Mar 27, 2020
कोरोना वायरस ‘कोविड-19’ के बढ़ते प्रकोप को रोकने के लिए 21 दिनों के पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के परिप्रेक्ष्य में उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर करके देश में वित्तीय आपातकाल घोषित करने का अनुरोध किया गया है। थिंक-टैंक सेंटर फॉर एकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टेमिक चेंज (सीएएससी) की ओर से गुरुवार शाम दायर जनहित याचिका में संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत 'वित्तीय आपातकाल' घोषित करने का केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है। वकील विराग गुप्ता की ओर से तैयार और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (एओआर) सचिन मित्तल द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह एक वैश्विक महामारी है जिससे जिला स्तर पर नहीं निपटा जा सकता, बल्कि इससे जनता और सरकार को मिलकर लड़ना चाहिए। याचिकाकर्ता ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से तत्काल सुनवाई का न्यायालय से अनुरोध किया है।
आवश्यक दिशानिर्देश दिए जाने का अनुरोध
याचिकाकर्ता ने अंतरिम उपाय के तौर पर उपयोगी सेवाओं यथा- बिजली, पानी, गैस, टेलीफोन, इंटरनेट के बिलों के संग्रहण और लॉकडाउन अवधि के दौरान देय ईएमआई भुगतान के निलंबन के लिए आवश्यक दिशानिर्देश दिए जाने का अनुरोध भी किया है। साथ ही, गृह मंत्रालय के निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन के लिए राज्य पुलिस और स्थानीय अधिकारियों को निर्देशित करने की भी मांग की गयी है, ताकि आवश्यक सेवाएं बाधित न हों। याचिकाकर्ता का कहना है कि लॉकडाउन को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 या आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत अधिसूचना जारी करके या महामारी रोग अधिनियम 1897 के प्रावधानों के तहत प्रबंधित नहीं किया जा सकता। यह स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी आपात स्थिति है और इसे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच एकीकृत आदेश के अनुसार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार संबोधित किया जाना चाहिए।
भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी
इसके लिए न केवल कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई जीतना आवश्यक होगा, बल्कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की रिकवरी भी करनी होगी। याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण, आर्थिक गतिविधियों एक ठहराव आ गया है। वित्तमंत्री द्वारा 1.70 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की गई है। इस वित्तीय पैकेज के बेहतर उपयोग के लिए वित्तीय आपातकाल घोषित करने की आवश्यकता है, इसलिए संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का निर्देश दिया जाये।