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रंगपंचमी में उड़ते हैं सूखे गुलाल, रंग कणों से आकर्षित होते हैं देवतागण

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Mar 25, 2019

चैत्र कृष्ण पंचमी को खेली जाती है रंगपंचमी। रंगपंचमी का उद्देश्य है ब्रह्मांड के तेजोमय सगुण रंगों का पंचम स्रोत सक्रिय कर देवता के विभिन्न तत्वों की अनुभूति लेकर, उनके तत्व के स्पर्श की अनुभूति लेना। पंचम स्रोत अर्थात पंच तत्वों की सहायता से जीव के भाव अनुसार विभिन्न स्तरों पर ब्रह्मांड में प्रकट होने वाले देवता का कार्यरत स्रोत। रंगपंचमी देवता के तारक कार्य का प्रतीक है।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन रंग कणों से आकर्षित होते हैं देवतागण। वायुमंडल में उड़ाए जाने वाले विभिन्न रंगों के रंग कणों की ओर विभिन्न देवताओं के तत्व आकर्षित होते हैं। ब्रह्मांड में कार्यरत सकारात्मक तरंगों के संयोग से होकर जीव को देवता के स्पर्श की अनुभूति देकर देवता के तत्व का लाभ मिलता है।

विभिन्न राज्यों में मनाई जाती है रंगपंचमी

महाराष्ट्र में होली के त्यौहार के बाद पंचमी के दिन रंग खेलने की परंपरा है। यह रंगपंचमी सामान्य रूप से सूखे गुलाल से खेली जाती है। विशेष भोजन बनाया जाता है जिसमें पूरनपोली जरूर होती है। मछुआरों की बस्ती में इस त्योहार का मतलब नाच, गाना और मस्ती से निकाला जाता है। ये मौसम शादी निर्धारित करने के लिये मुआफिक माना जाता है, क्योंकि सारे मछुआरे इस त्यौहार पर एक दूसरे के घरों को मिलने जाते है और काफी समय मस्ती में बिताते हैं। राजस्थान में इस मौके पर विशेष रूप से जैसलमेर के मंदिर महल में लोकनृत्यों में डूबा माहौल देखते ही बनता है। जबकि हवा में लाला नारंगी और फ़िरोज़ी रंग उड़ाए जाते हैं।

होली पर जलूस निकालने की परंपरा

मध्यप्रदेश की आर्थिक नगरी माने जाने वाले इंदौर में इस दिन सड़कों पर रंग मिश्रित सुगंधित जल छिड़का जाता है। करीब पूरे मालवा प्रदेश में होली पर जलूस निकालने की परंपरा विद्यमान है, जिसे गेर कहा जाता है। गैर के जलूस में बैंड-बाजे-नाच-गाने सब शामिल होते हैं। नगर निगम के फ़ायर फ़ाइटरों में रंगीन पानी भर कर जुलूस के पूरे रास्ते भर लोगों पर डाला जाता है। जुलूस में प्रत्येक धर्म के, प्रत्येक राजनीतिक पार्टी के लोग शामिल होते हैं। प्राय: महापौर ही जुलूस की अध्यक्षता करते हैं। प्राचीनकाल में जब होली का पर्व कई कई दिनों तक मनाया जाता था,  उस समय रंगपंचमी होली का अंतिम दिन हुआ करता था और उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था।