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अभी-अभी:

यदि आपके घर में “छेर-छेरा माई, कोठी के धान ला हेर-हेरा सुनाई दे तो चौंकिएगा नहीं… करें ये उपाए

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Jan 22, 2019

अजय गुप्ता - कोरिया जिले मे छेरता का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया क्या बच्चे क्या बड़े सबने आज छेरता के अवसर पर गांव के अनेक घरों मे घूमकर-घूमकर छेरिक छेरा छेर मरकनीन छेर छेरा, माई कोठी के धान ल हेर हेरा कहते हुए इस परव् को मनाया खासकर ग्रामीण इलाकों में बच्चों की कई टोलियां गांव के घरों मे छेरता मांगते हुए नजर आए छेर-छेरा के दिन गांव के घरों मे जाकर मागंने पर छेरता मांग रहे लोगो को धान, चावल, रुपये कपड़े आदि दिये जाते है।

जानें कब मनाया जाता है पर्व

छेर-छेरा त्योहार हर साल पौष मास की पूर्णिमा को पूरे राज्य में 'छेर-छेरा पुन्नी' के रूप में मनाया जाता है मान्यता है कि इस दिन दान करने से घर में अनाज की कोई कमी नहीं रहती इस त्योहार के शुरू होने की कहानी रोचक है बताया जाता है कि कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय ने मुगल सम्राट जहांगीर की सल्तनत में रहकर राजनीति और युद्धकला की शिक्षा ली थी वह करीब आठ साल तक राज्य से दूर रहे शिक्षा लेने के बाद जब वे रतनपुर आए तो लोगों को इसकी खबर लगी।

राजा कल्याण साय ने दिए थे निर्देश

खबर मिलते ही लोग राजमहल की ओर चल पड़े कोई बैलगाड़ी से, तो कोई पैदल। छत्तीसगढ़ों के राजा भी कौशल नरेश के स्वागत के लिए रतनपुर पहुंचे अपने राजा को आठ साल बाद देख कौशल देश की प्रजा ख़ुशी से झूम उठी लोक गीतों और गाजे-बाजे की धुन पर हर कोई नाच रहा था राजा की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी रानी फुलकैना ने आठ साल तक राजकाज सम्भाला था, इतने समय बाद अपने पति को देख वह ख़ुशी से फूली जा रही थी।

बिना दान लिए लोग नहीं जाते दरवाजे से

उन्होंने दोनों हाथों से सोने-चांदी के सिक्के प्रजा में लुटाए। इसके बाद राजा कल्याण साय ने उपस्थित राजाओं को निर्देश दिए कि आज के दिन को हमेशा त्योहार के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन किसी के घर से कोई याचक खाली हाथ नहीं जाएगा। इस दिन यदि आपके घर में 'छेर, छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा सुनाई दे तो चौंकिएगा नहीं, बस एक-एक मुठ्ठी अनाज बच्चों की झोली में डाल दीजियेगा नहीं तो वे आपने दरवाजे से हटेंगे नहीं और कहते रहेंगे अरन बरन कोदो करन, जब्भे देबे तब्भे टरन'।