एवं पानी से लोग जूझ कर अपना जीवन काटनें को मजबूर हैं यहां के लोगों को लगभग 1 कि0मी0 दूर 150 से ज्यादा सीडियां चढ़ कर नदी से पानी लाना पड़ता है न तो यहां सड़क है और न ही पिछले 20 सालों से यहां लाईट है पक्की सड़क से लगभग 15 कि0मी0 एवं पवई मुख्यालय से लगभग 35 कि0मी0 दूर बीच जंगल में बसे इस गांव के लोगों का जीवन अंधकार से भरा है जिनकी सुध लेने वाला न कोई जनप्रतिनिधि एवं न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी जिस कारण गांव के लोगों में क्षेत्र के जनप्रतिनियों के प्रति काफी रोष व्याप्त है।

बरसात के दिनों में तो इन गांव के हाल और भी दयनीय होते है जो बरसात में बाढ़ आने से चारों तरफ से घिर जाते है ऐसे में यदि कोई बीमार एवं किसी प्रकार की खाने-पीने की जरूरत होती है तो उन्हें नदी पैर कर पवई की ओर जंगलों के रास्ते से जाना पडता है।

शिक्षा के क्षेत्र में शासन नें स्कूल तो बना दिया परन्तु यहां पर पदस्थ शिक्षकों के गांव के लोगों को आज तक दर्शन नहीं हुये और शिक्षकों नें एक नायाब तरीका अपना कर गांव या आसपास के किसी व्यक्ति को किराये से स्कूल खोलनें और बंद करनें के लिए लगा कर स्कूलों को ठेके पर चलानें का काम किया जा रहा है वेतन के नाम पर शासन से मोटी-मोटी रकम बसूलनें वाले शिक्षक बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे है। 

मिली इसी तरह हम हड़ा पंचायत के तीसरे गांव रमपुरा की बात करें तो यह भी बुनियादी सुविधाओं के नाम पर लोग आंसू बहा रहे है एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया एवं स्वर्णिम मध्यप्रदेश बनाने की बात कर रही है वहीं पवई मुख्यालय से लगभग 30 से 35 किलोमीटर के एरिया में बसे कुछ गांव ऐसे भी है जहां आजादी के 70 साल बाद भी यहां बुनियादी सुविधाओं के लाले पड़े है बिजली, पानी एवं सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं यहां के लोगों तक आज भी नहीं पहुंची।

इस गांव की सबसे बडी समस्या ये है कि यहां लोगों को पीनें के पानी के लिए कोई भी साधन नहीं है दूर-दूर तक यहां न तो पानी है एवं न ही बिजली के खम्भे पानी के लिए लोगों को आने जाने में लगभग 10 कि0मी0 मीटर दूर पहाड़ीयां चढ़ और उतर कर पानी लाना पड़ता है सड़क तो जैसे कही दिखाई ही नहीं देती है जहां से यहां के लोगों नें चलना शुरू कर दिया उनके लिए वही सड़क है।

शिक्षा के नाम पर स्कूल तो बना है पर पढानें वाले सरकार से मोटी रकम लेकर अपनें घरों में आराम फरमा रहे है गांव के ही लोगों को दो-तीन हजार रूपये में किराये से लगा कर स्कूल खोलनें और बंद करनें का काम दे दिया गया है जिस कारण बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ आज बच्चों का भविष्य भी अंधकार मय हो चला है ऐसा है हमारा डिजिटल इंडिया एवं स्वर्णिम म0प्र0।