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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर दुगली वासियों की यादें हुईं ताजा, जानिए पूरी खबर

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Aug 20, 2019

लोकेश साहू  : पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आज 75 वीं जयंती है। छत्तीसगढ़ के साथ भी उनकी कई यादें जुड़ी हुई हैं। 34 बरस पहले देश के सबसे युवा पीएम को विशेष आदिवासी जनजाति की संस्कृति, रहन-सहन, खानपान और वेशभूषा जानने की जिज्ञासा यहां खींचकर ले आई थी। आदिवासियों की झोपड़ी में जाकर पहली बार उन्होंने पत्तल-दोना में खाना खाया और चरोटा भाजी का स्वाद चखा था। आज भी दुगली वासियों के जेहन में वो यादें ताजा हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती पर जाने कुछ अनछुए पहलू
आज पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उनकी जयंती पर पूरा देश याद कर रहा है, ऐसे में भला छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के नगरी विकासखंड स्थित ग्राम दुगली के ग्रामीण उन्हें कैसे भुला सकते हैं। भारत रत्न राजीव की वो यादें आज भी उनके जेहन में कायम हैं। 34 साल पहले देश की सबसे प्राचीन और पिछड़ी जनजाति कमार की संस्कृति और जीवन शैली को जानने की जिज्ञासा उन्हें दुगली खींचकर ले आई थी। 14 जुलाई 1985 का वो दिन कमार जनजाति के लोगों की इन बूढ़ी आंखों में आज भी उसी तरह ताजा है जब राजीव गांधी अपनी पत्नी सोनिया गांधी के साथ यहां पहुंचे थे। यहां वे एक घर पहुंचे जहां बायोगैस से खाना पकाया जा रहा था। इसी दौर में गोबर गैस संयंत्र योजना का शुभारंभ हुआ था। देश को कम्प्यूटर युग से जोड़ने वाले राजीव आदिवासी अंचल में बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा की जानकारी लेने दुगली के प्रायमरी स्कूल पहुंचे। जहां वे प्रधानपाठक रतीराम नाग और बच्चों से मिले, उनसे पढ़ाई को लेकर जानकारी भी ली। स्कूल से वे सीधे कमारपारा पहुंचे जहां सरकार द्वारा बनवाए गए कुएं का निरीक्षण किया जो स्थानीय कमारों के पेयजल और निस्तारी का साधन था। यह कुआं आज भी राजीव गांधी के कमारपारा प्रवास का गवाह है। वे यहां मैतूराम की झोपड़ी में पहुंचे। जहां अमरुद के पेड़ के नीचे बैठकर राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने पलाश के पत्ते से बनाए गए दोने में मड़िया पेज, कडू कंद, कुल्थी बीज की दाल और चरोटा भाजी का स्वाद भी चखा, साथ ही महुए के एक फूल को लेकर उसके रस का भी स्वाद लिया।

136 करोड़ रुपये के विकास कार्यों की सौगात देगी भूपेश सरकार
मैतूराम और उसकी पत्नी के साथ बातचीत में राजीव गांधी ने उनकी मांगों के बारे में पूछा तो मैतूराम ने बताया कि उन्हें खेती के लिए जमीन चाहिए। जिसके जवाब में राजीव ने कहा तुम जमीन देख कर रखना मैं अगली बार आउंगा। हालांकि राजीव उसके बाद लौट नहीं पाए और श्रीपैरम्बदूर में एक आत्मघाती हमले में उनकी मौत हो गई। आज उनकी जयंती पर भूपेश बघेल की सरकार 136 करोड़ रुपये से कई विकास कार्यों की सौगात देने जा रही है। यही नहीं राजीव गांधी ने जो वादे किये थे यहां के जनजातियों से उन्हें भी पूरा किया जा रहा है।

राजीव गांधी के हर सपने को साकर ​करेगी भूपेश सरकार
आदिवासियों को लेकर सूबे की सरकार लगातार अपनी संवेदनशीलता दिखा रही है, सत्ता संभालने के कुछ दिन बाद ही बस्तर में आदिवासियों को अधिगृहित की गई उनकी जमीनें लौटाई गई। सरकार ने सूबे में जनजातियों कों दिये जा रहे आरक्षण के प्रतिशत को बढ़ा दिया है। राजीव गांधी आज नहीं हैं लेकिन आदिवासियों के विकास को लेकर उनके हर सपनों को अब भूपेश सरकार पूरा करने जा रही है।