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जानिए बैतूल विधानसभा के पांच दशकों की राजनीति का इतिहास

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Oct 19, 2018

युवराज गौर : बैतूल विधानसभा का इतिहास काफी उथलपुथल भरा रहा है यहां पिछले पांच दशकों की राजनीति में कांग्रेस , जनसंघ , भाजपा और निर्दलीय प्रत्याशियों तक ने किस्मत आजमाई और सफल भी हुए। लेकिन समय के साथ अब यहां मुख्य तौर पर कांग्रेस और बीजेपी ही आमने सामने रह गई हैं। कांग्रेस के लिये साल 2003 बेहद मनहूस साबित हुआ जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता और उद्योगपति विनोद डागा बीजेपी प्रत्याशी शिवप्रसाद राठौर से नजदीकी अंतर से चुनाव हार गए। ये दौर कांग्रेस के लिये मनहूस इसलिये कहलाया क्योंकि 2003 के बाद हुए किसी भी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बैतूल की सीट वापस हासिल नहीं कर पाई।

यहां 2008 में बीजेपी के अल्केश आर्य ने कांग्रेस के विनोद डागा को ही महज 4 हजार मतों से शिकस्त दी। इसके बाद 2013 में बीजेपी के हेमंत खंडेलवाल ने कांग्रेस के हेमंत वागद्रे को लगभग 25 हजार मतों के बड़े अंतर से हराकर कांग्रेस को रसातल में पहुंचा दिया। अब एक बार फिर कांग्रेस इस विधानसभा सीट पर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा पाने की जुगत में लगी है और सत्ता विरोधी लहर को पूरी तरह भुनाना चाहती है।

बैतूल विधानसभा क्षेत्र से संभावित उम्मीदवारों की जानकारी :

सबसे पहले बात भाजपा की जिसमें:

1. हेमंत खंडेलवाल - वर्तमान बैतूल विधायक  हेमंत खंडेलवाल संभवत: बैतूल से बीजेपी के प्रत्याशी हो सकते हैं इस दौड़ में वो सबसे आगे चल रहे हैं हेमंत की पारिवारिक प्रष्ठभूमि बैतूल की राजनीति में सीधा दखल रखती है। हेमंत के पिता स्वर्गीय विजय खंडेलवाल बैतूल के लगातार 15 साल सांसद रहे। 2007 में उनके निधन के बाद लोकसभा उपचुनाव हुए जिसमें हेमंत खंडेलवाल ने कांग्रेस के सुखदेव पांसे को लगभग 25 हजार के नजदीकी अंतर से हराकर एक साल तक बतौर सांसद काम किया। इसके बाद वो संगठन के कामों में जुटे रहे। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें फिर मौका दिया और उन्होंने कांग्रेस के हेमंत वागद्रे को लगभग 40 हजार के भारी अंतर से हराकर विधायक पद हासिल किया। पिछले पांच सालों में हेमंत खंडेलवाल ने ताबड़तोड़ विकास कार्य किये जिससे जनता और पार्टी में उनकी एकतरफा छवि बनी हुई है और इसी वजह से फिलहाल बीजेपी शायद ही किसी और पर दाँव खेलेगी।

2. लता राजू महस्की - पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लता राजू महस्की भी बीजेपी से दावेदारी कर रही हैं बैतूल के सबसे बड़े वोट बैंक यानि  कुनबी समाज का होने की वजह से लता की दावेदारी में दब तो है लेकिन उनका राजनैतिक इतिहास कोई खासा प्रभावी नहीं रहा है जिला पंचायत अध्यक्ष रहते हुए उनके नाम पर कोई बड़ी उपलब्धि दर्ज नहीं है केवल जातिगत वोटबैंक ही उनकी दावेदारी का मुख्य प्लस प्वांइट है इसके अलावा मौजूदा विधायक हेमंत खंडेलवाल का विरोधी खेमा भी लता को प्रमोट करने में जुटा है। 


अब बात करें कांग्रेस की जिसमें :

1. विनोद डागा - बैतूल के पूर्व कांग्रेस विधायक और उद्योगपति विनोद डागा इस बार भी बैतूल विधानसभा से कांग्रेस के सबसे मजबूत दावेदार हैं 1999 में चुनाव जीतकर विनोद डागा ने काफी प्रभावी तरीके से अपना कार्यकाल पूरा किया उनके  कांग्रेरो में लोगो को सांझ आया कि बैतुल का विकास  चालू हो गया परन्तु उनका सफर थम गया और इसके बाद वो लगातार दो चुनाव 2003 और 2008 हार गए। साफ सुथरी राजनैतिक छवि और आम जनता खास तौर पर सभी जाति वर्गों  के बीच लोकप्रियता उन्हें एक चुनाव जिताऊ चेहरा बनाती है। दिग्विजय सिंह खेमें के खासमखास होने की वजह से फिलहाल वो प्रचार में जुटे हैं लेकिन फिलहाल उनके नाम की औपचारिक घोषणा होना बाकी है। बीजेपी के हेमंत खंडेलवाल को टक्कर देने का माद्दा केवल उन्हीं में दिखता है।