Loading...
अभी-अभी:

रामायण से कितनी अलग है 'आदिपुरुष' , लोग नाराज तो होंगे ही

image

Jun 20, 2023

देवाशीष उपाध्याय.  रामायण मे कोई भी बदलाव कभी भी स्वीकार तो नहीं ही किया जाएगा , ऐसा ही कुछ देखने को मिला है जब शायद नाम मात्र की रिसर्च करके , बहुत सारे पैसो के साथ कुछ रामायण जैसा बनाने की कोशिश तो की है और नाम दिया है आदिपुरुष. रामायण जैसा कुछ बनाने की कोशिश मे यह तो तय हो गया की ये लोगो ने कुछ अलग ही बना दिया , वो भी कुछ ऐसा जो बिलकुल ही कल्पना से परे था. कल्पना से परे रहे , वही बढ़िया है क्युकी रामायण के पात्रो की कुछ इस प्रकार कल्पना करना भी पीड़ा दे सकता है वो भी भयंकर वाली पीड़ा. अब सवाल यह आता है की लोग पहले से ही रामायण के बारे मे लगभग जानते है. ऐसे मे हो सकता है की मेकर्स ने सोचा हो की रामायण मे कुछ अलग दिखाते है. पर ये सोच जब काम मे आती है जब आप स्टोरी के साथ कुछ बदलाव कर सकते है. रामायण के साथ तो ये सम्भव नही हो सकता क्युकी जब पता है की लोगो की आस्था इस विषय के साथ जुड़ी हुई है तो क्यु कुछ नया जोड़ कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना है या फिर यूं कहे की क्यु ही जनता को परेशान करना है. अब जनता को परेशानी हुई तो आवाज भी आनी ही थी और इस बार तो आवाज मे बुलंदी भी बहुत थी. अब लोगो को भड़कने के कारण भी तो मिले थे. इन कारणो मे क्या क्या शामिल था इसपर भी थोड़ी बात कर ही लेते है. आवाजों के सुर मिले जब सब को भाषा से आपत्ती हुई. किरदार कुछ अलग ही भाषा मे बात करते है जो की बिलकुल ही आज के जमाने से प्रेरित होती हुई दिख रही है. अब जब कहानी ऐतिहासिक है तो भाषा भी ऐतिहासिक होनी ही चाहिए थी जो की बिलकुल ही नही हो पाई. सब आज के जमाने वाली भाषा मे बात कर रहे थे. आवाजों के सुर दोबारा जब मिले तब सब ने कहा की जो लुक होना चाहिए था वो भी नही है. ऐसा लग रहा है की अभी अभी शानदार कटींग करा कर लौटे है वो भी आज के जमाने वाली. फिर रिसर्च तो एक बड़ी परेशानी थी ही , वो अलग. भारत का बच्चा बच्चा जानता है की लंका बिलकुल खरे सोने की थी पर उसे दिखाया एकदम काला है. ऐसे तो इनकी यें कहानी आने वाली पीड़ी के लिए एक अलग ही रमायण का निर्माण कर देगी. इसमें यह भी देखने को मिला की रावण मांस खिला रहा है. अब जब वो ब्राह्मण है तो फिर ऐसे दृश्य दीखाने का कोई मतलब है ही नहीं. ये थोड़ा समझना चाहिए की यहां पर बहुत जल्दी से भावनाएं आहत होती है और इसी को ये शायद समझ नहीं पाये. इतिहास मे इस मूवी को सकारात्मक भाव से तो कोई याद नही रखने वाला पर हां इसका उदाहरण यह कहकर दिया जाएगा की कुछ भी हो , कुछ तो भी बना कर अब जनता के सामने नहीं परोस सकते. एक बार को आप पैसे तो कमा लेंगे पर सिनेमा याद रखा जाता है की वो कितना सदा बहार रहा उस वजह से. ज्यादा बजट होने से फर्क नही पड़ेगा. बड़ी-बड़ी स्टारकास्ट से भी फर्क नही पड़ेगा. फर्क तब ही पड़ेगा जब आप जो दिखा रहे है उसकी कम से कम रिसर्च तो सॉलिड होनी ही चाहिए और फिर वो परदे पर दिखनी भी चाहिए.