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मुंगेली में सैंकड़ो सालों से चली आ रही रावण दहन की परंपरा, यहां रावण को जलाते नहीं बल्कि पीटते हैं...

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Oct 8, 2019

रोहित कश्यप : विजयादशमी पर रावण दहन की परंपरा तो देश-दुनिया में निभाई जाती है, लेकिन क्या आपने रावण को दहन करने के बजाय पीट-पीटकर मारने वाली परम्परा सुनी है, नहीं तो आइये हम आपको ले चलते है छत्तीसगढ़ के मुंगेली,जहां रावण को जलाया नहीं बल्कि पीटा जाता है। मिट्टी के रावण को पीट-पीटकर नष्ट किया जाता है। इसके पीछे तर्क यह है कि अहंकार को पीट पीटकर नष्ट करना और साथ ही इस मिटटी के रावण की अंगों के अवशेष को पाने के लिए लोगो की होड़ मच जाती है,इसके लिए एक भगदड़ जैसा माहौल निर्मित हो जाता है।

सैंकड़ों सालों से चली आ रही है ये परंपरा...
बता दें कि मुंगेली में यह परम्परा सैकड़ों सालों से चलती आ रही है,इसके पीछे का तर्क है कि पुराने ज़माने में विस्फोटक सामग्री नहीं होने की वजह से लोग मिट्टी के रावण ही बनाकर उसका वध करते थे उसी परम्परा को मुंगेली का गोवर्धन परिवार अपने पूर्वजों के ज़माने से निभाते आ रहा है। मुंगेली के मालगुजार गोवर्धन परिवार के पूर्वजों के द्वारा सैकड़ों सालों से शुरू किया गया मिट्टी के रावण को पीट पीटकर मारने की परम्परा आज भी मुंगेली में देखी जा सकती है। 

गोवर्धन परिवार द्वारा हर साल मिट्टी का रावण होता है तैयार...
गौरतलब है कि हर साल की तरह इस वर्ष भी गोवर्धन परिवार द्वारा दशहरा त्यौहार के अवसर पर मिट्टी का रावण बनाया गया, जिसे स्थानीय वीर शहीद धनंजय सिंह राजपूत स्टेडियम पर स्थापित किया जाता है,जिसके वध के लिए स्थानीय बड़ा बाजार से देशी वाद्य एवं बाजे गाजे के साथ भगवान राम की झांकी निकाली जाती है,जो आयोजित स्थल पहुंचकर पहले तो इस मिट्टी के रावण की पूजा अर्चना की जाती है उसके बाद झांकी में शामिल यादव समाज और इस दशहरा में शामिल लोगों के द्वारा लाठी से पीट पीटकर मिटटी के रावण को नष्ट किया जाता है।

रावण की मिट्टी पाने के लिए लोगों का उमड़ता है हूजूम..
इसका तर्क यह है कि बुराई के प्रति अपने आक्रोश को मिटाना है, रावण को लाठी से पीट पीटकर अहंकार को खत्म किया जाता है। वहीं इस मिट्टी के रावण की मिट्टी को पाने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ता है मिटटी के एक टुकड़े पाने के लिए भगदड़ जैसी मच जाती है। इस मिट्टी की मान्यता है कि इसे घर के प्रमुख जगहों में रखने से धनधान्य में बढ़ोत्त
री होती है।