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नवरात्री का चौथा दिन : माँ कूष्माण्डा की पूजा से होती है आयु,यश और बल की वृद्धि

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Oct 13, 2018

नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है अपनी मंद मुस्कान से अण्ड को उत्पन्न करने के कारण इनकी प्रसिद्धि कूष्माण्डा के नाम से हुई है मां का यह रूप बहुत ही सरस है जो हर किसी की पुकार सुनती हैं मां मन की चंचलता को शांत करती हैं और व्यक्ति को गति प्रदान करती हैं मां के इस रूप के बारे में पुराणों में जिक्र है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है।

अल्प सेवा और भक्ति से माँ होती है प्रसन्न

माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं इनकी भक्ति से आयु, यश, बल की वृद्धि होती है माँ कूष्माण्डा अल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं यदि मनुष्य सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाए तो फिर उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। इस दिन मां का नाम लेकर ध्यान करना चाहिए। मां के इस रूप को पूजने वाले व्यक्ति के पौरूष में कभी कमी नहीं होती है, वो दिन-दूनी रात चैगुनी तरक्की करता है वो जब तक धरती पर रहेगें, तब तक उसका कुल आबाद रहता है।

मां कूष्माण्डा का रूप

मां कूष्माण्डा का शरीर सूर्य की कांति के समान है इनकी आठ भुजाएं हैं इसलिए ये अष्टभुजा भी कहलाती हैं इनके दाहिनी ओर के चार हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण और कमल सुशोभित हैं तथा बाई ओर के हाथों में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र हैं इनके कानों में सोने के आभूषण और सिर पर सोने का मुकुट है ये सिंह पर विराजमान हैं।

मां कूष्माण्डा को प्रसन्न करने का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।