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कालाष्टमीः महत्व और व्रत कथा

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Apr 25, 2019

आप सभी को बता दें कि हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत करते हैं और सभी भक्त कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा कर उनके लिए उपवास कर उन्हें खुश करते हैं। आप सभी को बता दें कि इस महीने 26 अप्रैल को कालाष्टमी व्रत है और यह मान्यता है कि भगवान शिव उसी दिन भैरव के रूप में प्रकट हुए थे और इस दिन मां दुर्गा की पूजा का भी विधान है। ये रही महत्व की बात, अब हम आपको बताने जा रहे हैं कालाष्टमी की व्रत कथा।

व्रत कथा- शिव पुराण में उल्लेख है कि देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से बारी-बारी से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है। जवाब में दोनों ने स्वयं को सर्व शक्तिमान और श्रेष्ठ बताया, जिसके बाद दोनों में युद्ध होने लगा। इससे घबराकर देवताओं ने वेदशास्त्रों से इसका जवाब मांगा। उन्हें बताया कि जिनके भीतर पूरा जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है, वह कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव ही हैं। ब्रह्मा जी यह मानने को तैयार नहीं थे और उन्होंने भगवान शिव के बारे में अपशब्द कह दिए। इससे वेद व्यथित हो गए। इसी बीच दिव्यज्योति के रूप में भगवान शिव प्रकट हो गए। ब्रह्मा जी आत्मप्रशंसा करते रहे और भगवान शिव को कह दिया कि तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और ज्यादा रुदन करने के कारण मैंने तुम्हारा नाम ‘रुद्र’ रख दिया, तुम्हें तो मेरी सेवा करनी चाहिए।

इस पर भगवान शिव नाराज हो गए और क्रोध में उन्होंने भैरव को उत्पन्न किया।

भगवान शंकर ने भैरव को आदेश दिया कि तुम ब्रह्मा पर शासन करो। यह बात सुनकर भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा का वहीं 5वां सिर काट दिया, जो भगवान शिव को अपशब्ध कह रहा था। इसके बाद भगवान शंकर ने भैरव को काशी जाने के लिए कहा और ब्रह्म हत्या से मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता बताया। भगवान शंकर ने उन्हें काशी का कोतवाल बना दिया, आज भी काशी में भैरव कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। विश्वनाथ के दर्शन से पहले इनका दर्शन होता है, अन्यथा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है।