Aug 4, 2025
भारत के कोने-कोने में रक्षाबंधन की अनोखी परंपराएं
रक्षाबंधन या राखी सिर्फ भाई-बहन के प्यार का प्रतीक नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता का उत्सव भी है। इस त्योहार की आत्मा एक है — रक्षा, प्रेम और आशीर्वाद, लेकिन इसे मनाने के तरीके अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हैं। आइए जानते हैं कैसे देश के विभिन्न हिस्सों में रक्षाबंधन के साथ स्थानीय परंपराएं जुड़ी हुई हैं।
पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भारत की विशेषताएं
मध्य प्रदेश और बिहार में इसे कजरी पूर्णिमा कहा जाता है, जिसमें किसान अपनी भूमि की पूजा करते हैं और माताएँ अपने बेटों की लंबी उम्र की कामना करती हैं, साथ ही भाई की कलाई पर बहनें राखी बाँध कर उनसे शगुन और उपहार लेती हैं।
पश्चिम बंगाल और ओडिशा में रक्षाबंधन को झूला पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन राधा-कृष्ण की झूला लीला का उत्सव होता है, घरों में झूले सजते हैं और बहनें अपने भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं।
तो वहीं महाराष्ट्र में यह दिन नराली पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है। मछुआरे समुद्र देवता वरुण को नारियल अर्पित करते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। साथ ही, भाई-बहन के रिश्ते को मनाने के लिए राखी बांधी जाती है और पूरण पोली जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।
दक्षिण भारत में, खासकर ब्राह्मण समुदाय में, इसे आवणी अवित्तम के रूप में मनाया जाता है, जिसमें यज्ञोपवीत (जनेऊ) बदलने की परंपरा है। यह आत्मशुद्धि और प्रायश्चित का दिन माना जाता है।
उत्तर और उत्तर-पूर्व भारत की विविधता राजस्थान में, बहनें अपने भाई के साथ-साथ भाभी को भी "लुंबा राखी" बांधती हैं, यह दर्शाने के लिए कि परिवार में भाभी की भूमिका भी अहम है।
उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में रक्षाबंधन को रक्षा सूत्र परंपरा से जोड़ा गया है, जहाँ पंडित गांववालों को रक्षासूत्र बांधते हैं। बहनें भी भाइयों को राखी बांधती हैं।
उत्तर-पूर्व भारत, विशेषकर असम और त्रिपुरा, में राखी सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं, बल्कि मित्रता और अपनत्व का प्रतीक बनकर मनाई जाती है, कभी-कभी यह बिहू जैसे पर्वों के साथ भी जुड़ जाती है।