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भूखे प्यासे मासूम बच्चों के साथ मजदूर महिलाओं ने पन्ना कलेक्टर से लगाई न्याय की गुहार

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Mar 9, 2019

गणेश प्रसाद विश्वकर्मा- कल पूरा विश्व  महिलाओं के सम्मान के लिए महिला दिवस तो जरूर मना रहा था। दूसरी तरफ पन्ना में महिलाओं का महिला दिवस के दिन  वन विभाग  के द्वारा बंधुआ मजदूर बनाकर काम करने का और शोषण का मामला सामने आया  है। छोटे-छोटे मासूम बच्चों के साथ महिला मजदूर उमरिया जिले की रहने वाली हैं। जो अपने पूरे परिवार के साथ कल पन्ना कलेक्टर से अपनी मजदूरी दिलाने की न्याय की गुहार लगाने पहुंची थीं। जहां पर उन्होंने बताया कि दक्षिण मण्डल के कल्दा रेंज में इन्हें मजदूरी के लिए बुलाया गया था। जिन्हें बकायदा प्रीति गड्डी रेट तय किया गया था। लेकिन करीब 1 महीने इन मजदूरों से रेंज कल्दा वीट धरमपुर दक्षिण वन मंडल  में मजदूरी कराई गई, और बाद में 1 महीने होने के पश्चात भी इन्हें भुगतान नहीं किया गया। जिससे यह महिला और पुरुष मजदूर अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ पन्ना कलेक्ट्रेट पहुंच गए और मजदूरी दिलाने की न्याय की गुहार लगाई।

राजनीतिक दल भी इस मामले में आंखें बंद किये हुये

मध्य प्रदेश सरकार  गरीब  मजदूरों को काम दिलाने के लिए बातें तो बहुत करती है। चुनावी वर्ष में चुनावी घोषणा पत्र में सभी राजनीतिक दल गरीब मजदूरों का मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ता है। लेकिन प्रदेश में किस प्रकार गरीब मजदूरों के साथ शोषण किया जा रहा है, इसकी खबर ना तो किसी राजनीतिक दल को है और ना ही किसी प्रशासनिक अधिकारियों को। मामला पन्ना जिले से सामने आया है, जहां पर दक्षिण बन मंडल के कल्दा वीट वन रेंज में गरीब मजदूरों को उमरिया जिले से वन रेंज में गड्ढा खोदने के काम के लिए बुलाया गया था। काम करवाने के बाद इन का भुगतान नहीं किया गया है। मजदूरों ने वन विभाग पर बंधक बनाकर काम कराने जैसे गंभीर आरोप भी लगाया है।

विश्व महिला दिवस का कुरूप चेहरा

एक तरफ आज पूरा विश्व महिला दिवस मना रहा है, दूसरी तरफ विश्व महिला दिवस का कुरूप चेहरे के रूप में पन्ना में दक्षिण बन मंडल में प्रताड़ित महिलाएं अपने हक की कमाई के लिए आस संजोये बैठी हैं। मामला इसलिए गंभीर हो जाता है कि प्रदेश सरकार महिलाओं और बच्चों के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं तो चला रही है, लेकिन गरीब तबके के लोगों के लिए यह योजनाएं किस प्रकार कारगर है, इसका जीता जागता उदाहरण देखने को पन्ना से मिला है। अब ऐसे में सवाल है खड़ा होता है कि यह करीब 30 से 35 मजदूर जिसमें महिलाएं छोटे-छोटे मासूम बच्चे और पुरुष शामिल हैं, इसकी जिम्मेदारी ना तो कोई राजनीतिक दल उठा रहा है और ना ही प्रशासनिक अधिकारी।