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सरस्वती के उपासक थे शहानाईवादक उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ

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Mar 21, 2020

बिस्मिल्लाह ख़ाँ के लिए संगीत, सुर और नमाज़ एक ही चीज़ थे। वो मंदिरों में शहनाई बजाते थे, सरस्वती के उपासक थे और गंगा नदी से भी उन्हें बेपनाह लगाव था। साथ ही साथ वो पांच वक़्त नमाज़ पढ़ते थे, ज़कात देते थे और हज करने भी जाया करते थे। बिस्मिल्ला खाँ का जन्म बिहारी मुस्लिम परिवार में पैगंबर खाँ और मिट्ठन बाई के यहाँ बिहार के डुमराँव के ठठेरी बाजार के एक किराए के मकान में हुआ था। उनका बचपन का नाम कमरुद्दीन था, लेकिन वह बिस्मिल्लाह के नाम से जाने गए। वे अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे।

पिता महाराजा के दरवार में शहनाई बजाया करते थे

उनके खानदान के लोग दरवारी राग बजाने में माहिर थे जो बिहार की भोजपुर रियासत में अपने संगीत का हुनर दिखाने के लिये अक्सर जाया करते थे। उनके पिता बिहार की डुमराँव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरवार में शहनाई बजाया करते थे। बिस्मिल्लाह खान के परदादा हुसैन बख्श खान, दादा रसूल बख्श, चाचा गाजी बख्श खान और पिता पैगंबर बख्श खान शहनाई वादक थे। 6 साल की उम्र में बिस्मिल्ला खाँ अपने पिता के साथ बनारस आ गये। वहाँ उन्होंने अपने मामा अली बख्श 'विलायती' से शहनाई बजाना सीखा। उनके उस्ताद मामा 'विलायती' विश्वनाथ मन्दिर में स्थायी रूप से शहनाई-वादन का काम करते थे।

छह घंटे का रोज रियाज उनकी दिनचर्या में था शामिल

संगीत के प्रति उनका इतना गहरा लगाव था कि जब कभी वो इसमें डूबते थे तो अपनी नमाज़ भी भूल जाते थे। उनका मानना था कि अगर संगीत बाअसर है तो वो किसी भी नमाज़ या प्रार्थना से बढ़कर है। उनके संगीत का यही आध्यात्मिक गुण श्रोताओं को उनसे बांधता था। उस्ताद का निकाह 16 साल की उम्र में मुग्गन ख़ानम के साथ हुआ जो उनके मामू सादिक अली की दूसरी बेटी थी। उनसे उन्हें 9 संताने हुई। लगातार 30-35 सालों तक साधना, छह घंटे का रोज रियाज उनकी दिनचर्या में शामिल था। अलीबख्श मामू के निधन के बाद खां साहब ने अकेले ही 60 साल तक इस साज को बुलंदियों तक पहुंचाया।

गूंज उठी शहनाई में दिया था संगीत

उन्‍होंने कहा था कि यह दिन न सिर्फ उनके लिए बल्कि वहां मौजूद सभी श्रोताओं के लिए बेहद खास है क्‍योंकि बिस्मिललाह खान यहां पर मौजूद हैं। बिस्मिल्‍लाह खान ने गूंज उठी शहनाई के लिए भी संगीत दिया था, लेकिन उस वक्‍त वह इतने नाराज हुए कि फिर उन्‍होंने दूसरी फिल्‍म में संगीत नहीं दिया। वह अकसर कहते थे दुनिया की दौलत एक तरफ और संगीत एक तरफ, फिर भी वह भारी ही होगा। पैसे से संगीत को नहीं तोला जा सकता है।