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इंदौर जेल में नहीं हैं जल्लाद, दरिंदो को नहीं मिल पा रही फांसी

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Jun 22, 2017

इंदौर : चार साल की मासूम के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या करने वालों की फांसी का रास्ता साफ हो गया हैं। राष्ट्रपति ने आरोपियों की ओर से दायर की गई दया याचिका खारिज कर दी है। इस संबंध में इंदौर की सेंट्रल जेल को सूचना दे दी गई हैं। लेकिन दरिंदो को फांसी देने के लिये जल्लाद नहीं हैं।

क्या हैं मामला

गौरतलब हैं कि पांच साल पहले 25 जून 2012 को सोमनाथ की चाल में रहने वाली चार साल की मासूम शिवानी फणसे का शव अयोध्यापुरी नाले के समीप मिला था। सिर पर चोट के निशान और शव निर्वस्त्र हालत में मिलने के बाद पुलिस ने मामले में बलात्कार और हत्या का मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी। करीब 14 घंटे बाद ही पुलिस ने इस मामले में तीन युवक जीतू उर्फ जितेंद्र बागवान, सन्नी धुरंधरे और बाबू केतन बायले को हिरासत में लिया था। सेशन कोर्ट ने वारदात को जघन्य मानते हुए, आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई थी। हत्यारों को हाई कोर्ट से भी राहत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा की पुष्टि के बाद आरोपियों ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दायर की थी। हाल ही में राष्ट्रपति ने इसे खारिज कर दिया, इस संबंध में इंदौर की सेंट्रल जेल में सूचना दे दी गई हैं। दया याचिका खारिज होने के बाद आरोपियों की फांसी का रास्ता साफ हो गया है।

जेलों में नहीं हैं जल्लाद

जेल सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस मामले में इंदौर में फांसी दी जाती हैं तो इंदौर की जेल में करीब दो दशक बाद फांसी देने का मामला होगा। लेकिन मृत्यु दंड कैदियों को फांसी के फंदे पर लटकाने के लिए जेल में जल्लाद ही नहीं हैं। इंदौर की सेंट्रल जेल में 11 ऐसे कैदी हैं जिनको फांसी की सजा सुनाई जा चुकी हैं। हालांकि अभी सिर्फ तीन को ही फांसी पर लटकाने का रास्ता साफ हुआ हैं। लिहाजा ताऱीख तय होने के बाद फांसी देने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए जेल विभाग को दूसरे राज्यों से जल्लाद बुलाकर हत्यारों को फांसी देने की प्रक्रिया को पूरी करनी पड़ेगी। प्रदेशभर की जेलों में जल्लादों की कमी की समस्या बनी हुई हैं। वर्ष 1996 में आखरी बार इंदौर की जेल में बतौर सजा कैदी को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था। उसके बाद जबलपुर की जेल में कानपुर से जल्लाद बुलाकर एक कैदी को फांसी के फंदे पर लटकाया गया था।

क्या हैं ब्लैक वारंट

जेल विभाग के  मुताबिक किसी भी मामले में दोषी आरोपी की दया याचिका खारिज होने पर कोर्ट उसका ब्लैक वारंट जारी करती है। इसे आम भाषा में डेथ वारंट भी कहा जाता है। इस पर कोर्ट ही फांसी की तारीख भी लिख देती हैं। इसके बाद फांसी की सजा दी जाती हैं। अधिकारियों ने बताया कि कई बार कोर्ट सजा देने की तारीख तय करने का अधिकार जेल विभाग को देती हैं और फांसी की सजा का पालन कर कोर्ट को सूचित करने को कहती हैं। इसके बाद जेल विभाग निर्णय लेता हैं।