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मजबूरी में सीखा दो वक्त की रोटी के लिए खतरों से खेलना, अब बना इनका रोज का पेशा

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Dec 14, 2018

जितेन्द्र सिन्हा - राजिम के ग्राम जेन्जरा के आश्रित ग्राम मुड़तराई में दो ऐसे कलाकार पहुचे जो दो वक्त की रोटी के लिए बेहद ही हैरतअंगेज करतब दिखाये और बदले में जो मिलता है उसे मुकेश घयाल और दुर्गेश कुमार अपना घर चला रहे है आग के गोले पलक झपकते ही खा लेना, टियूब लाईट को लगातार अपने शरीर से तोड़ना, आग से हैरतअंगेज करतब करना मुकेश घायल और दुर्गेश कुमार के लिए कोई मुश्किल काम नही है ऐसा करना इनका रोज का पेशा है।

स्वराज की टीम ने की मुलाकात

अगर ये नही करेंगे तो इनके सामने बेरोजगारी मंडरा जाएगी कौन है ये लोग और क्यो ऐसा खतरों से भरे करतब दिखाने को मजबूर है आइये आप को बताते है दरासल मुकेश घायल और दुर्गेश राजनांदगांव के रहने वाले है जो गांव शहर में घूम घूम कर अपने कला का प्रदर्शन करते है और जनता बदले में जो दे देता है उससे इनका घर चलता है और रोज़मर्रा कि जरूरतें पूरी करते है, इस बार अपने अगले कड़ी के गांव में दो वक्त की रोटी तलाशने मुकेश और दुर्गेश पहुंचे है जिला गरियाबंद जहां हमारी टीम ने इन से मुलाकात की ग्राम जेन्जरा के आश्रित ग्राम मुड़तराई में ठिठुरती ठण्ड के बीच ग्रामीण बड़े ही उत्साह से इनके करीब को देख रहे थे।

8 सालों से करते आ रहे यही काम

ग्रामीण अंचलों के लिए कोई भी छोटा हो या बड़ा कार्यक्रम गांव में एक खास रुप ले लेता है क्यो की गांव में मनोरंजन का बेहद ही कम साधन होता है कुछ ऐसा ही देखने को मिला ग्राम मुड़तराई में जहां के ग्रामीण इन कलाकारों का सम्मान तो किये वही इनका आर्थिक सहयोग कर करतब करो का मनोबल भी बढ़ाया ग्राम जेन्जरा की सरपंच निलेश्वरी साहू का कहना है इन कलाकारों को एक बड़ी मंचा की जरूरत है हैरतअंगेज करतब दिखा रहे मुकेश घायल और दुर्गेश ने बताया कि वे यह काम करीब 8 सालों से करते आ रहे है।

गांव गांव इसी तरह घूमकर पाल रहे पेट

घूम कर करतब दिखाते है दुर्गेश ने बताया कि वो ये सब पेट के लिए करते है। वही मुकेश ने इस बात का ख्याल रखते हुए कहा कि जो वे करतब करते है बच्चे घर मे उपयोग न करे मुकेश नई सरकार से अच्छे काम की उम्मीद भी कर रहे है। मुकेश और दुर्गेश अपने हैरतअंगेज कारनामे दिखाने के बाद के एक टोकरी लेकर करतब देख रहे जनता के बीच पहुचते है और जनता खुश होकर इनको इनाम के रूप में आर्थिक सहयोग करते है यह सब देख कर यही लगता है दो वक्त की रोटी लिए लोग ख़तरों का भी सामना बड़े खुशी से करते है हालांकी कोई काम छोटा या बड़ा नही होता, आज मुकेश और दुर्गेश इस गांव में है तो कल कही और होंगे।