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सर्वे में बच्चों को लेकर हुआ बड़ा खुलासा... आप जान कर हो जाएंगे हैरान 

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Nov 18, 2017

इंदौर : शहर के कुछ शिक्षकों द्वारा किए गए सर्वे में भयावह तस्वीर सामने आई है और आंकड़े चौकाने वाले है। यह सर्वे शहर की तंग बस्तियों में रहने वाले 9 से 16 साल के बच्चों पर किया गया है। इंदौर के 10 अलग-अलग स्थानों पर किये गए सर्वे में ही 295 से अधिक बच्चे नशे के चंगुल में फंसे मिले है। इस सर्वे को इंदौर कलेक्टर तक भी पहुंचाया गया है। सर्वे में नशे करने वाले बच्चों की यह हकीकत उजागर हुई है।

पहला कारण है परिवार 

90 प्रतिशत नशा करने वाले बच्चे ऐसे है, जिनके साथ या तो पिता या माता में से एक ही है। 20 प्रतिशत बच्चे बगैर मां-बाप के है। माता-पिता में से कोई नशा करता है या वे नशा खोर रिश्तेदार के साथ रहते है।

दूसरा जिम्मेदार शिक्षा का स्तर

इन बच्चो में शिक्षा का स्तर कम है। बच्चे स्कूल तो जाते है, पर उन्हें किसी तरह का अक्षर ज्ञान नहीं है। उनकी नशे के कारण हरकतों से परेशान हो कर शिक्षक उन्हें क्लास से भगा देते है।

तीसरा कारण आर्थिक स्थिति

इन बच्चों की आर्थिक स्थिति बद से बत्तर है। जिसका मुख्य कारण पिता का शराबी होना है। ये बच्चे न तो भिक्षुक होते है, न ही बाल श्रमिक। छोटी-मोटी चोरी, जेब काट कर आये पैसो से नशे की व्यवस्था करते है।

चौथा जिम्मेदार स्वास्थ्य और साफ सफाई

स्वास्थ्य और साफ सफाई से इनका दूर-दूर तक नाता नहीं है। इन बच्चों के खान-पान में पोषक तत्वों की कमी है। जिसके कारण उनका स्वास्थ्य कमजोर है नशा न मिलने पर ये बच्चे तड़पने लगते है।

पांचवा कारण ग्रुप

बच्चे ग्रुप में रहते है, जिसमें सभी बच्चे नशा करते है। बच्चा इससे जुड़ कर जल्द ही नशे की गिरफ्त में आ जाता है। इसके अलावा सोसायटी में विकृत भाषा, व्यवहार और गन्दगी के कारण कोई इन्हें पसंद नहीं करता, साथ ही नशा मिलने और नशा बेचने वाले के पते इन्हें पता होते है। जहां आसानी से नशा उपलब्ध हो जाता है।    

बच्चे देश का भविष्य होते है यह बात हमेशा से ही कही जाती रही है, पर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी में जब ऐसे चौकाने वाले आंकड़े सामने आते है, तो आगे की तस्वीरें भयावह दिखाई देती है। यहां बच्चों का बचपना पूरी तरह ही अलग है।

शिक्षिका विनीता तिवारी इंदौर के जिला जेल में महिला बंदियों के बच्चों को शिक्षित करती है, ताकि बच्चे आगे जा कर शिक्षा के जरिये अपराध की गिरफ्त से बहार रहे। अपराध में कई बार सीरियल किलिंग जैसे ममलों में इस उम्र के बच्चे भी लिप्त पाए गए है।

इस ओर जब शिक्षिका विनीता ने इंदौर के कुछ इलकों में शिरकत की, तो सरवटे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, शास्त्री ब्रिज, गांधी हॉल, गंगवाल बस स्टैंड, कर्बला पुल के आसपास रहने वाले बच्चे नशे की जद में पाए गए।

कई जगह तो बच्चे भिक्षा भी इसलिए मांगते है, ताकि वे नशे की सामग्री खरीद पाए। इन 10 स्थानों में से ही 295 बच्चे नशे के चंगुल में फंसे मिले है। शहर में ऐसे स्थानों की संख्या कई गुना ज्यादा है।

ऐसे में यदि शहर भर के इलाकों का सर्वे किया जाये, तो नशे के जाल में फसे मासूमों की संख्या हजार का आंकड़ा भी पार कर सकती है। ये बच्चे गांजा, भांग का सेवन करने से लेकर सॉल्यूशन, पेट्रोल, डीजल सूंघने के आदी भी हो चुके हैं।

90 प्रतिशत बच्चे को या तो मां है या पिता। जब पैरेंट काम पर जाते है तो तंग बस्तियों और झोपड़ियों में रहने वाले ये बच्चे नशे की जुगाड़ में जुट जाते हैं। कहने को ये बच्चे स्कूल भी जाते हैं, लेकिन तीसरी से आठवीं कक्षा में पढ़ रहे इन बच्चों को अक्षर ज्ञान तक नहीं है।

इन सर्वे के लिए शिक्षिका ने चार्ट शीट भी खुद ने ही बनाई है। जिसमें बच्चों की एजुकेशन, पारिवारिक पृष्ठभूमि, पारिवारिक स्थित, नशे का कारण जैसे बिन्दुओं को केन्द्रित किया। 295 बच्चों की ये रिपोर्ट तैयार करने के बाद इस रिपोर्ट को बाल विकास और कलेक्टर कार्यालय में भी प्रस्तुत किया, ताकि इन बच्चो को नशे से बचाने के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाये जाये, पर इन विभागों से कोई सकारात्मक जवाब अभी तक नहीं मिल सका है।

इन बच्चों की मनोस्थिति भी इस बात के लिए जिम्मेदार होती हैं, क्योंकि बचपन के शुरूआत से ही उन्हें इस तरह का माहौल मिलता है। साइकोलॉजिस्ट डॉ पाली रस्तोगी के मुताबिक माना जाये तो संगत, नशे की आसानी से उपलब्धता और नशे के विपरीत प्रभाव और परिणामों की जानकारी के अभाव के साथ ही पारिवारिक माहौल इसके लिए जिम्मेदार है। शरीर और दिमाग पर ये नशा अपना असर करता है। जिस कारण बच्चे नशे के आदि होते है। जिसके चक्कर में ये गरीब बच्चे अपराध की ओर रुख कर लेते है।