Loading...
अभी-अभी:

दुर्ग नगर निगम चुनाव के लिए सियासी मैदान में उतरीं भाजपा और कांग्रेस

image

Dec 17, 2019

चंद्रकांत देवांगन : दुर्ग नगर निगम चुनाव में 60 वार्ड़ों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपनी पूरी ताकत झोंकने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं। भाजपा जहाँ अपने दो दशक के निगम के कार्य और राज्य सरकार के 15 साल के उपलब्धि को भुना रही है तो वहीं कांग्रेस 1 साल में राज्य सरकार द्वारा किये गए वादों और पिछली सरकार में विकास के नाम पर जनता को छलने का आरोप लगा कर अपने मतदाताओं को रुझा रहे है।

भाजपा और कांग्रेस ने अपने अपने उम्मीदवारों के नाम किये उजागर
बता दें कि दुर्ग का वार्ड नंबर 49 बोरसी पश्चिम अपने प्रत्यशियों को लेकर विशेष आकर्षण में बना हुआ है। यहाँ भाजपा ने अपने प्रत्याशी के रूप में पद्मश्री कवि सुरेंद्र दुबे के पुत्र आशुतोष दुबे को मौका दिया है जो कि इंजीनियर है व यूपीएससी परीक्षा में 2 बार प्रारम्भिक उत्तीर्ण कर चुके है। वहीं कांग्रेस ने वोरा परिवार के करीबी रहे राकेश शर्मा को मौका दिया है वही राकेश शर्मा के बारे में चुनावी गलियारों में चर्चा है कि अगर वो जीत कर आते है तो महापौर के दावेदार हो सकते है। इस वार्ड में 3284 वोटर है पिछले सरकार में कांग्रेस के पार्षद के रूप में भास्कर कुण्डले इस वार्ड से चुन कर आये थे इस बार पार्टी से टिकट न मिलने पर वो निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सामने है और पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस के प्रत्याशी का कहना है कि उनके निर्दलीय होने से पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा। 

5 सालों में करोडों रुपये के विकास कार्य करवाये...
पूर्व पार्षद को विकास के लिए एक निश्चित राशि मिलती है पर उन्होंने विभिन्न मदो से प्रयास करके वार्ड में 5 सालों में करोडों रुपये के विकास कार्य करवाये हैं कुछ विकास कार्य अब भी अधूरे है। वही कांग्रेस के पार्षद का कहना है कि इस वार्ड में कई ऐसे काम है जिससे विकास के नए आयाम रचे जा सकते हैं। सभी वर्गों को ध्यान में रखकर सर्वहित के लिए लिए विभिन्न योजना के साथ चुनावी मैदान में है और जीत के बाद जनता को अपने विधायक व अन्य निधियों से वो सौगात दिलाएंगे। चुनावी मैदान में कवि सुरेंद्र दुबे के सुपुत्र आशुतोष दुबे कि माने तो युवा होने के साथ साथ पढ़ा लिखा भी हूँ। यूपीएससी के जरिये समाजसेवा में काम करने की इच्छा थी पर एक बीमारी के चलते वो संभव नही हो सका तो राजनीति के माध्यम से वो समाजसेवा की कोशिश है और अगर वो जीत कर आते है तो पार्षद के प्रथम दायित्व मूलभूत सुविधाओं के लिए तो काम करेंगे ही। वहीं उनके पढ़े लिखे होने की वजह से ऊपर उठ कर काम करेंगे।