Dec 15, 2020
विनोद शर्मा : ग्वालियर की शान और पहचान कही जाने वाली नैरोगेज ट्रेन को बंद कर हेरिटेज ट्रेन के तौर पर चलाने की तैयारियां एक बार फिर से शुरु कर दी गई हैं। इस बारे में कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह का कहना है कि इंडियन रेलवे स्टेशन डेवलपमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड के अधिकारियों के साथ नगर निगम व स्मार्ट सिटी के अफसरों से इस संबंध में बातचीत हुई और इसे लेकर सहमति भी बनी है।
रेलवे कार्पोरेशन का बड़ा फैसला
बता दें कि, रेलवे कार्पोरेशन नैरोगेज ट्रेन, ट्रैक और उनसे जुड़े दूसरे संसाधनों को स्मार्ट सिटी को सौंपने के लिए तैयार है और प्रशासन ने इसके लिए फिजिबिलिटी सर्वे कराने का निर्णय लिया है।
ग्वालियर विश्व हेरिटेज सिटी की सूची में शामिल
रेलवे के अधिकारियों ने ये भरोसा दिलाया है कि, रेलवे नैरोगेज ट्रेन को हेरिटेज सिटी ट्रेन बनाने में पूरी मदद करेगा। ग्वालियर एक हेरिटेज शहर है और यूनेस्को ने ग्वालियर को विश्व हेरिटेज सिटी की सूची में शामिल किया है। ऐसे में अगर नैरोगेज ट्रेन के ट्रैक पर हेरिटेज ट्रेन को चलाया जाता है तो इससे पर्यटक और ज्यादा आकर्षित होंगे और सिटी का ट्रैफिक भी कम होगा।
तीनों उपनगरों को जोड़ती थी नैरोगेज ट्रेन
दरअसल ग्वालियर शहर में लाइट नैरोगेज रेलवे की सेवा 29 नवम्बर 1905 से प्रारंभ हुई थी। शहर के अंदर ग्वालियर से कम्पूकोठी और मुरार के बीच चला करती थी। इसके दो उपयोग थे। सवारियों के अलावा औद्योगिक और मिलिट्री जरूरतें पूरी करना। हालांकि शुरुआती दौर में यह ट्रेन केवल सरकारी जरूरतें पूरी करती थी। बाद में इसे सवारी गाड़ी के रूप में भी उपयोग किया जाने लगा। इसका निर्माण माधवराव सिंधिया ने कराया था। शहर के अंदर ये लाइट नैरोगेज ट्रेन लश्कर, मुरार और हजीरा तीनों उपनगरों को जोड़ती थी। इसके अलावा ये ट्रेन ग्वालियर और दूसरे आसपास के 28 कस्बों को जोड़ती थी। शहर के अंदर चलने से पहले 1895 में ये नैरोगेज ट्रेन भिण्ड, 1889 में ग्वालियर-शिवपुरी और ग्वालियर शहर से श्योपुर कलां 1904 तक पहुंची। ग्वालियर से श्योपुर तक दो सौ किलोमीटर लंबा ट्रैक एक शानदार विरासत है। इसके ट्रैक की चौड़ाई 2 फीट है। विशेष बात ये है कि ये ट्रैक अभी भी जिंदा है। ये देश का सबसे लंबा और संसार के टॉप फाइव में शुमार है।